________________
१००, वर्ष २४, कि० ४
,
के पूर्व उत्तर पूर्व मे ३३०० फुट दूर है। स्तूप के उत्तर में ३०० फुट दूर से फाजिलनगर गांव शुरू होता' है ।'
'महावीर का निर्वाण दक्षिण बिहार की पावा में हुमा था और बीड पिटक उत्तर बिहार की पावा का वर्णन करते हैं। वे प्रवार्थ है।'
डॉ. कार्पेण्टियर - Indian Antiquary 1914 'बौद्ध धागमों में वर्णित महावीर के निर्वाण-प्रसंग ऐतिहासिक निर्धारण में किसी प्रकार उपेक्षा के योग नहीं है ।'
- राहुल सांकृत्यायन, दर्शन, दि०४९२ 'भगवान महावीर की निर्माण भूमि के विषय में हमें कोई संदेह नहीं है। भगवान की निर्वाण-भूमि वही गावा
५२० ई० पू० के लगभग महावीर का देहान्त भापु है जो बिहार नगर से प्राग्नेय कोण मे सान मील पर पुरी निक पटना जिले की पावापुरी मे हुआ I' श्रथवा पावापुरी के नाम से प्रसिद्ध जैन तीर्थ है। जैन शास्त्रों में इसको मध्यमा पावा कहा है।'
--मुनि कल्याण विजय जी, श्रमण भगवान महावीर - प्रस्तावना, पृ. xxviii
-डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी, प्राचीन भारत का इति हास 'ईसा के १३वी १४वीं शताब्दी के अनेक परिस्थि तियों के कारण जैनधर्म उत्तर बिहार से बिलकुल कट गया था। इन औौर धागे की शताब्दियों में दक्षिण बिहार के जैनजगत मे नई चेतना हुई इस आका केन्द्र राजगिर-पावापुरी बिहार शरीफ बन गया । राजगृह महावीर के समय से ही जैनतीर्थ माना जाता रहा है। पावापुर अथवा पावापुरी मे जैन सम्मेलनों के होने का पता चलता है ये सम्मेलन १२वी शताब्दी में हुए, ऐसा पता चलता है। जब कि ई० सन् १२०३ मे वहां भगवान महावीर की मूर्ति विराजमान की गई। मदन कीर्ति अपने समय के २६ तीर्थों का वर्णन करते हुए इस शताब्दी के द्वितीय चरण में पावापुरी के वीर जिन का वर्णन करते है जिनप्रभसूरी ने इससे पगली शताब्दी में अपने ग्रन्थ 'तीर्थकल्प' मे पावापुरी के सम्बन्ध में दो अध्याय दिये हैं । इस प्रकार पावापुरी की स्थिति, जिसके बारे में 'महावीर का निर्वाण क्षेत्र होने का विश्वास किया जाता है, चौदहवीं शताब्दी मे सुदृढ़ होगई ।'
उपर्युक्त उद्धरणोंमे डा० वोगेल, कर्नाल, डा० जायसवाल ने मल्लों की पावा से महावीर - निर्वाण का कोई समर्थन नहीं किया। डा० योगेन्द्र मिश्र और राहुल सास्यायन ने अवश्य इस पक्ष का स्पष्ट समर्थन किया है । राहुल जी केवल बौद्ध शास्त्रों के पाया सम्बन्धि उल्लेखो को ही प्रमाण मानते है । किन्तु वे उल्लेख अस्पष्ट हैं और उनका जैन ग्रन्थों के महावीर निर्माण सम्बन्धी विवरणों से समन्वय नही हो पाता। फिर बौद्ध ग्रन्थो मे भी मतक Dr. Yogendra Mishra, An Early History नहीं है । 'अट्टकथा' तो महावीर को नालन्दा से पावा of Vaishali, P. 235-36
जाकर मृत्यु का उल्लेख करती है ।
डा० मिश्र के पास श्री नाहर के 'जैन लेख संग्रह' का एक लेख प्रमाणभूत तर्क है, जिसमे १२०३ ई० में पाया मे भगवान महावीर की मूर्ति की प्रतिष्ठा की चर्चा है उस शिलालेख से उस मूर्ति की प्रतिष्ठा काल आदि सम्ब
-डॉ० के० पी० जायसवाल Journel of Bihar nnd Orissa Research Society 1, 103
१. Report of a tour in the Gorakhpur Dis trict in 1875-76 and 1076-77, by A. C. L. Carlbyle Vol. XVIII
२.
श्री
'राजगृह के निकट पावापुरी मे कार्तिक अमावस की रात उनका (महावीर का) निर्वाण हुआ।' भारतीय इति हास की रूपरेला, श्री जयचन्द्र विद्यालंकार भाग १, पृष्ठ ३७२ ।
पूरण चन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह, भाग २, कलकत्ता १९२७० २६३
'कुशीनारा ( कसया ) से चन्द मील उत्तर पपउर (जिला गोरखपुर, हो पाया है) परम्परा को भूलकर पटना जिले की पावा नई कल्पना है ।'
इस प्रकार पुरातत्ववेत्ता और इतिहास कार इस विषय में एकमत नही है । स्पष्ट ही इस विषय मे दो पक्ष रहे हैं । जिन्होंने महलो की पावा से महावीर का निर्वाण माना है, उनके पास बौद्ध ग्रन्थों का ग्राधार है । जिन्होंने वर्तमान पावापुरी से महावीर का निर्वाण माना है, उन्होंने अपने पक्ष में जैन ग्रन्थों और परम्परागत जैन मान्यता का समर्थन पाया ।