________________
२१२, वर्ष २४, कि० ५
अनेकान्त
केन्द्र हो गया था। जान पड़ता है कि वहां एक बड़ा जैन सुन्दर द्वार स्तम्भ भी मिले है। एक स्तम्भ के नीचे मकर विहार भी था। इस स्थान की खुदाई से प्राचीन इमारतों के ऊपर खडी हुई गगा दिखाई गई है। उनके अगल-बगल के कई अवशेष प्रकाश में पाये हैं। किला का सर्वेक्षण दो परिचारिकाएं त्रिभगी भाव में प्रदर्शित है। ये मूर्तियां मोर उत्खनन करने पर अधिक महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हो ग्रैवेयक, स्तनहार, किकिणि सहित मेखला तथा अन्य सकेगी।
अलंकरण धारण किये हुए है। खम्भे के ऊपर पत्रावली पारसनाथ किला की जो प्रांशिक सफाई हुई है उसमे का अंकन दिखाया गया है। अनेक बेल-बटेदार इंटें, पत्थर के कला पूर्ण खभे, सिरदल, सं०५-यमुना सहित द्वार स्तम्भ-इस स्तम्भ पर देवली तथा तीर्थंकर मतियां प्राप्त हुई हैं। अनेक शिला नीचे के भाग में अपने वाहन कच्छप पर प्रारूढ़ यमना पट्रों पर बेल-बटे का काम बहुत सुन्दर है। एक पत्थर पर दिखाई गई है। इनके साथ भी उसी प्रकार परिचारिकाएँ सगीत मे सलग्न स्त्री-पुरुषों की मतियां उकेरी हुई हैं। प्रशित है जैसी कि पहले द्वार स्तम्भ पर । इससे पता इन अवशेषों में से मुख्य का परिचय नीचे दिया जाता है- चलता है कि ये दोनों खम्भे एक ही द्वार पर लगे हुए थे।
सं०१-दरवाजे का सिरवल-इस सिरदल के बीच द्वार खम्भों के ऊपर गंगा-यमुना का चित्रण गुप्त काल के मे कमल-पुष्पों के ऊपर दो सिंह बैठे हए दिखाये गए है। प्रारम्भ से मिलने लगता है। गुप्त काल के महाकवि सिंहासन के ऊपर भगवान तीर्थंकर ध्यान मुद्रा में कालीदास ने दरवाजे पर लगी हुई देवी रूपा गगा-यमना प्रवस्थित है। उनके अगल-बगल में एक-एक तीर्थंकर को मूतियो का उल्लेख इस प्रकार किया गया हैमुर्ति खड्गासन में दिखाई गई है। मध्य भाग के दोनों "मूर्ते च गगा यमुने तदानी सचामरे देव से विषाताम्" ओर भी इसी प्रकार का चित्रण है । सिरदल के दोनों (कुमार सभव ७, ४२) अर्थात् उस समय मति रूप मे कोनों पर एक-एक तीर्थकर प्रतिमा खड्गासन मे दो खम्भों गगा और यमुना हाथो मे चॅवर लिए हुए देव की सेवा मे के बीच मे बनी है। सभी तीर्थकरो के ऊपर छत्र है। उपस्थित थी।)
डलीका भाग-यह अवशेष उस स्थान सं० ६-द्वारपाल सहित द्वार-स्तम्भ-इस खम्भे से प्राप्त प्रा जहाँ से भगवान महावीर जी का बड़ा के नीचे एक मोटा दड लिए दरपाल खडा है। उसकी प्रतिमा मिली है। इसके बीच में कल्प वृक्ष का अलकरण लम्बी दाढ़ी तथा बालो का जूडा दर्शनीय है । इसका ढंग है. जिसके प्रत्येक मोर दो-दो देवता हाथ में मंगल घट उसी प्रकार का है जैसा कि मध्य कालीन चदेल कला में लिए हए खड़े है। उनके खड़े होने का विभगी भाव बहुत मिलता है। इस खम्भे के ऊपरी भाग में फलों का प्राषिक है। इस पत्थर मे किनारे की ओर शेर की अलकरण दिखाया गया है। मति है। ऐसी ही मूर्ति पत्थर के दायें कोने पर भी थी, सं०७-टा, जो टूट गई है।
का केवल नीचे का हिस्सा बचा है, जिस पर पूर्वोक्त ढग स०३-संगीत का दृश्य-एक अन्य देहली पर, जो का एक द्वारपाल खड़ा है। इसकी भी वेशभूषा पहले के किले के बीच से मिली थी, संगीत का दृश्य बड़ी ही द्वरपाल जैसी है। सुन्दरता से प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक प्रोर कई सं०८-भगवान पार्श्वनाथ को मूर्ति-यह मूर्ति प्राकृतियां तथा अल करण बने हैं। तथा दूसरी ओर भाव बढापुर गांव से प्राई थी। यह पारसनाथ किला से ही पूर्ण मद्रा में एक युवती नृत्य कर रही है । उसके अगल वहां किसी समय गई होगी। दुर्भाग्य से इसका मुह, हाथ बगल मदंग और मंजीर बजाने वाले पुरुष उकेरे हुए हैं। तथा पैरों का भाग तोड़ डाला गया है । यह मूर्ति काफी इन तीनों की वेषभूषा बड़े कला पूर्ण ढंग से दिखाई विशाल है। भगवान ध्यान मुद्रा मे सिंहासन के ऊपर बैठे गई है।
हुए हैं । प्रासन पर सपं की ऐंडकार कुण्डलियां दिखाई सं० ४-बार स्तम्भ-पारस नाथ किले से अनेक गई हैं और सिर के ऊपर फण का घटाटोप है। अगल