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________________ १८४, वर्ष २४, कि०४ अनेकान्त दूमरी मूर्ति उत्तर को भिनि के अधिष्ठान में उत्कीर्ण है, त्रिभंग मुद्रा मे एक पीठिका पर खडी चतुर्भुज देवी की जिसमें ललितासन मुद्रा में प्रासीन देवो चार भुजाओं से एक अन्य मूति दक्षिण की भित्ति पर देखी जा सकती है, युक्त है । देवी के दोनों पर खण्डित हो चुके है । सरस्वती जिसमे देवी के मात्र ऊर्ब दाहिनी भुजा में सनाल कमल की दो ऊर्ध्व भजामों मे सनाल कमल प्रदर्शित है, जब कि स्थित है और दूसरी ऊर्ध्व भुजा संप्रति भग्न हो चुकी है। दोनों निचली भजाए भग्न हो चुकी है। पीठिका के बायीं मिली जाती जा रपटा मे प्रदर्शित है ओर देवी का वाहन हस, जिसका शीर्ष भाग खण्डित है, और वाम भुजा पुन: भग्न है । अलंकृत मुकट, कर्णफूल, दो को मूर्तिगत किया गया है। समस्त प्रचलित अलंकरणों से हारों, एकावली, मेखला, कगन, नूपुर, बाजूबन्द, धोती युक्त देवी की पहिचान मात्र हंस के आधार पर ही सरस्व पौर लम्बी माला से सुसज्जित देवी के दोनों पाश्वों मे ती से की जा सकती है। देवी के दोनों पाश्वों में हाथ दो स्त्री सेवक प्राकृतियां अंकित हैं। वाम पाश्वं की सेवक जोडे उपासक प्राकृतियों के साथ ही देवी के दाहिने चरण प्राकृति के साथ ही इस पोर की अन्य समस्त प्राकृतियां के समीप एक काफी भग्न उपासक प्राकृति को चित्रित काफी भग्न हैं । सामान्य प्रलंकरणों से युक्त चामरधारी । है । देवी के शीर्ष भाग के ऊपर एक प्रासीन सेवकों को स्त्री सेविकाओं के पार्श्व में मूर्तिगत किया गया तीर्थकर प्राकृति के अतिरिक्त मूर्ति के दोनों अन्तों पर है। इन प्राकृतियों के समक्ष प्रत्येक पार्श्व में एक खड़ी उत्कीर्ण दो अन्य प्रासीन तीर्थंकरों का अकन इसकी विशेष. तीर्थकर प्राकृति (नग्न) उत्कीर्ण है। वाम पाश्र्व की तीर्थता है। इन जिन प्राकृतियो के पाश्वों में भी उपासक प्राकृ- कर प्राकृति पूरी तरह नष्ट हो चुकी है । देवी के दाहिने तियों को उत्कीर्ण किया गया है । सरस्वती के पृष्ठभाग मे चरण के समीप एक हाय जोड़े उपासक प्राकृति को उत्कीर्ण प्रभामण्डल कमल पुष्प और गुलाब से अलंकृत है। चित्रित किया गया है और दूसरी पोर की उपासक प्राकृति पार्श्वनाथ मंदिर के उत्तरी और दक्षिणी भित्तियों पर नष्ट हो चुकी है। इस मूर्ति के उपरी भाग में प्रत्येक लक्ष्मी की कुल तीन प्रतिमाये उत्कीर्ण है, जिन सबमें पार्श्व में एक मालाघारी उड्डायमान गन्धर्व युगल को लक्ष्मी को निश्चित पहचान किसी विशिष्ट प्रमाण के मूर्तिगत किया गया है इनके समीप ही प्रत्येक पार्श्व में प्रभाव में सदेहास्पद है। ऊर्ध्व दो भुजाओं मे प्रदर्शित तीर्थकर की एक खड़ी (नग्न) प्राकृति उत्कीर्ण है। इसी कमलों के आधार पर ही इन्हें लक्ष्मी ग्रंकन बताया गया मति के ऊपर एक दूसरी रथिका में चतुर्भुज लक्ष्मी की है। उत्तरी भित्ति के बायें कोने पर उत्कीर्ण एक मूर्ति त्रिभंग मुद्रा में खड़ी एक अन्य मूर्ति स्थापित है। देवी की में चतुर्भुज देवी को एक पीठिका पर खड़ा उत्कीर्ण किया ऊपरी दाहिनी भुजा भग्न है, पर ऊपरी बायी भुजा मे गया है। देवी की ऊर्ध्व दो भुजाओं में अर्ष विकसित सनाल कमल प्रदर्शित है । देवी के निचले वाहिने व बायें सनाल कमल और निचले वाम हस्त मे एक शंख चित्रित हाथों में क्रमशः उभय मुद्रा और कमण्डलु स्थित हैं । पाव है। देवी को निचली दाहिनी भुजा खण्डित है । देवी दोनों स्थित सेविका प्राकृतियों के एक हाथ मे कमल व दूसरा पावों में सेविकाओं द्वारा वेष्टित है। देवी के चरणों के कटि पर स्थित है । इन प्राकृतियों के समीप ही जिनकी समीप दोनो ओर काफी भग्न उपासक प्राकृतियों को दो खड़ी (नग्न) प्राकृतियां उत्कीर्ण है । इस चित्रण की चित्रित किया गया है। स्त्री प्राकृतियों के समीप ही विशिष्टता है देवी के स्कन्धों के ऊपर दो चतुर्भुज देवियों दोनों अंतिम छोरों पर दो खड़ी (नग्न) तीर्थंकर प्राकृतियों का अंकन, जो जैनधर्म की दो अत्यन्त लोकप्रिय देवियों को मूर्तिगत किया गया है। इन प्राकृतियों के पावों में सरस्वती और चक्रेश्वरी, का चित्रण करती हैं । देवी के पूनः दो काफी भग्न पुरुष प्राकृतियां उत्कीर्ण है । मूर्ति के बाम स्कन्ध के ऊपर पासीन प्राकृति की ऊपरी भुजामों ऊपरी कोनों पर भी दो खड़ी तीर्थकर भाकृतियां (नग्न) में चक्र (दाहिना) और अर्घ विकसित कमल (बायां) प्रकित है । देवी के शीर्ष भाग के ऊपर प्रत्येक पार्श्व में प्रदर्शित है। देवी की निचली दाहिनी भुजा से धनुषकर्षण एक उड्डायमान विद्याधर को चित्रित किया गया है। [शेष टाइटल पेज ३ पर]
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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