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________________ चन्द्रवार का इतिहास १९१ सवत् १५११ मे पण्डित धर्मधर ने 'दत्तपल्ली' में, रुद्र, अभयचन्द्र, और रणवीर सिंह । साहू नल्हू ने चन्द्रजो इक्ष्वाकुवशी गोलाराडान्वयो साहु महादेव का प्रपत्र वाड के जिनालय का जीर्णोद्धार कराया था। पौर पौर माशापाल तथा हीरादेवी का पत्र था। सस्कृत चतुर्विध संघ को दान दिया था पोर पूजा की थी। वह भाषा में दो ग्रन्थ बनाये थे। इसके दो भाई और भी गुणानुरागी बुद्धिमान और शास्त्र का ज्ञाता था। धनेश्वर थे, विद्याधर और देवधर'" । यह मूलसघ सरस्वतीगच्छ के के पुत्र साह नल्हू की प्रेरणा से कवि ने इस ग्रन्थ की रचना भट्टारक पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और जिन चन्द्र का अनुयायी की थी। था। यह सस्कृत भाषा का अच्छा विद्वान और कवि था। चन्द्र वाड को श्रीवृद्धि प्रतापरुद्र के समय में हो इमने सबसे पहले 'श्रीपाल चरित' की रचना की। और बिगडने लगी थी। सं० १४९४ मे खिजरखा ने इस पर बाद मे सं० ११११ मे 'नागकुमार चरित की रचना अधिकार कर लिया था और भो गांव के राजा से खिराज दत्तपल्ली' नगर के निवासी साहु नल्हू की प्रेरणा से वसूल किया था। को, जो चन्द्र वाड का एक शाखा नगर था", और वहाँ स० १४६१ मे हसनखा लोदी ने उसे अपनी जागीर पर चौहान वशी राजा का राज्य था। साहू नल्हू के बनाया, किन्तु सैयदो ने उसका अधिकार नहीं होने दिया। पिता का नाम घनेश्वर था, उस समय वहाँ भोजराज का बाद में राजा प्रतापरुद्र को, जो एकजागीरदार या चन्द्रवार, पुत्र माधवचन्द्र राज्य कर रहा था। उक्त घनेश्वर या भोगांव और मैनपुरी की जागीर स्वीकृत की। रपरी घनपाल उनका मंत्री था। नागकुमार चरित की प्रशस्ति और इटावा कुतुब खां की जागीर में रहे। मुसलमानों में राजा रामचन्द्र के तीन पुत्रों का उल्लेख है"। प्रताप. के शासनकाल मे चन्द्रवाड की स्थिति अत्यन्त विषम हो गई, और कुछ समय के उपरान्त चन्द्र वाह श्री विहीन हो १७. इक्ष्वाकु वश सभूतो गोलाराडान्वयः सुधीः । गया। महादेवस्य पत्रोऽभूदाशापालोबुधः क्षिती।।४४ मुस्लिम शासनकाल में चनावाद तभार्या शील संपूर्णा हीरानाम्नेति विश्रुता । मुस्लिम शासनकाल मे चन्द्रवाड का किला अपनी तत्पुत्र त्रितय जातं दर्शनज्ञान वृत्तवत् ।।४५ । ज्येष्ठो विद्याधरः ख्यात: सर्व विद्याविशारदः । मजबूती के लिये प्रसिद्ध था। वहाँ चौहान वंशज क्षत्रिय राजाओं की मुस्लिम शासकों से कई बार मुठभेड़ हुई थी। ततो देवधरः जातस्तृतियोद्धर्मनामकः ।। उन के प्राक्रमण के कारण वहाँ क्षत्रियो का शासन प्रायः -देखो, नागकुमारचरित प्रशस्ति 'अनेकान्त वर्ष समाप्त हो गया था। फिर भी शासन उन्हीं का चलता १३ कि० ६५० २३० । रहा, जागीरदार के रूप में भी उनके शासन का उल्लेख १८. चन्द्रपाट समीपेऽस्ति दत्तपल्ली पुरी पुरा । मिलता है। राजते कलावल्लीव वांछितार्थ प्रदायका ।। सन् १३८६ (वि० स० १४४६) मे मुलतान फिरोज -नागकुमारचरित पु०६ १६. श्री रामचन्द्रो जितवक्रचन्द्रः, तस्यानुजः श्रीरणवीर नामा, स्वगोत्र पायोनिघि वृद्धिचन्द्रः । भुक्ते महाराजपदं हतारिः । विपक्ष पकेरुह वृन्दचन्द्रो, श्रीमत्सुमत्रीश्वर रायतासे, जातो गुणज्ञोऽभयचन्द्र पुत्रः ॥३॥ भ्रात्रा सम नदतु सर्वकालं ॥८॥ श्रीमत्प्रतापनृपतिस्तनयस्तदीयो, -नागकुमार चरित प्रशस्ति ज्येष्ठो नराधिपगुण रस्तुलो विनीतः। २०. श्रीचंद्रपाट पुरवर जिनालयस्याऽऽस्य जीणंतोद्धरण । नातः सुरैः सकलसोत्ययुतं स्वलोक, येनाऽकारि सुभद्र स सर्वदानंदतान्नल्हः । जात्वा गुणाधिकमिमं कमनीयकांति ॥७ -नागकुमार चरित्र ७वी मधि पत्र ३१
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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