SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोध-कण श्री यशवंत कुमार मलया (१) दमोह से कुछ दूरी पर कुंअरपुर गाँव है । अभी अनेक तीर्थकर मूर्तियों के अतिरिक्त यहाँ के दो जैन मै वहाँ गया था और उसे शोध की सम्भावनामों से भर मूर्ति खण्ड उल्लेखनीय है । एक सर्वतोभद्र चौपहल मृतिपूर पाया। यहाँ बौद्ध, जैन, शंव और वैष्णव चारों मतो खण्ड में हर पार्श्व पर एक ऊपर एक नीचे इस तरह दो की मूर्तियाँ पायी जाती है। एक बुद्धमूर्ति के पादमूल अंकन है। एक पार्श्व पर ऊपर एक पद्मासन तीर्थंकर और मे दो पंक्तियों का लेख अकित है-"प्रोम् नमो बुद्धाय । नीचे एक चतुर्भुजा देवी अंकित है। तीर्थकर के नीचे ये धर्मा हेतु प्रभवा हेतु तेषाम् तथा गतो ह्यवदत श्री "वर्धमान देव" और देवी के नीचे "श्री चक्रेश्वरी महादेवी" नी। एव वादी महाश्रमणः ।" उत्कीर्ण किया हुआ है यह आश्चर्य जनक है; क्योंकि दसरा और तीसरा वाक्य प्रसिद्ध बौद्ध मत्र है, जो अन्तिम तीर्थकर वर्धमान की शासन देवी सिद्धायिनी है। नालदा मे बहुतायत से पाया गया है । इस इलाके मे दूसरे पाव पर ऊपर पद्मासन तीर्थकर और नीचे एक बौद्ध मूर्ति पाये जाने का यह संभवतः पहला अवसर है। बालक को लिए देवी प्रकित है। तीर्थंकर के नीचे शान्ति एक दान स्तम्भ मे सं० १३६५ में श्री वाघदेव जू नाथ अकित है। तीसरे पार्श्व के सिर पर फणाटोप वाले द्वारा कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण को दान दिए जाने का एक पद्मासन और दो खङ्गासन तीर्थकर और इनके नीचे उल्लेख है। एक छ: भुजा वाली ढाल, धनुष, तलवार प्रादि लिए देवी अंकित है। इनके नीचे का लेख मिट गया है। चौथे बगल नाग और नागिन की मूर्तिया उत्कीर्ण हैं। उनके । पार्श्व पर ऊपर सरस्वती अंकित है और नीचे दो शिष्यों ऊपर ध्यानमुद्रा मे तीर्थकर-युग्म की प्रतिमाएं है चरण को उपदेश देते हुए प्राचार्य अंकित है। इनके नीचे लेख में चौकी के ऊपर दो अलकृत सिंह दिखाये गए है। यह 'रामसिंघ नामक किसी व्यक्ति का उल्लेख है। मूर्ति भगवान महावीर की पूर्वोक्त प्रतिमा की तरह बड़ी कलापूर्ण है। संभवतः मध्य काल में पारसनाथ किला की इसी तरह के एक अन्य प्रश के एक पार्श्व पर युद्ध भूमि पर निर्मित मुख्य मदिर की यह मूर्ति थी। रथ दो हाथी-सवार और दूसरे पाश्र्व पर एक पार्यिका पारस नाथ किले के कितने ही प्राचीन अवशेष इधर दो अन्य प्रायिकामों को उपदेश देती हुई अकित है । इसके नीचे एक लेख था, जिसके कुछ प्रक्षर ही शेष रह उधर पहुच गए है। मुझे नगीना के जैन मंदिर में कई गए हैं । जिससे उनके सम्बन्ध में कुछ ज्ञात नही हो प्राचीन मूर्तिया देखने को मिली, जिनकी शिल्प-रचना सका। पारस नाथ की कला के अनुरूप है। इन मतियों में ध्यान मायिकामों का प्रकन पाये जाने का यह पहला ही मुद्रा में बैठे हुए तीथंकर की एक मूर्ति विशेष उल्लेखनीय प्रवसर है । लिपि के आधार पर दोनों मूर्ति खण्ड १२वीं है। स्तम्भ का एक भाग भी यहा सुरक्षित है जिस पर खडगासन में भगवान तीर्थकर दिखाए गए हैं इन सभी शताब्दी के मालूम होते हैं । प्राचीन अवशेषों को सुरक्षित रखना प्रावश्यक है। मध्य (२) बहोरीबंद की शाति नाथ भगवान की विशाल काल मे उत्तर भारत मे जैन धर्म का जो विकास हमा मूर्ति में एक लेख उत्कीणित है। इस लेख को श्री शकरलाल उसे जानने मे ये कला कृतियाँ तथा अभिलेख सहायक अधिकारी पुरातत्व विभाग (नवभारत १६-१२-५४ मे) ने सिद्ध हुए हैं। इस तरह पढ़ा था-"स्वस्ति श्री वि० सं० १०१०
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy