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विशेषता है कि उसे पिता-पुत्र ने बनाया था ग्रंथ का रचना काल कवि के शब्दों मे निम्न प्रकार है
ऊर्जयंति विक्रम नृपति सवत्सर गिनि तेह | सत पठार पच्चीस अधिक समय विकारी एह ।। ३२ द्वादश में सूरज ग ( गि)नो, द्वादश श्रंशहि ऊन । द्वादशमीमा भो शुक्ल पक्ष तिथि पूर्ण ॥३३ द्वादनयतानिये, बुद्धवार वृद्धि जोग । द्वादश लगन प्रभात में श्री दिन लेख मनोग || ३४ ऋतु वसत प्रति का समय शुभ होय । वर्द्धमान भगवान गुन ग्रंथ समापति कोय ॥३५
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हिन्दी भाषा का महावीर साहित्य
भ० कुमुदचन्द्र का वर्धमान रास भी एक लघु कृति है । लेकिन भाव भाषा एवं शैली की दृष्टि से यह एक काव्य है।द्र हिन्दी के अच्छे विद्वान और उनकी अब तक बहुत सी रचनाये प्राप्त हो चुकी है और यह उन हो कृतियों में से एक नवपलब्ध कृति है ।
केशरीसिंह कृत बर्द्धमान चरित भी उसी की एक रचना है। जिसका निर्माण काल स० १८७३ है । केशरीसिंह जयपुर नगर के कवि थे और उनका साहित्य केन्द्र जयपुर नगर का लश्कर का दिगम्बर जैन मन्दिर था केशरी कृत यह पुराण मूलनः भट्टारक सकलकीति कृत वपुराण की भाषा वचन है यह रचना बालचन्द छावड़ा के पौत्र ज्ञानचन्द्र के आग्रह पर की गई थी । इसकी भाषा दौलतराम कासलीवाल की गद्य कृतियों जैसी हैं कवि ने टीका के रचना काल का निम्न प्रकार उल्लेख किया है।
सवत् अष्टादश शतक और त[ति ] हतरि जानि । सुकल पक्ष फागुन भलो, पुष्य नक्षत्र महान ॥ २१ ॥ शुक्रवार शुभ द्वादशी पूरन भयो पुरान ।
वाचो सुन जु भव्य जन पावे गुन श्रमलान ||२२|
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यहाँ उपलब्ध है । इसके बारे में सूचना एकत्रित की जा रही है।
बुधजन कृत वर्द्धमान सूचनिका एक लघु कृति है । जिसमे भगवान महावीर का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इसका रचना काल सं० १८६५ है । इसकी दसपत्र वाली एक प्रति जयपुर के एक शास्त्र भडार में संग्रहीत है जिनके महावीर राम की सूचना डा० राजाराम जी जैन द्वारा प्राप्त हुई है। इस रासे की प्रति
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मनसुख सागर कृत महावीर पुराण कोई स्वतंत्र रचना नही है किन्तु शिखर महात्म्य भाषा का ही अन्तिम अध्याय है । इस अध्याय म ६६ पद्य है इसका प्रारम्भिक अश निम्न प्रकार है ।
सुमति सदन भव करन मदन कर, सिद्धारथ जनक सुहारक वरन है । असला सुमात गात उन्नत धनुष सात,
वरस वहनार सुक्षितिज परेन है। पंचानन चिन्ह पर कुंडलपुरि विख्यात,
मी महावीर शिव सपति करन है। मनमुख उदधि निहार का पंचम में,
और कोहि मांहि जिन चरन शरण है । दोहा - सन्मति सन्य देत है पसम पसम रस लोन । सरम सरम अनुभूति उत, धर्म सुधर्म प्रवीन ॥२ महावीर के चरित को अलप कथन मनधारि 1 सुनि अंगिक गौतम कहे. मनवांछित दातार ॥३ मनमुख सागर लोहाचार्य के पट्ट के भट्टारक द्र की परम्परा में होने वाले भट्टारक गुलाबकांति के प्रशिय एव ब्रह्म सतोष सागर के शिष्य थे। रचना बालका स्पष्ट उल्लेख नही है; क्योंकि रचनाकाल वाले पद्य में एक शब्द कम है ।
भट्टारक शुभचन्द्र कृत महावीर नो विनी का एक स्तवन है जिसमे भगवान महावीर का स्तवन किया गया है। महावीर छन्द भी इसी तरह की एक मनि है जिसमे महावीर के गर्भ कल्याण का वर्णन किया गया है । १६ स्वप्नों का अच्छा वर्णन किया गया है। छन्द की भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
उक्त रचनाओ के अतिरिक्त भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित और भी कृतिया मिल सकती है लेकिन इनके सम्बन्ध मे राजस्थान, मध्यप्रदेश, देहली, ग्रागरा एव अन्य प्रदेशो की छानवीन के पश्चात् ही कोई निश्चित मन पर पहुचा जा सकता है। उपलब्ध रचनाओ का विस्तृत एवं तुलनात्मक अध्ययन शीघ्र ही किमी धन्य लेख मे प्रस्तुत किया जावेगा। *