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बाजुराहो के प्रादिनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार को मुतियां
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को अनुपस्थिति प्राश्चर्यजनक है। देवी के स्कन्वों के और कमण्डलु (नीचे लटकता) प्रदर्शित है। हाथों में ऊपर प्रत्येक पार्श्व में एक मालाघारी उड्डायमान गन्धर्व प्रशित कमल के प्रावार पर इन देवियों की सभावित को मूर्तिगत किया गया है। द्वार बिब की चक्रेश्वरी मति पहचान लक्ष्मी से की जा सकती है। के प्राधार पर इस मन्दिर का जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर अब हम प्रत्येक द्वार शाखा पर उत्कीर्ण चार देवियों ऋषमनाथ को समर्पित होना, जिनके यक्षिणी के रूप में के अकनों का अध्ययन करेंगे, जो सभी जैनधर्म की विशिष्ट गरुड़वाहिनी चक्रेश्वरी का उल्लेख प्राप्त होता है, देवियां होनी चाहिए। यद्यपि इन देवियों की निश्चित निश्चित है।
पहचान संभव नहीं है, पर मात्र वाहनों के माधार पर डोर-लिटेल के बायें कोने पर ललितासन मुद्रा में इनके पहचान का प्रयास किया गया है। प्रायुधों के आधार मासीन चतुर्भुज अंबिका की मूर्ति उत्कीर्ण है। देवी के पर इन देवियों की पहचान असंभव है। क्योंकि उनके दाहिनी ओर उनका वाहन सिंह चित्रित है। जैन परपरा अंकन में परस्पर कोई विशेष अन्तर नहीं दिखता, है और मे २२वे तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षिणी के रूप में मान्य कुछ सीमित प्रतीकों को ही थोड़े बहुत परिवर्तनों के साथ प्रबिका को खजुराहो के जैन शिल्प में काफी लोकप्रियता प्रत्येक के साथ चित्रित किया गया है । ललितासन मुद्रा प्राप्त थी। अंबिका की लोकप्रियता का प्रमाण उनको मे प्रासोन सभी चतुर्भुज मूर्तिया अर्घ स्तंभों से वेष्टित स्वतत्र मूर्तियों के अतिरिक्त डोर-लिटेल्स के कोनों पर रथिकानो में स्थापित है । सर्व प्रथम हम बायीं द्वार शाखा उत्कीर्ण अबिका को प्राकृतियां भी हैं। अंबिका की ऊपरी की मतियों का अध्ययन करेगे। ऊपर से पहली मूर्ति के और निचली दाहिनी भजात्रों में क्रमशः कमल और ऊपरी दाहिनी और बायी भुजाप्रो मे क्रमशः शक्ति और प्राम्रलगबि चित्रित है, जबकि ऊपरी वाम भजा मे पुस्तक पाश (?) प्रदर्शित है, जब कि निचली अनुरूप भुजाओं व कमल । देवी की बायी गोद में उनका पूत्र, जिसे व से अभय और वरद मुद्रा व्यक्त है । देवा के बाया और अपनी निचली भजा मे सहारा दे रही है, बैठा है जो उत्कीर्ण वाहन बल या श्वान (?) प्रतीत होता है । यदि अपने हाथ से देवी के स्तन छ रहा है । देवी के शीर्ष वाहन को बल स्वीकार किया जाय तो इस प्राकृति को भाग के दोनो ओर पाम्रफल से युक्त टहनिया चित्रित है। पहचान हवे तीर्थकर सुविधिनाथ की यक्षिणी सुतारा से
डोर लिटेल के दाहिने कोने पर पाच सर्पफणों के की जा सकती है, जिसका वाहन बैल है । पर यह ध्यातव्य घटाटापा स प्राच्छादित चतुर्भुज देवी ललितासन मुद्रा में है कि बैल वाहन केवल श्वेताबर परम्परा में वर्णित है उत्कोण है। सर्पफणों और पाश के प्राधार पर इसकी और दिगंबर परम्परा मे इसी को महाकाली नाम से पहचान २३वें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की यक्षिणी पावती से सबोधित किया गया है और इसका वाहन कूर्म बताया की जा सकती है । पद्मावती की ऊपरी दाहिनी व बायी गया है । दूसरी मूर्ति की दाहिनी ऊपरी व निचली भुजाओं भुजाओं में क्रमश: पाश और कमल (प्रकर) चित्रित है, में क्रमश: पाश और अभय मुद्रा प्रदर्शित है, जबकि बायीं जबकि निचली अनुरूप (Corresponding) भजामों में ऊपरी भुजा में सनाल कमल । देवी की निचली वाम मुंज। अभय मुद्रा भोर कमण्डल प्रदर्शित है। देवी का वाहन खंडित है। देवी के दाहिनी भोर चित्रित वाहन गौरैया अनुपस्थित है। जान संग्रहालय, खजुराहो में स्थित एक (?) है, जिसे जैन परम्परा मे किसी भी देवी के वाहन डोर-लिटेल (नं० १४६७) में भी पद्मावती की एक रूप में नही स्वीकार किया गया है । फलत: इस देवी की मजा में पाश देखा जा सकता है।
पहचान किसी ज्ञात जैन देवी से करना संभव नहीं है। ललाटबिंब के चक्रेश्वरी चित्रण में दोनों पाश्वों में तीसरी मति के ऊपरी दाहिने व बायें हाथों मे शक्ति दो चतुर्भज खड़ी देवियां उत्कीर्ण हैं। दोनों ही प्राकृतियों व पुस्तक व कमल प्रदर्शित है, जबकि निचला दाहिना के ऊपरी दोनों हाथों में सनालकमल चित्रित हैं, जबकि हाथ भग्न है और बायें में फल (मालिग) चित्रित है। निचली दाहिनी व बायीं भुजाओं में क्रमश: वरदमुद्रा देवी के वाम पार्श्व मे प्रदर्शित वाहन निश्चित रूप से मृग