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१६ वर्ष २४ कि.१
प्रनेकान्त
३. धन-गणिम, परिम, मेय और परीक्ष्य के भेद से ४ १०. भांड-लोहा, तांबा, पीतल, कांसी, एलमोनियम,
प्रकार का है यथा गणिम-रुपैया, पैसा. नोट, मोहर, भरय, स्टेनलेस स्टील, जरमन सिलवर प्रादि धातुओं नारेल, सुपारी, ग्राम नारगी, मोसमी, चीकू, पुस्तक, के तथा पत्थर, कांच, काष्ठ प्लास्टिक आदि के बने
कॉपी, पेन प्रादि सब प्रकार को गिनने योग्य वस्तुएं। वर्तन उपकरण-प्रौजार-हथियार-मशीन तथा खिलौने धरिम-कंकुम, कपूर, दवाई, प्रादि धरने योग्य सब ग्रादि । छत्र, चमर, झाड़, फानूस मादि गोभाकारी वस्तुएं।
सामग्री । रेडियो, टेलिविजन, सिनेमा, हारमोनियममेय-तेल, लण, घृत, दूध, दही, सब्जी, शक्कर, गुड, तबला, सारंगी, पियानो-बैजो, बेला-वीणा ग्रामोफोन
दाल, लकडो, प्रादि तोलने-मापने के सब प्रकार के कार्ड-लाउड स्पीकर प्रादि वाद्य सामग्री जूते, सूटपदार्थ ।
के स, तिजोरी, पालमारी आदि । हीग मि च, नमक, परीक्ष्य-सोना, चांदी, जवाहरात प्रादि जाँच कर लिए जीरा, हलदी, घणियां, सौंफ, लोग, डोडा प्रादि जाने वाले पदार्थ ।
मगाले । हेमचन्द्र कृत अनेकार्थ सग्रह-मांड मूल४. धान्य-चावल, गेहूँ, चणा जुवार, बाजरा, मक्की,
वणिगविते तुरंगाणां च मंडने, नबीकूल द्वयीमध्ये जौ, मटर, मूग, उरद, तूर, मोठ, कुलथ, मसूर, तिल,
भूषणे भाजनेऽपि च ॥१२७" मंगफली आदि खेती की सब पैदावार और इनसे
(सभी प्रकार के बर्तन, प्राभूषण और महाजनी बनी खाद्य सामग्री।
दुकानदारी की वस्तुए-नेल, लूण, लकी प्रादि द्विपद-दासी, दास, नौकर, चाकर, स्त्री, पुत्र,
भांड, कहलाती है)। रत्नकरड की प्रभाचन्द्र टीकामनुष्य, तोता, मैना आदि पक्षी उपलक्षण से एक
"भांडं श्री खंड मंजिष्ठा कांस्य ताम्रादि' लिखा है । पाद वाले सभी प्रकार के वृक्ष, वेल, पौधे आदि
और भी अवशिष्ट वस्तुएं कुप्य एवं भांड मे ग्रहण वनस्पतियाँ ।
करना चाहिए कूप्य और भांड का क्षेत्र बहुत व्यापक चतुष्पद-हाथी, घोडा, ऊंट, बैल, गाय, भैस, पाड़ा, गदहा, खच्चर, बकरी, भेड आदि चौपाये पशु । क्रिया कलाप पृ० १०१, ८० में पांचवे महाव्रत के उपलक्षण से छह पांव वाले भ्रमर प्रादि और पाठ प्रकरण मे जो श्रमणो के योग्य न हो ऐसा "प्रश्रमण पांव वाले अप्पाद प्रादि जतु ।
प्रायोग्य परिग्रह" बताया है उसमें बाह्य परिग्रह विषयक ७. पान-डोली, पालकी, गाडी, रथ, नाव जहाज, अनेक वस्तुप्रो के नाम दिए है।
बोट, साइकिल, मोटर कार, जीप, टेम्पू, स्कूटर, . इसी तरह तत्त्वार्थमूत्र अ० ७ स० १७ को श्रुतसागरी रिक्सा, उड़न खटोला, वायुयान प्रादि ।
वृत्ति में चेतनाचेतन बाह्य परिग्रह का वर्णन किया है। ८. शय्यासन -- खाट, पलंग, सोफा, तख्ता, ब्रेच, मेज, "स्त्री द्वारा जिनाभिषेक" नाम के ट्रेक्ट पृ० ६७ पर
कुरसी, मड्ढा, पीढा, सिंहासन, पाटा, चौकी, तिपाई, 5. सूरजमल जी ने पचामृताभिषेक का समर्थन करते चटाई आदि सोने बैठने के सामान ।
हुए लिखा : "ये दूध दही घृतादि पदार्थ दश प्रकार के ६. कुप्य-सूती, ऊनी, रेशमी, सणी, टेरेलिन, नाइलोन, परिग्रहों में भी नहीं।"
मखमल प्रादि के वस्त्रादि । कुंकुम, चन्दन, अगुरु, अपने पक्ष के व्यामोह में मनुष्य सिद्धांत का भी किस इत्र प्रादि सुगंधित द्रव्य । सभी प्रकार की प्रसाधन तरह हनन कर देता है यह इसका ज्वलंत उदाहरण है। सामग्री ।। चौवा चन्दन अगर सुगंध, अतर, अगरजा अगर दूध दही घृतादि परिग्रह नही है तो फिर क्या हैं। प्रादि प्रबन्ध । तेल फुलेल घृतादिक जेह, बहुरि वस्त्र यह बताने का कष्ट ब्रह्मचारी जी सा० ने नही किया सब भाँति कहेह। ये सब कुप्य परिग्रह कहे ससारी । अन्यथा सिद्धांत विधान की उनकी कलई स्वयमेव खुल जीव नेनि गहे ॥७१३॥-क्रियाकोश(दौलतरामजी) जाती। (शेष पृ० २० पर)