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१६४, वर्ष २४, कि०५
अनेकान्त
सन्मतिजिन चरिउ पर सभवत: डा० राजाराम जैन पहिले हमारा विचार है कि इन ग्रन्थो को तीन भागों में प्रकाही कार्य कर चुके है और इसका प्रकाशन संभवत: रइषु शित करने की योजना है। क्योकि ४-५ रचनायो को ग्रन्थावली मे हो सकेगा।
छोड़कर शेष सभी रचनाएँ छोटी है और उनका तीन हिन्दी भाषा मे १७वी शताब्दी से ही भगवान महा- भागों में अच्छी तरह प्रकाशन किया जा सकता है। बीर के जीवन पर रचनाएं लिखी जाने लगी यी जो उक्त बारह कृतियो मे महावीर नो रास प्रथम रास हिन्दी भाषा भाषी जनता मे महावीर स्वामी के जीवन काव्य है। जिसमे भगवान महावीर के जीवन पर विस्तार एव उनके सिद्धान्तो के प्रति उत्सुकता का द्योतक है। से काव्य शैली में वर्णन मिलता है। पाण्डुलिपि मे ६५ यताप हिन्दी रचनायो में संस्कृत एव अपभ्रश काव्यो के पृष्ठ है तथा उसका लेखन काल सं० १८६१ है। इसका समान उच्चस्तरीय काव्य रचना । की जा सकी रचना काल स० १६०६ है। पद्मा कवि हिन्दी के अच्छे क्योकि हिन्दी कवियो का काव्य रचना का उद्देश्य सदैव विद्वान थे तथा भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य थे। रास की सरल एवं सरस काव्यो को लिखना रहा है इसलिए वे रचना कवि ने सागवाड़ा नगर मे को थी। पलकारिक भाषा एवं काव्यगत विशेषता पो की परवाह संवत् सोलनवोतरे मार्गसिर पंचमी रविवार । किये बिना ही काव्य रचना करते रहे है। फिर भी रासकीयो मे नीरमलो, शभवे सागवाडा नगर मझार ।।२० उनकी रचनायो मे हमे काव्यगत सभी तत्वों की उपलब्धि
वर्द्धमानकवि कृत वर्द्धमान रास सं० १६६५ की होती है । हिन्दी भाषा में अब तक जो रचनाएं मिली है
रचना है इस प्रति मे २३ पृष्ठ है तथा इसकी एक प्रति व निम्न प्रकार है।
उदयपुर के शास्त्र भाटार में सग्रहीत है। काव्य की दृष्टि १. महावीर नी विनती भट्टारक शुभचन्द्र
से यह भी अच्छी रचा है। वर्द्धमान् कवि ब्रह्मचारी थे २. महावीर छद
और भट्टारक वादिभषण के शिष्य थे। २. महावीर नो रास पद्मा रचना सं० १६०६ ४ वर्द्धमान रास कुमुदचन्द्र १७वी शताब्दी सवत् सोल पा[प] सठि मार्गसिर सुदि पंचमी सार। ५. वर्द्धमान रास वर्द्धमान कवि
ब्रह्म वर्धमान रास रच्यो ते साभलो तहमे नरनारि ।।
रचना स० १६६५ तीसरी महत्व पूर्ण रचना नवलशाह कृत वर्द्धमान ६. वर्द्धमानपुराण नवलशाह रचना सं. १८२५ पुराण की है। जो प० पन्नालाल जी साहित्याचार्य द्वारा ७. वर्द्धमान चरित केशरीसिंह र.स. १८२७ सम्पादित होकर सूरत से छप चुका है। इसमे कवि ने सं० ८. वर्द्धमान सूचनिका बधजन १९वा शताब्दी १६६१ के अगहन मास में अपने पूर्वजों द्वारा बनवाए जाने ६. महावीर गीत
वाले जिन मंदिर की प्रतिष्ठा का उल्लेख किया है । उस १०. महावीर रास जिनचन्द्र सूरि
प्रतिष्ठा मे साहू भीषम को 'सिंघई' पदवी प्रदान की गई ११. महावीर पुराण मनसुख सागर १८वीं ताब्दी थी। उस समय वहां बंदेलखंड के राजा वीरसिंह के सुपुत्र
उक्त रचनायों के अतिरिक्त भगवान महार के राज। जुझारसिंह का राज्य था। इस घटना क्रम का जीवन पर गीत एवं स्तवन के रूप में और भी कितनी ही उल्लेख निम्न पद्य में किया हैरचनाएं प्राप्त हो चुकी है जिनमें विनयचन्द्र, सकलचन्द्र,
सोरहस इक्याणवे अगहन शुभ तिथि वार । वादि चन्द्र विजय मंत्र : स० १७२३ एवं समयसून्दर के नप जुझार बुदेल कृत जिनके राज मझार ॥ स्तवन : नेतनीय है। ये सभी हिन्दी पद्य मे हैं जो इस ग्रंथ को कवि ने प्रतिष्ठा स. से १७४ वर्ष बाद सं. काव्यगत विशेषताओं से परिपूर्ण है तथा भाषा एवं शैली १८२५ चैत्र शुक्ला पूणिमा बुधवार के दिन प्रात: काल में की दृष्टि से सभी अच्छी रचनाएँ है लेकिन अभी तक पूर्ण किया है। यह वर्द्धमान पुराण भ० सकल कीति के उनमें एक भी रचना का प्रकाशन नही हो सका है। वर्द्धमान पुराण के अनुसार रचा गया है। इसकी यह