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१०० वर्ष २४, हि०५
अनेकान्त
जल्दी कम्जा करने में समर्थ नहीं हो पाता था। उक्त सित करने के लिए मूर्य के समान था। उस समय रायराजाभों के समय लमेचू वश के निम्न मत्री हुए, जो वद्दिय नगर श्री सम्पन्न प्रौर जंन संस्कृति का केन्द्र बना राजनीति के साथ धर्मनीति का जीवन में प्राचरण करते हुप्रा था, वहाँ अनेक विशाल जैन मन्दिर थे। माहवमल्स थे। राजा भरतपाल के समय साहू हल्लण नगरसेठ के के प्रधान मंत्री कृष्णादित्य ने रायवादिय के जिनालयों का पद पर प्रतिष्ठित थे। और अभयपाल के समय उनके जीणोद्धार किया था और जिन शासन का प्रचार किया था। पत्र ममतपाल, जो जिन धर्मभक्त, सप्तव्यसन रहित, विक्रम सवत १४४५ में चन्द्रवाड मे दिल्ली के भट्रादयाल. परोपकारी और प्रधानमत्री थे। राजा अभयपाल रक प्रभाचन्द्र के शिष्य कवि धनपाल ने 'बाहुबली' चरित को मृत्यु के बाद उनके पुत्र 'जाहड' नरेन्द्र के समय भी।
की रचना की थी। उन्होने उसमे उससे पूर्व चन्द्रवाड उन्होंने मंत्रित्व का कार्य कुशलता के साथ संचालित किया की स्थिति का दिग्दर्शन कराते हए लिखा है कि-- उस था। इन्होंने जिनभक्ति से प्रेरित होकर वहाँ एक विशाल समय भी वही जिन मन्निर बनवाया था, जो उन्नत शिखरा, तारणा उस वश के शासक सारग नरेन्द्र राज्य कर रहे थे। और ध्व जामों से अलंकृत था। यह १३वी शताब्दी के
६. विक्कम-णरिद-प्रकिय समए, पास-पास को घटना है। इनके बाद इनके पुत्र श्रीबल्लाल'
चउदह-सय-संवच्छ रहिं गए । ने वहाँ शासन किया है। श्री बल्लाल के समय अमृतपाल
पंचास वरिस-चउ अहिय-गणि, के पुत्र साहू सेढ़ प्रधान मंत्री हुए । इनकी दो पत्नियां थी,
वइसह होसिय-तेरसि-सु-दिणि । उनमें प्रथम पत्नी से रत्नपाल का जन्म हुआ था, यह
साई णक्खते परिट्टियई वरसिद्ध-जोग-णामें ठियई॥ और प्रकृति के थे। इनकी पत्नी ससि वासरे रासि मयंक तुले गोलग्गे मुत्ति सुक्के सबले ॥" माल्हादेवी से कण्हड या कृष्णादित्य का जन्म हुआ था।
~जैन ग्रन्थ प्रशस्ति सं० भा० २, पृ०७७ या विधान और राजनीति का पडित था। यही १०. राजा सभरी राय के बाद उनके पत्र सारंग नरेन्द्र रायवद्दिय (रायभा) के राजा आहवमल्ल का प्रधान मत्री
ने राज्य किया। सारगदेव की मृत्यु के बाद उनक था। यह कुटुम्ब सम्भवत: रायवदीय चला गया था।
पुत्र अभयचन्द्र ने पृथ्वी का पालन किया। अभयवहाँ रत्नपाल के पुत्र शिवदेव को अपने पिता की मृत्यु के चन्द के दो पुत्र थे- जयचद और रामचन्द्र । सभवाद पाहवमल्ल ने नगरसेठ बना दिया था और उसका रोयराय के समय यदुवंशी (जैसवाल) साहु जस रथ या अपने हाथ से तिलक किया था।
दशरथ मंत्री थे, जो जैनधर्म के संपालक थे । सारग ग्राहव मल्ल एक वीर शासक था। इसने मुसलमानो नरेन्द्र के समय उनके पुत्र गोकुल व कर्णदेव मत्रिसे युद्ध में विजय प्राप्त की थी। इसकी पट्टगनी का नाम पद पर पतिष्ठित हुए थे। किन्तु राजा अभयचन्द ईसरदे था। इसने रणथभोर के राजा हम्मीर की शल्य को और उनके पुत्र जयचद के समय राज्य के मंत्री नष्ट किया था। यह चौहानवश रूपी कमलों को विक- लब कचुक (लमेच) वंश के साहु सोमदेव मंत्री पद
पर कार्य कर रहे थे। परन्तु द्वितीय पुत्र रामचन्द्र ८. ये हम्मीर बीर चौहान वंशी राजा हम्मीर है, जिनकी
के समय सोमदेव के पुत्र साहु वासाघर मंत्रिपद पर हठ प्रसिद्ध है और जिनका किला, दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने सं० १३५७ (सन् १३००) में
प्रतिष्ठित हुए। रामचन्द्र ने इसी १४५४ संवत् में चौहान राज्य को वहां समाप्त कर दिया था। और जयचन्द के बाद राज्य पद प्राप्त किया था। तथा हम्मीर वीरगति को प्राप्त हुए थे।
राज्यकार्य में दक्ष और कर्तव्य परायण था, परन्तु पुप्पिच्छ-मिच्छरण रंग मल्ल,
उस समय की राजनैतिक परिस्थिति भी बड़ी भयावह हम्मीर-वीर-मण-गट्ठ-सल्लु।
थी और मुसलमान बादशाहों की निगाहें उस पर चउहाणवसतामरसभाणु मुणियइ ण जासु भयबलपमाणु ॥ लम रही थी। ऐसे समय अपनी स्वतंत्रता कायम
-जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह भा० २ पृ. २८ रखना बुद्धिमत्ता का ही कार्य है।