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२२८, वर्ष २४, कि०५
प्रनेकान्त
अतिरिक्त अनेक व्रत सम्बन्धी रासको की भी ब्रह्म जिनदास विवेक की प्रेरणा से वृक्ष की छाया मे विश्राम करती है। ने रचना की है। जिनमे व्रत का स्वरूप, पालन की विधि वहां "विमल बोध' कुलपति से निवृत्ति विचक के सुख पोरल का वर्णन समाविष्ट है । जैसे-लब्धि विधान प्रादि के सम्बन्ध में पूछती है। विमल बोघ विवेक के रास अठाई व्रत गस, रोहिणी व्रतरास. मोनव्रतरास, अादि। लक्षणों को देखकर प्रसन्न हो जाता है और अपनी सुमति
रासक की रचना मरल है । कवि के रासों मे नाम की पुत्री से उसका विवाह कर देता है। और अरहत .. .गस भी है। जिसका नाम 'परमहस के अतिशयो का वर्णन अपनी कार्य सिद्धि का सचक जान रूपक रास' है । इस रास में मन की प्रवृत्ति और निवृत्ति मत नाम की दो स्त्रियों से दो पुत्र उत्पन्न होते है, मोह और
निवृत्ति भी कुलपति के वचनानुसार पुत्र वधू के साथ विवेक प्रवृत्ति ने मन को वश में कर अपनी सौत निवृत्ति
उस नगरी में निवास करती हुई विवेक को अर्हन्त की भोर उसके पुत्र विवेक को विदेश मे भिजवा दिया। मन,
आराधना के लिए प्रेरित करती है। विवेक माता की प्रवृत्ति और माया इन तीनों ने मिलकर त्रिपुरी राजा को
प्राज्ञा मान प्रभु-सेवा म लग जाता है, अवसर आने पर बन्धन मे डालकर अपनी प्रान्तरिक इच्छा की पूर्ति करते
माता मोहराय के द्रोह का वर्णन करती है। मोहराय के है। इस समय राजा अपनी चेतना रानी की शिक्षाओं का
भय से भयभीत जगत को मुक्त कराने के लिए विवेक को स्मरण कर रोने लगता है । और अपनी करुण दशा का
प्राज्ञा प्रदान करती है। विवेक अपना कार्य बही चतुराई यथार्थ दिग्दर्शन कर चेतना से उसकी सम्हाल करने के
से सम्पन्न करता है, अपने सैन्य बल तथा शक्ति को सम्हाल लिए प्रेरित करता है, किन्तु चेतना अब तुमको माया मिल
करता है। विवेक राज्य का स्वामी होता है । विवेक की गई है, मेरा अब क्या काम है, मन मन्त्री का राज्य है,
प्राज्ञा चलने पर अज्ञानी पाखंडी के प्राण खडित हो जाते जिस तरह वह तुम्हे विवश करे, वह सहन करो, कहती
है। ज्ञान तलारक्ष को सावधान कर विवेक नगर में किसी हुई चुप हो जाती है।
अपरिचित जन के प्रवेश को रोक देता है। निवृत्ति के चले जाने पर प्रवृत्ति मन को समझाकर
मोह विवकको राज्यप्राप्ति से अत्यन्त क्षुभित होता है, अपने सपुत्र मोह को राज्य दिला देती है । मोह के राज्य
और उसके कार्य-कलापो को तथा उसकी शक्ति का परिचय पाते ही लोक में सर्वत्र मोह की आज्ञा का प्रसार होता
पाने के लिए दम, कहागम (कज़स) और पाखड दूतों को है। मोह राजा निर्लज्ज हृदय स्थान मे 'अविद्या' नामक
भंजना है। दभ प्रान्तरिक भेष बदल कर विवेक नगर, नगर की स्थापना कर राज्य करने लगता है। उसकी दुर्मति
परिवार, राज्य और शक्ति का समाचार मोह को देता है, नाम की रानी से काम, राग और द्वेष ये तीन पुत्र है।
उसमे मोह का क्षोभ और भी अधिक बढ़ जाता है. वह पौर निद्रा प्रधति और मारी ये तीन पुत्रियां है। मिथ्या
उसका विनास करने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन दर्शन मंत्री, सप्तव्यसन सदस्य निर्गण संगति सभा,
करना चाहता है। किन्तु मोह को सचिन्त्य देख काम मालस्य सेनापति, छद्म पुगेहित और कुकवि रसोइया
कुमार युद्ध के लिए प्राज्ञा मांगता है और मोह उसे शिक्षा त्यादि मोह का वहद परिवार है । काम, क्रोध, अविवेक देकर युद्ध के लिए भेजता है । वह सर्वत्र विजय प्राप्त आदि अनेक सुभट उसके राज्य के सरक्षक है । माहराय करता हुअा ब्रह्मलोक मे ब्रह्मा, विष्णु और शकर (महेश) का राज्य हो जाने से निवृत्ति बिना विश्राम के प्रविरल को सावित्री, गोपियो और पार्वती द्वारा वश मे कर अन्य गति मे मागे बढ़ती जा रही है। मार्ग मे पश-बालिका ऋषियो प्रादि को भी स्त्रियों के प्राधीन करता हमा अत्यन्त करुणा जनक दृश्य देवती तथा अपनी असमर्थता सर्वत्र मोह की आज्ञा को पारोपित करता है। पर खेद प्रकट करती हुई चली जाती है। मार्ग में उसे इधर विवेक का सजमश्री के माथ विवाह सम्पन्न 'प्रवचनपूर' नाम का सुन्दर नगर मिलता है, वह उम हो जाता है, इससे काम कुमार का अत्यधिक ईर्ष्या उत्पन्न नगर के प्रात्मागम नामक वन की सुन्दरता देखकर और होती है, अतएव विवेक के माथ युद्ध के लिए तैयार होता