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________________ २१४ वर्ष २४, कि० ५ फाल्गुन सुदी भौमे श्रीमदगया कर्णदेव विजयराज्ये राष्ट्रकूटकुलोद्भव, महासामन्ताधिपति श्रीमद् गोल्हण देवस्य प्रवर्धमानस्य । श्रीमद् गोलापूर्वाम्नाये वेल्लप्रभाटिकायमुरुकृताम्नाये तर्क-तार्किक छत्रचूडामणि- श्रीमन्माधव नन्दिनानुगृहीतः साधु श्रीसर्वधरः तस्य पुत्रः महाभोज : धर्म दानाध्ययनरतः । तेनेदं कारितं रम्यं शान्तिनाथस्य मन्दिरम् । अनेकान्त स्वलात्यम्सज्ञक-सूत्रधारः श्रेष्ठिनामा, तेन वितान च महाश्वेतं निर्मितमतिसुन्दरम् । श्रीमच्चन्द्रकराचार्याम्नाये देशीयगणान्वये समस्त विद्या विनयानन्दित विद्वज्जनाः प्रतिष्ठाचार्याः श्रीमन्तः सुभद्राः चिरं जयतु ।” इस लेख मे दूसरे वाक्य मे "गोला पूर्वाम्नाये” निश्चित ही " साधु श्री सर्वधरः तस्य पुत्रः महाभोजः " के साथ सम्बद्ध है क्योकि प्राचार्य (माधवन्दि ) को जाति कभी नही लिखी जाती । इस तरह यह गोला पूर्व जाति का प्राचीनतम उल्लेख है । लेकिन आश्चर्य की बात है कि बहोरीबन्द क्षेत्र द्वारा अक्सर इस तरह का प्रचार किया जाता है कि "विक्रम सं० १०१० एक हजार फागुन बदी ६ सोम श्रीमद् गयाकर्णदेव ने प्रतिष्ठा कराई।" अभी मन्दिर के बाहर एक बोर्ड लगाया गया है । जिसमें पहला वाक्य तो ठीक लगाया गया है लेकिन गोलापूर्वाम्नाये" शब्द विचित्र तरह से तोड़ा गया है जिससे "गोल्ला" किसी व्यक्ति के नाम का भाग बन गया है। दूसरे शब्दों में "गोला पूर्वाम्नाये" शब्द प्रबन्धक स्वीकार नहीं करते । मैं अभी बहोरीबंद गया था। लेकिन मूर्ति पर चिकनाई रखने के उद्देश्य से तेल का लेपन किया जाता है । इस कारण लेख पर तेल की परत चढ़ी हुई है । प्रबंधक श्री कल्याणदास जो, जो उत्साही और योग्य पुरुष हैं, उन्हें तेल की परत साफ करवा कर लेख की फोटो कापी प्रकाशित कराना चाहिए । (३) प्रहार के मूर्ति लेखों में एक बात नोट करने की है। मूर्तियों के निर्माता विविध जातियों के व्यक्ति हैं, जिन्होंने मूर्तियों का निर्माण करा कर प्रतिष्ठित किया है । इनसे विविध उपजातियों के नामों का परिज्ञान होता है । इनमें २४ गोल पूर्वो की (१२०२ से अब तक) १५ जैसवाल (सं० १२०० से १२८८ तक ) १३ गृहपति (सं० १२०३ से १२३७ तक ) है । अन्य जातियां पोरपाट (परवार), खन्डेलवाल, मेडवाल, लमेंचू, मइडित, माधुव, गोलाराड, गगंराट, वैश्य, माथुर, महेशणउ, देउवाल, र अवधपुरा है। एक मूर्ति " ठक्कुर पद्मसिंह" की है जो स्पष्टतः क्षत्रिय वर्ण के होंगे। एक अन्य श्रवधपुरा जाति की मूर्ति में श्रावक के नाम के आगे 'ठक्कुर' है। यह गोत्र है। यहां ठकुर शब्द जाति वाचक नही है । कुछ मूर्तियों के निर्माताओं के प्रागे 'पंडित' लगा है । ये ब्राह्मण होगे । 'कुटकान्वय' के लेख उल्लेखनीय है । इनके निर्मातानों के नाम के आगे 'पंडित' है लेकिन यह 'प्रन्वय' पिता-पुत्र वंश परम्परा का नहीं, गुरु-शिष्य परम्परा का लगता 1 संवत् १७२० के एक लेख में गोलापूर्व जाति के पंथवार गोत्र का उल्लेख है । यह गोत्र वर्तमान में नष्ट हो चुका है। (४) वर्तमान में गोलापूर्वो का स्वाभिमान प्रसिद्ध है । लगता है यह प्रवृत्ति भूत काल मे भी थी । महार के सं० १२८० के मूर्तिलेख में प्रख्यातवंशे गोलापूर्वान्वये" है । कवि शंकर ने सं० १५२६ में हरिषेण चरित्र में लिखा है- "गोलापूर्व वंश सुपवित्त ।" [ अनेकांत अप्रैल ७१]
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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