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________________ बनवार का इतिहास १५७ उस समय चन्द्रवार के राजा के नामादिक का कही उल्लेख पईव' नाम के प्रथ को चन्द्रवाह के चौहान वशी राजामों नहीं किया। प्रतएव निश्चयतः यह कहना कठिन है कि के राज्यकाल में रचकर समाप्त किया था। उसकी मादि उस समय वहाँ किसका राज्य था। पर उस समय चन्द्र- मम्त प्रशस्ति में वहां के राजामों और राजमत्रियों की बाहसमुख था मौर वहाँ हिन्दू जनता के साथ जैन परम्परा का विवेचन किया गया। जनता भी अपने धर्म का साधन करती थी। उसके कुछ कवि लक्ष्मण या लक्ष्मणसेन ने जो स्वय जायसवाल समय बाद अर्थात् सन् ११९४ (वि. स. १२५१ म) थे अपने ग्रथ में चन्द्रवाड के चौहानवंशी राजामो की परम्पग, और जंन मंत्रियो मादि का परिचय निम्न शहाबुद्दीन गोरी ने-जब वह बनारस और कन्नौज की मोर जा रहा था, रास्ते में उसकी मुठभेड चन्द्रवाड में जय प्रकार अकित किया है। भरतपाल, अभयपाल, जाहर चन्द गहडवार से हो गई थी, जिसमे राजा जयचन्द हाथी और श्री बल्लाल नाम के राजा हए। श्री बल्लास के के हौदे पर बैठे हुए सैन्य संचालन कर रहे थे । महसा पुत्र ग्राहवमल्ल थे, जिन्होंने 'गयवद्दिय' नामक नगर मे शत्रु का एक तीर लगने से मृत्यु को प्राप्त हुए, किन्तु शासन किया था । वह चन्द्रवाड का ही एक शाखा नगर उसके पुत्र हरिश्चन्द्र ने कन्नौज का गढ़ अपने हाथ से था। जिमकी स्थापना वि० सं० १३१३ से पूर्व हो चुकी नहीं जाने दिया। मुहम्मद गौरी जयचन्द को विजित कर थी। क्योकि जिस समय उक्त पाहवमल्ल राज्य कर रहे १४०० ऊंट लूट के माल से भरवा कर ले गया। थे, तब उनके प्रधानमंत्री लब कचुक कुल (लमेचू)के मणिचौहानवंशी राजानों के राज्यकाल में जैनधर्म : साहू मेठ के द्वितीय पुत्र थे, जो मल्हादेवी से उत्पन्न थे, चौहान वशी राजाओं के शासन काल में चन्द्रवाड ... जो बड़े बुद्धिमान और राजनीति में दक्ष थे। इनका नाम जन-धन से परिपूर्ण एक अच्छा शहर हो गया था। कण्ह या कृष्णादित्य था। श्री बल्लाल के बाद चन्द्र वाड पागग से इटावा, कन्नौज और इनके पास-पास के के राजाओं का इतिवृत्त इस ग्रन्थ से ज्ञात नहीं होता। मध्यवर्ती भूभाग पर इनका शासन रहा है। इनके समय चन्द्रवाड के चौहानवंश के उक्त चार राजापो के समय एक मे लब कंचुक और जैसवाल आदि जैन कुलों के श्रेष्ठी महत्वपूण नगर के रूप में प्रसिद्ध था। उसकी महत्ता जन उनके दीवान होते थे, जो जैनधर्म के अनुष्ठाता का एक कारण यह भी था कि उस समय वह व्यापार का एक केन्द्र भी बना हुआ था। बाहर के लोग चन्द्रपौर धर्मात्मा थे। इस कारण चन्द्रवार और उसके प्रासपास का प्रदेश जैन सस्कृति का केन्द्रस्थल बन रहा था, वाड में यमुना नदी को पार करके ही पा सकते थे, और वहां जैनियों को अच्छी आबादी थी और अनेक जैन उसे नौकानों द्वारा पार करना होता था, क्योंकि नगर व्यापारी उच्च कोटि के व्यापार द्वारा अच्छे सम्पन्न और यमुना नदी से घिरा हुप्रा था, वहाँ सैकडों नौकाएं और नौका संचालक नाविक रहते थे। उनके द्वारा ही माल राज्यमान थे। मनेक जैन मन्दिरो के उन्नत शिखरो से का प्रायात निर्यात होता था। बडे-बड़े व्यापारी वहाँ मलकृत वह नगर श्री सम्पन्न था। बसते ये। व्यापार से खूब प्रर्थोपार्जन होता था, उससे वि० सं० १३१३ में कवि लक्ष्मण ने 'अणुवय-रयण राज्य और जनता दोनों को प्रषं लाभ होता था। उसकी ५. देखो राजपूताने का इतिहास प्रथम जिल्द दुसरा यह समृद्धि विरोधी राज्यों द्वारा ईर्ष्या और वेष का कारण संस्करण और Shahabudin met him at बनी हुई थी, प्रतएव वह लड़ाई का क्षेत्र भी बना हुमा chandrawar in the Etawah District near था। वहाँ अनेक युद्ध हुए थे, इस कारण वहां के लोगों को yumra and Hiving defaled his hart with the immense slaughlor. जन-धन की बहुत हानि उठानी पड़ी पी; किन्तु वहां का The Early history of in India P. 400. कोट (किला) प्रत्यन्त सुदृढ़ था, पतएव शत्रु पक्ष उस पर दखा, मछला शहर का शिलालेख तथा ताजिलमासा ७. देखो, मणुवयरयणपईव प्रशस्ति । रायद्दिय नगर हसन निजामी, तावकाते नसीरी जिल्द १ पेज ४७० यमुना नदी के उत्तर तट पर बसा हा था और नसीरुद्दीन मुहम्मद इलियट वाल्यूम १ पृ० ५४३-४४ श्री सम्पन्न था। बही प्रशस्ति सं० पृ. २७ ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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