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नरेणा का इतिहास
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अपने भाई शम्सखां को दिया। शम्सखां के पश्चात् जगमल ने तेजसिंह और हम्मारदेव को हराया फिरोजखां सुलतान हमा। इस समय नरेणा भी और जोबनेर और नरेणा पर अपना अधिकार कर मागोर के अन्तर्गत था। मोकल जो १४२० ई० में लिया। सम्राट अकबर ने उसको एक हजार का मेवाड़ का महाराणा हुआ, उसने नागौर के सुल्तान इनामत दिया।" महाराणा प्रताप के विरोध में फिरोजखां को हराकर समस्त सपादलक्ष को जीत लड़ने के लिए वह मानसिंह के साथ गया । जगमल लिया।" इस प्रकार नरेणा भी मोकल के अधिकार के दो पुत्र थे। एक का नाम खंगार और दूसरे का में पा गया। बाद में फिरोजखां के छोटे भाई नाम रामचन्द्र। बड़े पूत्र खंगार से खंगारवंश मुजेरखां ने मोकल को हराकर नरेणा को फिर से प्रारम्भ हुआ जो जोबनेर और नरेणा पर राज्य हस्तगत किया। १४३७ ई० में उसने किले तथा करता था। उसके छोटे लड़के ने जम्बू राज्य की तालाब की मरम्मत करवाई तथा अपने नाम पर स्थापना की और इस कारण वह काश्मीर क तालाब का नाम रखा।" यहां के मुसलमान राजाओं का पुरखा समझा जाता है। राव खंगार सुल्तानों ने हिन्दुओं के मन्दिरों को तोड़ा। मुजेद- एक बहादुर सेनापति था जिसने सिरोही के राव खां ने यहां के प्राचीन कला-पूर्ण हिन्दू मन्दिरों को सुल्तान तथा बून्दी के राव दुर्जनसाल हाड़ा को नष्ट करके जामा मस्जिद बनवाई। इस मस्जिद हराया। राव खंगार के नारायणदास तथा मनोहरके स्तम्भ अब भी हिन्दू कला का दिग्दर्शन कराते दास दो पुत्र थे जिनको नरेणा तथा जोबनेर की हैं । मस्जिद के समीप ही एक विशाल दरवाजा है अलग-अलग जागोर दी गई। नारायणदास के तीन जो त्रिपोलिया के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी लड़के दर्जनसाल, शत्रसाल तथा गिरधरदास प्राचीन हिन्द मन्दिरों के अवशेषों से बना है। अब अयोग्य तथा निकम्मे होने के कारण भी कलापूर्ण आकृति के खुदे हुए चित्र इसकी शोभा जहांगीर को अपनी सेवाओं से खुश नहीं रख सके । बढाते हैं । मेवाड़ का फिर से नरेणा पर अधिकार इस कारण जहांगीर ने २४६००० की नारायणदास हो गया। राणा कपूर के १४३६ के शिलालेख से को जागीर बीकानेर के राजा सरसिंह को दे दो।" पता चलता है कि मेवाड़ के राणा कंभा ने फिर से तथा नरेणा नारायणदास के भतीजे भोजराज को नरेणा के किले को जीत लिया । अकबर के राज्य दे दिया। भोजराज एक वीर सैनिक था। उसने (१५५६ ई०-१६०६) यह नगर अजमेर सरकार जहागीर जनाने की खुरम के अचानक अाक्रमण से के आधीन था।"१६०५ ई० के शिलालेख के रक्षा की। उसकी सेवाओं से प्रभावित होकर अनुसार अकबर स्वयं इस स्थान पर आया था। सम्राट् ने उसका मन्सब बढ़ा दिया। वोर होने के
मुगलों के समय में नरेणा पर कच्छावों का साथ-साथ भोजराज को धर्म के प्रति रुचि थी। राज्य रहा । पाम्बेर के राजा पृथ्वीराज क पत्र उसने नरेणा को दादुपंथी संप्रदाय के संस्थापक
दाददयाल को दान में दे दिया। इसके पश्चात १५. एनुअल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम प्रजमेर,
नरेणा इस सम्प्रदाय का एक बड़ा केन्द्र हो गया। . १६२४-२५ न०६ । १६. एपिग्राफिया इंडो मुस्लिमिका, १८१३-२४,
___ मध्य कालीन युग में भी नरेणा के लोग जैन १० १५ । प्रभो इस तालाब को गौरीशंकर तालाब
धर्म का पालन करते थे । प्रायः जैन साघु इस समय कहते हैं।
यहां पर आते जाते रहते थे। १६९१ ई० में ईडर १७. पाइने अकयरी, जिल्द२, पृ० २७३ ।
के भट्टारक क्षेमेन्द्र कीति और चाकसू के भद्रारक १८. प्राकियालाजिकल सर्वे इडियन एनमल रिपोर्ट १९. वीर विनोद, १० १९७ । १९२५-२६, पृ० १२८ ।।
२०. दयालदास की ख्याति पृ० १५२ ।