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पारसनाथ किला के जैन अवशेष
कृष्णदत्त वाजपेयी
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिला में नगीना रेलवे पत्थर की बनी है और ऊंचाई में दो फूट पाठच तथा स्टेशन से लगभग ह मील उत्तर-पूर्व को मोर बढापुर चौड़ाई में दो फुट है। मूर्ति जैन तीर्थकर महावीर की है। नामक कसबा है। वहां से करीब ३ मील पूर्व एक प्राचीन भगवान महावीर कमलाकित चौकी पर ध्यान मुद्रा में किला' के भग्नावशेष दिखाई पड़ते है। इसे 'पारसनाथ प्रासीन हैं। उनके एक मोर नेमिनाथ जी की तथा दूसरी किला' कहते है। इस नाम से अनुमान होता है कि किसी मोर चन्द्र प्रभु जी की खड़ी मूर्तियां हैं। तीनों प्रतिमानों समय वहाँ जनतीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर था। के प्रभा मंडल उत्फुल्ल कमलों से युक्त है। प्रधान मति कुछ वर्ष पूर्व इन तीर्थकर की एक विशाल काय मग्न के शिर के दोनों मोर कल्पवृक्ष के पत्ते प्रदर्शित हैं। मति प्रतिमा बढापुर गांव से प्राप्त हुई है जिससे उक्त अनुमान के धुंघराले बाल तथा ऊपर के तीन छत्र भी दर्शनीय है। की पुष्टि होती है।
छत्रों के अगल-बगल सुसज्जित हाथी दिखाये गए हैं, इस किले के सम्बन्ध में अनेक जन श्रुतियां हैं। एक जिनकी पीठ के पीछे कला पूर्ण स्तम्भ है। हाधियों के जन श्रति यह है कि पारस नाम के राजा ने वहाँ अपना नीचे हाथों में माला लिये हुए दो विद्याधर अंकित हैं। किला बनवाया था। श्रावस्ती के शासक सुहेलदेव के प्रधान तथा छोटी तीर्थंकर प्रतिमानों के पाव में चोरी पतंजों के साथ भी इस किले का सम्बन्ध जोड़ा जाता है। वाहक दिखाए गए हैं। को प्राचीन अवशेष अब मिले हैं उनसे इतना कहा
जामति की चौकी भी काफी प्रलंकृत है। उसके बीच सकता है कि ई० की दशवी शताब्दी के लगभग किसी में चक्र है, जिसके दोनों मोर एक-एक सिंह दिखाया गया शासक ने वहां अपना किला बनवाया और कई जैन मदिरों है। चक्र के ऊपर कीर्ति मुख का चित्रण है। चौकी के का निर्माण कराया।
एक किनारे पर धन के देवता कुबेर दिखाये गए हैं। और यह बताना कठिन है कि इस किले तथा मन्दिरों को
दूसरी भोर गोद में बच्चा लिए देवी मंबिका है। चौकी
दसरी पोर गोट में rearf किसने नष्ट किया। संभव है कि रुहेलों के समय में या के निचले पहसू पर एक पंक्ति में ब्राह्मी लेख है जो इस उनके पहले यह बरबादी हुई हो । कालान्तर में इस स्थान प्रकार हैकोपेक्षित छोड दिया गया और धीरे-धीरे वह बीहड़ 'श्री विरुद्धमन समिदेवः। स्म १०६७ राणलसत्त भरप बन गया।
प्रतिमा प्रठपि ।' (अर्थात् संवत् १०६७ मे राणल पुत्र वर्ष पहले मुझे इस स्थान को देखने का अवसर भरथ (भरत) द्वारा श्री वर्धमान स्वामी की मूर्ति प्राप्त हगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने जंगल के एक भाग प्रतिष्ठापित की गई। को साफ करवा कर उसे खेती के योग्य बना दिया है । वहाँ लेख की भाषा शुद्ध संस्कृत नहीं है। पहला अंश 'काशी वाला' नाम से एक बस्ती भी भाबाद हो गई है। 'श्री बद्धमान स्वामिदेवः' का बिगड़ा हमा रूप है। स्म' इसके उत्साही निवासियों ने जमीन को हमवार कर उसे शब्द विक्रम संवत् के लिए प्रयुक्त हमा है। ऐसा मानने खेती के योग्य कर लिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने वहाँ पर मूर्ति की प्रतिष्ठा की तिथि १०१०ई० माती।। पर बिखरी हुई पुरानी मूर्तियों की भी रक्षा की है। पारसनाथ किले से इस अभिलिखित मति तथा समकालीन सरदार रतनसिंह नाम के सज्जन ने किला से एक प्रत्यन्त मन्य मूर्तियों के प्राप्त होने से पता चलता है कि १०वी कलापूर्ण पाषाण-प्रतिमा प्राप्त की है। यह बलुये सफेद ११वीं शती में पारसनाय किला जैन धर्म का एक पच्छा