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नरेणा का इतिहास
____डा० कैलाशचन्द्र जैन नरेणा राजस्थान में फुलेरा जंक्शन से करीब किन्तु यह विचार ठोक ज्ञात नहीं होता है । अलवर बारह मील की दूरी पर स्थित है। यह स्थान के पास वाला नरायणपुर दसवी और ग्यारहवीं ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत प्राचीन है तथा ग्यारहवी शताब्दी में नरायण के नाम से प्रसिद्ध नहीं था। और बारहवीं सदी में समृद्व अवस्था में था। शिला- इसके विपरीत नरेणा प्राचीन समय में नरायण के लेखों और साहित्य में इसके प्राचीन नाम, 'नराण' नाम से विख्यात था। यह नगर उस समय समृद्धिऔर नराणक' मिलते हैं । इस पर सांभर और शाली था तथा यहां धनी व्यक्ति वसते थे। यहां अजमेर के चौहानों का राज्य था। उस समय यह पर जमीन से निकली हई दसवीं व ग्य सैनिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान समझा शताब्दी की मूर्तियाँ इस बात को सिद्ध करती हैं जाता था । ११७२ ई० में पृथ्वीराज तृतीय ने यहां कि इस स्थान पर मुसलमानों का अाक्रमण हुमा पर अपना सैनिक कैम्प (पड़ाव) डाला था। था। जो राजा महमूद गजनी से लड़ा था, वह इसका सनिक महत्व राणा कंभा के समय (१४३३- शाकभरी के दर्लभराज का पुत्र गोविंदराज द्वितीय ६८) तक चलता रहा। वह इसके प्रसिद्ध किलों था। फिरिश्ता भी इस बात का उल्लेख करता है का उल्लेख करता है जिसको कि जीतना व तोडना कि महमद सांभर की तरफ से सोमनाथ की भोर बड़ा कठिन है।
आया था। नरेणा में प्रारम्भ में मुसलमानों के आक्रमण
चौहानों के राज्य में नरेणा जैनधर्म का बड़ा हुए जान पड़ते हैं। १००६ ई० में महमद गजनी केन्द्र हो गया था। बारहवीं सदी के लेखक सिद्धसेन ने नरायणा पर पाक्रमण किया। यहां का राजा सूरि ने इसको अपने सकल तीर्थस्तोत्र में जैनियों बड़ी बहादुरी से अपने देश की रक्षा के लिए लडा के प्रसिद्ध तीर्थ-रूप में वर्णन किया है। जैन साधु किन्तु उसकी हार हुई । सुल्तान ने बुरी तरह से यहां की मूर्तियों को तोड़ा तथा बड़ी लूटमार करके गजनी को लौट गया। प्राचीन समय में व्यापार की दृष्टि से भी इसका महत्व था; क्योंकि इसका व्यापार भारत के कोने-कोने तथा विदेशों से होता था। प्रसिद्ध इतिहासकार कनिषम ने इस स्थान को अलवर के पास वाला नरायणपुर बतलाया है। अन्य विद्वानों ने भी इसको स्वीकार कर लिया है।
१. खरतरं गच्छ ब,हद् गुर्वावलि, पृ० २२ । २. पाटण के जन भडारों की सूची, पृ० ३१२-३६१ । ३. एपिग्राफिया इंडिका जिल्द २६, पृ० ८४। ४. खरतर गच्छ बृहद् गुर्वावलि, पृ० २५ ।
चरणपादुका जैनाचार्य, और सरस्वती ५. प्राकियालाजिकल सर्वे इंडियल एगुअल रिपोर्ट इस स्थान पर रहा करते थे। १०२६ ई० को १९०७-०८, पृ० २०५।
७. वही, पृ२३ । ६. दी स्ट्रिगल फोर अम्पायर, ११ ।
८. पाटन के जैन भंडारों की सूची ३० ३१२-१६ ।