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________________ खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर की भित्तियों की रथिकाओं में जैन देवियां मारुति नंदन प्रसाद तिवारी मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का हिन्दू मंदिरों पर उत्कीर्ण देवियों से पार्श्वनाथ मंदिर की भारतीय वास्तु तथा शिल्पकला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण देवियों को अलग करने की दृष्टि से कलाकार ने प्रत्येक स्थान है। चंदेलो के शासन काल मे निमित खजुराहों के देवी के साथ कई तीर्थकर प्राकृतियो को चित्रित किया है, मदिरो की भित्तयो पर शैव, वैष्णव और जैन सम्प्रदायों जो वास्तव मे उनके जैनधर्म के प्रचलित और विशिष्ट से सबंधित मूर्तिया उत्कीणित है, जिन सबके शिल्प विधान देवी रहे होने की ओर सकेत करता है। मे प्रायः समान तत्व मिलते है। वर्तमान खजुराहो ग्राम मंदिर के मण्डप की भित्ति के नीचे अधिष्ठान पर के समीप अवस्थित जैन मदिरों का समूह खजुराहो का उत्तर और दक्षिण की ओर सरस्वती की दो प्राकृतियां पूर्वी मदिर समूह कहलाता है। समस्त नवीन व प्राचीन (३६"x२५") उत्कीर्ण है । दक्षिणी भित्ति की ललितादिगबर जैन मन्दिर एक विशाल किन्तु नवीन परकोटे के सन मुद्रा मे एक ऊंची पीठिका पर आसीन सरस्वती मूर्ति अन्दर स्थित है। दो प्राचीन मन्दिरों आदिनाथ व पार्श्व मे देवी छह भुजाओ से युक्त है । देवी का दाहिना लटकता नाथ, मे से पार्श्वनाथ सभी दृष्टियो से सर्वोत्कृष्ट है, जिसका पैर कमल पर स्थित है। सरस्वती के ऊपरी दो भुजानों, समस्त खजुराहो के मंदिरो मे भी शिल् पब स्थापत्य दोनों ही दाहिने और बायें, मे कमशः पद्म और पुस्तक प्रदर्शित है, दृष्टियो से विशिष्ट स्थान है। पार्श्व मदिर मूलत. आदि जबकि देवी की मध्य की दोनों भुजाएं वीणा वादन मे नाथ का मदिर था इसकी पुष्टि गर्भगृह मे स्थापित बैल व्यस्त है । वीणा का ऊपरी भाग कुछ खण्डित है । देवी चिन्ह से युक्त पीठिका से होती है, जिस पर १६वी शती ने अपने निचले दो दाहिने व बाये हाथो मे क्रमश: वरदमें पार्श्वनाथ की नवीन प्रतिमा स्थापित की गई। पार्श्वनाथ मन्दिर के पूर्वी द्वार पर उत्कीर्ण १०११ विक्रम सवत् मुद्रा और कमण्डलु धारण कर रखा है। देवी की भुजानों मे बीणा का प्रदर्शन मात्र ही देवी के सरस्वती से पहचान (६५४) के लेख के आधार पर इसे १०वीं शती मे निर्मित के लिए पर्याप्त है । देवी के प्रत्येक पार्श्व में त्रिभंग मुद्रा स्वीकार किया गया है। इस मदिर की बाह्य भित्तियों में खडी एक चामरधारी सेवक प्राकृति को मूर्तिगत किया पर जैन तीर्थकरों ओर अम्बिका की प्राकृतियों के अतिरिक्त गया है, जिसकी दूसरी भुजा कटि पर स्थित है। इन कुछ अन्य देवियो को भी विशिष्टता प्रदान करने की दृष्टि से विभिन्न रथिकानों में स्थापित किया गया है। इन्हीं सेवक प्राकृतियों के समक्ष दो हाथ जोडे उपासक प्राकृ तियां उत्कीर्ण है । देवी के वाम चरण के समीप ही एक देवियों की मूर्तियो का अध्ययन हमारा अभीष्ट है। भग्न उपासक आकृति चित्रित है । सरस्वती के शीर्ष भाग विभिन्न देव कुलिकामों में प्रतिष्ठित सरस्वती, लक्ष्मी और मे दोनों ओर दो खडी तीर्थकर माकृतियो का अंकन ध्याब्रह्माणी मूलत: ब्राह्मण धर्म की देवियां होने के बावजूद जन शिल्प व धर्म मे काफी प्रचलित थी। खजुराहो के तव्य है । इन प्राकृतियों के बगल में दोनो कानो पर दो युगल मालाधारी गन्धर्वो की उड्डायमान प्राकृतिया देखी १ ब्रुन, क्लाज, "दि फिगर प्रॉफ दि टू लोवर रिलीफ्स जा सकती है इनके नीचे पुन: प्रत्येक छोर पर एक उड्डा मान दि पार्श्वनाथ टेम्पल एट खजुराहो," प्राचार्य यमान विद्याधर की प्राकृति अकित है। देवी ग्रीवा मे श्री विजय वल्लभसूरि स्मृति ग्रन्थ, १९५६, अंग्रेजी हारों, धोती, धम्मिल, मेखला, कंगन नूपुर, पायजेब विभाग, पृ. २३-२४, और एक लम्बी माला से सुसज्जित है। सरस्वती की
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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