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पावापुर
धित बातों पर प्रकाश पडता है, किन्तु उससे यह तो सिद्ध बैठा हुआ था । लगभग तभी श्रेणिक विबसार की मृत्यु नही होता कि महावीर की उस मूर्ति की प्रतिष्ठा से पहले हुई थी। अजात शत्रु उस समय शोक पोर राजनैतिक पावापुरी में कोई जैन मन्दिर नहीं था और उसकी जैन उलझनों में फंसा हुआ था । वह ऐसी स्थिति में नहीं था तीर्थ के रूप में मान्यता नहीं थी। यदि मदन कौति ने कि वह कही अाक्रमण कर पाता। वस्तुत: वह अपनी 'शासन चतुस्त्रिशिका' मे 'पावापुर' के भगवान महावीर स्थिति जमाने में लगा हुआ था। इसी लिए वह स्वयं की प्रतिमा का अतिशय बताया है। उक्त शिलालेख और उत्सव में नही पा सका। दूसरी बात यह है कि वह भी मदन कीर्ति के उद्धरणों से तो यह सिद्ध होता है कि १३वी महावीर का अनुयायी था और तीर्थकर भगवान के निर्वा१४वीं शताब्दी में भी पावापुरी एक प्रसिद्ध तीर्थ माना णोत्सव मे पधारे हुए साधर्मी राजापो से युद्ध करके वह जाता था।
अपयश मोल नही ले सकता था । युद्ध करने के लिए उसके उपयुक्त विद्वानों के अतिरिक्त डा० काण्टियर, डा. पास अन्य अवसर भी थे। अपनी स्थिति सुदृढ कर लेने रमाशकर त्रिपाठी, जयचन्द्र विद्यालंकार, मुनि कल्याण- पर राज्यारोहण के पाठवे वर्ष में उसने वैशाली गणसघ विजय जी प्रादि सभी विद्वान् स्पष्ट रूप से इस बात का से युद्ध ठान दिया और अन्त मे (कुछ विद्वानो के मन से समर्थन करते है कि वर्तमान पावापुरी ही महावीर का १६ वर्ष युद्ध करने के पश्चात्) उसने वैशाली और मल्ल निर्वाण-क्षेत्र है। महावीर के सम्बन्ध मे जैन ग्रन्थो की गणो का विनाश कर दिया। प्रामाणिकता असंदिग्ध रूप से मान्य की जानी चाहिए, भगवान महावीर पावा में राजगृह से पधारे थे, ऐसा जब कि बौद्ध वाङ्मय मे महावीर का जो भी विवरण उल्लेख श्वेताम्बर शास्त्रो में मिलता है । राजगृह से मल्ल मिलता है, वह साम्प्रदायिक व्यामोह के कारण तथ्य देश बिलकुल मिला हुआ था। विरूद्ध, अपमानजनक और भ्रान्ति कारक है। इसलिए (२) दूसरी शका कि यहां कोई पुरातत्व नहीं है, बौद्ध साहित्य इस विषय मे वहीं तक मान्य किया जा विशेष ठोस नहीं है। सम्मेद शिखर में भी कोई पुरातत्व सकता है, जहाँ तक वह जैन साहित्य और परम्परा के
नही । इस लिए क्या वह भी वास्तविक तीर्थ स्थान नही अनुकूल हो । बोद्व साहित्य की प्रामाणिकता के मोह में
है ? पावापुरी के मन्दिर में प्रारम्भ से चरण विराजमान जैन साहित्य को प्रमाणिक करार नहीं दिया जा सकता। रहे है। मन्दिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा। ___अन्त मे हम उन शंकानों और संभावनायो क सम्बन्ध किसी प्रातताई की कुदृष्टि उस प्रोर नही गयी । प्रत: मे भी कुछ पक्तियाँ लिखना आवश्यक समझते है जो वर्त
सुरक्षित रहा। मान पावापुरी की मान्यता के विरोध में उपस्थित की जा
सारांशत. हमारी मान्यता है कि वर्तमान पावापुरी ही सकती है। (१) महावीर के निर्वाण के समय नी मल्ल
भगवान की निर्वाण-स्थली है, यह पावन भूमि है, विश्व राजा भी उपस्थित थे । मगध मल्लों का शत्रु था। तब
वेद्य है । दूसरो से प्रभावित होकर अपनी परम्परागत तीर्थवे शत्र-प्रदेश के इतने निकट अथवा शत्रु-प्रदेश मे कैसे प्रा
भूमियो की मान्यता का विसर्जन नहीं करना चाहिए। सकते थे? (२) पावापुरी में प्राचीनता के कोई चिन्ह
और न भावुकता में बहकर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न ही बना नहीं मिलते।
देना चाहिए। जब तक सर्वसम्मत ठोस प्रमाण न मिले, पहली शंका या सभावना के उत्तर में निवेदन है कि
तब तक यथा स्थिति रहनी चाहिए। मल्ल राजा जैन थे। मगध सम्राट भी जन थे। हजारीबाग -मानभूमि प्रदेश भी मल्ल देश कहलाता था। हो सकता है, १. मुनि श्रीचन्द्र कृत 'कहा कोसु' सन्धि १५ कडवक १ वहाँ के राजा निर्वाण के समय उपस्थित हुए हों। इति- १. इसके लिए देखिए The Geographical Dictionहास ग्रन्थों के देखने से ज्ञात होता है कि जब महावीर का ary of Ancient And Mediaeval India, by निर्वाण हमा, उस समय मगध की गद्दी पर अजात शत्र Nunda Lal Dey मे प्राचीन भारत का नक्शा,