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अपभ्रंश भाषा के जैन कवियों का नोति-वर्णन
डा० बालकृष्ण 'अकिंचन'
उत्कृष्ट दर्शन, पवित्र आचरण तथा अहिंसा-प्रचार विभाजित किया जाता है --प्रबन्ध काव्य और मुक्तक की दृष्टि से जैनधर्म विश्व मानवता का महान उपकारक काव्य । प्रबन्ध काम्पो को भी समग्रता एवं खण्डता की है । प्रारम्भिक काल से ही जैन-मेघा, साहित्य-जगत की दृष्टि से महाकाव्य एवं खण्ड काव्य को दो वर्गों में बाँटा सम्पूर्ण चुनौतियों को स्वीकार करती पा रही है। प्राचीन गया है। अपभ्रंश के जैन कवियों ने मुक्तक एवं प्रबन्ध जैनाचार्यों ने अपने सैद्धान्तिक प्रचार के लिए, अनेका- दोनो ही प्रकार के काव्य रचे है। प्रबन्ध के दोनो प्रकारनेक पराणों, कथानो, चरित्रों एवं चणिकायो की रचना । महाकाव्य एवं खण्ड काव्य भी अपभ्रंश काव्य में प्रचुर रूप की थी। निःसन्देह ये सभी रचनाएँ धर्म-प्रेरित है। पर मे प्राप्त है। महाकाव्य किसी भी जाति के गौरव ग्रथ होते क्या इसी कारण इन्हे काव्य गरिमा से बहिष्कृत किया जा है अपभ्रम जैन कवियों ने इस प्रकार के अनेक ग्रंथ रत्नो सकता है ? और फिर यह स्थिति केवल जैन कृतियों के से भारती-भडार को पारित किया है। पउम चरिउ, साथ ही तो नही, समस्त धार्मिक साहित्य इसी श्रेणी में गिट्टनेमि चरिउ तथा महापुराण को इम वर्ग की बृहद है । तीसरी बात यह है कि शास्त्रीय दृष्टि से त्रयी कहा जा सकता है । ये तीनो ही ग्रश भारतय नीति धर्म एवं काव्य का कोई विरोध नहीं है । काव्य काव्य के विद्यार्थी के लिए प्रमूल्य है। का विरोध नीरसता, अस्वाभाविकता एवं प्रभाव पउमचरिउ स्वयंभू कृत महा काव्य है, जिसे माहित्य से है। इसीलिए प्राचार्यों ने अन्तिम रूप से सामान्यतः स्वयभू-रामायण माना जाता है । इस किमी विषय विशेष को नहीं अपितु प्रर्थ प्रतिपादन की रामायण में कथानकों, पग तथा घटनायों को विचित्र रमणीयता को काव्य की कसौटी माना था और विदग्धता के साथ विन्यसा किया गया है। समूचे ग्रथ का इमी निष्कर्ष पर रामचरितमानस, सूरमागर एवं राग बंधान, अलकार विधान कवि की मजक नैतिक मनोवृत्ति पचाध्यायी प्रादि वैष्णव कृतिया उत्कृष्ट काव्य घोपित व्यक्त करता है। इसका समग्रतः नैतिक अनुशीलन अपने की गई है । प्रत: कोई कारण नहीं कि, अपभ्रंश भाषा को मे एक पृथक् विषय है। छोटे-बड़े वर्णनो, सूक्तियो, कथोपअनेक सरस, सुन्दर अलकृत जैन कृतियो का भी काव्य का कथनो, रूपको नथा उपमानो में नीतिका मुन्दर पुट दिया गौरव प्रदान न किया जाय । यदि राम और कृष्ण की गया है । एक उदाहरण लीजिए-- जीवन-गाथा नो से सम्बन्धित सन्देश प्रेरित उत्कृष्ट कृतिया
लक्खण कहिं गवेसहि तं जल । काव्य हो सकती है तो प्रतिभा सम्पन्न कवियो की लेखनी
सज्जण हिय उ जेम जं निम्मल ।। से रचित तीर्थंकरों तथा जैन धर्माचार्यों की पूनीत धर्म- प्रति लक्ष्मण उसी जलानग में जल लन जाते है, कथाएँ भी काव्य की मज्ञा म विभूपित की जायेगी। अप. जो मज्जन के हृदय के समान निर्मत हो। यहाँ नीति भ्रश भाषा मे रचित इस प्रकार की कृतियों के महान और काव्य का सूक्ष्म समन्वय महज ही देखा जा सकता भडार जैन मन्दिरो मे आज भी मक्षित है। किन्तु हम है। कथन को महना के साथ उमको मार्मिकता भी
उनकी चर्चा न कर हुए नितान्त प्रसिद्ध काव्य मणियों दर्शनीय है। इस प्रकार की नैतिक अभिमचि और उसकी - काही नैतिक निरीक्षण करेगे ।
सूक्ष्म काव्यात्मकता में रिट्टनेमि चरि' और भी पागे शास्त्रीय दृष्टि से जीवन काव्य-ग्रंथों को दो भागों में है। छोटी-छोटी सूक्तियो में जैन-सिद्धान्तो का मार्मिक