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खजुराहो के आदिनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार की मूर्तियां
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित खजुराहो का भारतीय शाखामों और चौखट पर उत्कीर्ण विभिन्न देवियो के वास्तु तथा शिला कला के क्षेत्र मे महत्त्वपूर्ण स्थान है। सकन मे है। कुछ प्रमुख जैन देवियों यथा लक्ष्मी, पद्मावर्तमान खजुराहो ग्राम के समीप अवस्थित जैन मन्दिरों वती, प्रबिका, चक्रेश्वरी के अतिरिक्त प्रवेश द्वार पर का समूह खजुराहो का पूर्वी देव मन्दिर समूह कहलाता उत्कीर्ण अन्य प्राकृतियों की निश्चित पहचान उनके जैन है। घण्टई मन्दिर के अतिरिक्त समस्त नवीन व प्राचीन परम्परा मे प्राप्त वर्णनों से मेल न खाने की वजह से कठिन दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित जैन मन्दिर एक विशाल है। फिर भी इस लेख में मात्र वाहन के प्राचार पर, किन्तु नवीन परकोटे के अन्दर स्थित है । ग्यारहवी शती विशेषकर द्वारा शाखायो के, प्राकृतियों की पहचान की मे निर्मित आदिनाथ मन्दिर, जिसके प्रवेश द्वार पर चेष्टा की गई है, क्योंकि जहाँ तक मुजापो में प्रदर्शित उत्कीर्ण मूतियों का अध्ययन हमारा प्रभीष्ट है, पार्श्वनाथ प्रायुधों या प्रतीकों के प्राधार पर इनके पहचान का प्रश्न मन्दिर (६५४ ईसवी) के समीप हो स्थित है। जन है, वह उनमे किसी निश्चिन क्रम या किसी विशेष अन्तर शिल्प के अध्ययन की दृष्टि से ग्रादिनाथ मान्दर का के प्रभाव में सम्भव नहीं है। खजुराहो के जैन शिल्प में विशिष्टता मन्दिर की बाहरी भित्तियो के विभिन्न थि
सर्वत्र कलाकार ने परम्परा के निर्वाह से ज्यादा नवीनकामों में स्थापित १६ जन देवियों की मूर्तियो, जिनमे से ताओ के समावेश की ओर ध्यान दिया है। कुछ विशिष्ट होमतियाँ संप्रति अपने स्थान से गायब है और जो जैन देवो यथा, अबिका, सरस्वती, चक्रेश्वरी, पद्मावती, लक्ष्मी, धर्म के १६ विद्या देवियो का प्रकन करती प्रतीत होती कोर गोख..
कुबेर, गोमुख, धरणेन्द्र के अकन मे ही कुछ सीमा तक है और प्रवेश द्वार के सोहवटी (डोर लिटेल) द्वार कलाकार जैन परम्परा का निर्वाह करता हुआ प्रतीत जगतकीति एक हो समय में इस स्थान पर आये होता है। यहां यह उल्लेख करना अनूचित न होगा कि
और उनके उपलक्ष में एक बड़ा उत्सव लोगों द्वारा प्रवेश द्वार की सभा प्राकृतियों के वाहन, प्रायुध व मनाया गया।" भक्तामर स्तोत्रवृत्ति का प्रति स्वरूप काफी अस्पष्ट है। सभी चतुर्भज प्राकृतियाँ प्रर्ध नयनरुचि ने इसो स्थान पर तैयार को ।२५ स्तभों से वेष्टित अलग-अलग रथिका में स्थापित है।
सामाजिक दष्टि से भी नरेणा का बड़ा महत्व प्रवेश द्वार के मध्य मे ललाटबिंब पर उत्कीण चतुहै क्योकि साढ़े बारह वैश्यो की जातियो में नरणा
भुज चक्रश्वरी ललितासन मुद्रा में प्रासान है, जिसका जाति का भा उल्लेख हे जसा १६३६ ई० मे लिखी।
एक पैर नीचे लटका है और दूसरा भासन पर स्थित है। हई सिहासन बत्तीसी से पता चलता है।" अब भा
दवी की ऊपरा दाहिनी व बाथी भजामो में क्रमशः गदा कुम्हारो के गोत्रों में इस स्थान के नाम पर नरेणा
और कमल (?) प्रदर्शित है, जब कि निचली भुजामो म कुम्हार मिलते हैं।
अभय मुद्रा (दाहिना) पार शख (बायी)। दवो के २१. उदयपुर के सभवनाथ के मन्दिर मे भट्रारक प्रासन क नीच प्रदशित उड्डायमान मानव प्राकृति निश्चित पट्टावली, देखो अथ सख्या ४३० ।
रूप से देवी का वाहन गरुड़ है। देवी के दाहिने पर के २२. बून्दी के शास्त्र भहार का प्रथ न० २४७ ।
नीचे अवस्थित एक भग्न प्राकृति देवी का उपासक है। २३. जैन गर्जन कवियो, जिल्द १.० २३५ ।
इस चित्रण मे चक्रेश्वरी के हाथों में सदैव प्रदर्शित चक्र