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चन्द्रवाड का इतिहास
বাল জন মাঙ্গী
चन्द्रवाट, चन्दावर मोर चन्द्रवाट नाम का एक जो अजमेर के चौहान वंशी राजामों के वंशधर थे। इन प्रसिद्ध नगर यमुना नदी के तट पर बसा हुमा था, जो राजाओं ने केवल चन्द्रवाड पर ही शासन नहीं किया, माज प्राचीन ध्वंसावशेषों-खण्डहरो-के रूप में दृष्टि- प्रत्युत इटावा मोर उसके समीपवर्ती भू भाग पर भी गोचर हो रहा है । वह अतीत को उस झांकी को प्रस्तुत शासन किया है। उनमें हतिकान्त, रायवद्दिय (रायभा) कर रहा है कि हम भी किसी समय श्री सम्पन्न और रपरी, कुरावली, मैनपुरी, दत्तपल्ली पौर भोगांव प्रादि समुन्नत थे; किन्तु काल की कराल गति से प्राज हमारा स्थान है, जिन पर उनका शासन १६वीं शताब्दी तक तो बभव भूगर्भ में स्थित है। कहा जाता है कि विक्रम सं० रहा ही है, किन्तु कहीं कही कुछ बाद में भी रहा है। १०५२ मे चन्द्रपाल नाम के एक जैन पल्लीवाल राजा इन राजाओं के शासनकाल में जैनधर्म का खूब उत्कर्ष रहा को स्मृति में इस नगर को बसाया गया था। जिसका है। क्योंकि इनके मंत्रीगण प्रायः जैन ही रहे हैं, उन्होने दीवान रामसिंह हारुल था।
अपनी बुद्धिमत्ता से राज्यकार्य का संचालन किया है। चन्द्रवार में विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से १६वीं ।
विक्रम की १४वी, १५वीं और १६वीं शताब्दी में शताब्दी तक चौहान वंशी राजामों का राज्य रहा है।
राज्य रहा ह। रचे गये अपभ्रश और सस्कृत के ग्रन्थो में चौहान वश के १. हिन्दी विश्वकोष के भाग ७५० १७१ में लिखा है कि राजामों का उल्लेख है।
चन्द्रपाल इटावा अंचल के एक राजा का नाम था। विक्रम की १३वी शताब्दी में (वि० सं० १२३० मे.) कहा जाता है कि राजाचन्द्रपाल ने राज्य प्राप्ति के चन्द्रवाट या चन्द्रबाड निवासी माथुरवशी साह नारायण बाद चन्द्रबाड में सं० १०५३ मे एक प्रतिष्ठा कराई और उनकी धर्मपत्नी रूपिणीदेवी ने, जो देव-शास्त्र थी। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित स्फटिक मणि की एक और गुरुभक्त थी, संसार वर्धक कथानो को सुनने में मूर्ति जो एक फुट की प्रवगाहना को लिए हुए है पाठवें विरक्त थी, उसने श्रुत पंचमी के उपवास-सम्बन्धी फल तीर्थकर चन्द्रप्रभ की थी और जिसे यमुना की मध्य को प्रकट करने वाले भविष्यदत्त कुमार के जीवन परिचय धारा से निकाल कर फिरोजाबाद में सोत्सव लाया को व्यक्त करने वाली 'भविष्यदत्तकथा' कवि श्रीधर गया था, अब वह फिरोजाबाद के मन्दिर में विराज- से लिखवाई थी'। यद्यपि कवि श्रीधर ने ग्रन्थ प्रशस्ति मे
मान है। २. चन्द्रपाल का दीवान रामसिंह हारुल लंबकंचुक ।
__३. देखो, जैन अथप्रशस्तिसंग्रह द्वितीय भाग, वीर(लमेचू) आम्नाय का था। उसने वि० सं० १०५३ सेवा मन्दिर २१ दरियागंज, दिल्ली तथा मनेकान्त और १०५६ में कई मूर्तियों की प्रतिष्ठा चन्द्रवाह में वर्ष १३ किरण पृ. २२७ में प्रकाशित 'नागकराई थी जिनका उल्लेख निम्न प्रकार है:
कुमार चरित मौर कवि धर्मधर नाम का लेख । १ देशी पाषाण वादामी रंग २ फुट की मूर्ति सं० ४. मरणाह विक्कमाइच्च काले, पवहंतए सहय रए विसाले।
१०५३ वैशाख सुदि ३ रामसिंह हारुल...." वारह सय वरिसहिं परिगएहिं, २ देशी पाषाण वादामी रग ३ फुट ऊंची मूर्ति- दुगणिय पणरह बच्छर जुएहिं ।। स. १०५६ अगहन सुदि ५ गुरौ तिथौ......"
फग्गुण-मासम्मि बलक्ख पक्खे, कात्या वलिकनकदेवः सुतः कोक:...",
दसमिहदिणे तिमिरुक्कर विवरखे। ३ देशी पाषाण सवातीन फुट-मों मनु सं० १०५३ रविवार समाणिउ एक्कु सत्यु, वैशाख मदि३......
जिह मई परमाणिउ सुप्पसत्यु ।। -भविसयत्त कश