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________________ गोपीलाल अमर (१लीरो, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, बिल्ली-३२) ग्वालियर में जैन धर्म ग्वालियर ऐतिहासिक, प्रौद्योगिक तथा राजनीतिक महत्त्व के कारण प्रसिद्ध है। यह शहर तीन विभिन्न क्षेत्रों को मिलाकर बना है : ग्वालियर जो पहाड़ी पर किले के उत्तर में है और जो अपने मध्यकालीन स्थापत्य के लिए विख्यात है, लश्कर जो किले के दक्षिण में है मौर सन् १८१० में दौलतराव सिन्धिया के लश्कर या फौजी छावनी के रूप में बस गया था तथा मोरार जो किले के पूर्व में है और जिसमे पहले अंग्रेजों की छावनी थी। यह भूतपूर्व ग्वालियर स्टेट का मादर्श नगर था । सन् १९५६ मे मध्यप्रदेश के बनने तक यहाँ मध्यभारत की शीतकालीन राजधानी रहती थी। यहाँ मध्यकाल और प्राधुनिक काल में निर्मित अनेक इमारतें दर्शनीय हैं जिनमें स्टेशन, जामामस्जिद, मुहम्मद गौस का मकबरा, तानसेन की समाधि, किला, लक्ष्मण दरवाजा, हथियापौर दरवाजा, फूल बाग, जयविलास महल, मोती महल, कम्पू कोठी मुख्य है। किले में चार हिन्द्र और दो मुस्लिम इमारतें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं : मान मन्दिर, गुजरी महल, करण मन्दिर, विक्रम मन्दिर, जहाँगीर महल और शाहजहानी महल । कुछ महत्त्वपूर्ण हिन्दू मन्दिर भी किले में दर्शनीय हैं जैसे सूर्यदेव, ग्वालिया, चतुर्भुज, जयन्ती थोरा, तेली का मन्दिर, सास-बहू (बड़ा) सास-बहू (छोटा), मातादेवी, धोन्धदेव और महादेव । इनके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण जैन मन्दिर भी किले में है जिसका पता सन् १८४४ में श्री कनिंघम ने लगाया था। प्राचीन काल में ग्वालियर नाग, कुषाण, हूण, प्रतिहार और चम्देल शासकों के अधिकार में रहा है । मध्यकाल में इस पर सुल्तान, खिलजी, तोमर, तुगलक, लोधी और मुगल शासकों का अधिकार रहा है । इसके पश्चात् यहां काफी समय तक सिन्धिया वंश का और फिर अग्रेजों का शासन रहा। यहां के दुर्ग का अपना इतिहास है । कुछ लोगों का कथन है कि यह दुर्ग (किला) ईसा से कोई ३००० वर्ष पूर्व का बना था कुछ पुरातत्त्वज्ञ इसे ईसा की तीसरी शताब्दी में बना हुमा मानते हैं। कुछ भी हो, इस दुर्ग की गणना भारत के प्राचीन दुगों में की जाती है। ग्वालियर में जैन वाङ्मय में, जैनेतर वाङ्मय की कोष मोर वाक्पतिराज के गोडवष तथा महामहविजय भांति गोपगिरि गोवगिरि, गोपाचल, गोपालाचल, गोवाल- में प्राम नरेश मौर बप्पभद्रसरि की विस्तृत चर्चा मिलती गिरि, गोपालगिरि, गोवाल चलदु मादि नामों से उल्लि- है। बप्प भट्टसरि के उपदेश से भाम नरेश जैन श्रावक खित किया गया है। बना । उसने कन्नौज में ४०६ गज का विशाल जैन मंदिर बप्पभट्ट सरि बनवाया और उसमें १८ भार सूवर्ण की प्रतिमा स्थापित ग्वालियर इतिहास के जैन स्रोत पर्याप्त मात्रा करायी। ग्वालियर में भी उसने २३ हाथ ऊंचा जैन मंदिर में उपलब्ध हैं। पाठवीं शती ई. के उत्तरार्ष में हुए बनवाकर उसमें लेप्यमयी जैन प्रतिमा स्थापित की। कन्नौज नरेश नागावलोक, जिसे अधिकांश स्थानों पर प्रतिष्ठा के समय जब उसने सूरि जी को नमस्कार किया माम नाम से उल्लिखित किया गया है, का ग्वालियर के तब उन्होंने ११ पद्यों के स्तोत्र द्वारा उसे पाशीर्वाद जैन प्राचार्य वप्पमाद्रि सूरि के साथ इतना घनिष्ट संबंध दिया। यह स्तोत्र पन्द्रहवीं शती तक पाया जाता था। रहा है जितना चाणक्य और चन्द्रगुप्त का था।" प्रभा- इस नरेश ने तीर्थराज शत्रुजय के लिए एक यात्रासंघ चन्द्र देव के प्रभावक परित, राजशेखर सूरि के प्रबन्ध निकाला जिसमें श्वेताम्बर जैनों के साथ दिगम्बर जैन भी
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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