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पावापुर
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एक अन्य रिपोर्ट मे (Archeaological Survey ने स्नान मोर जल-पान किया था। अन्हेया के दो मील Report 1905) डॉ. वोगेल ने बताया है कि कुशीनगर पश्चिम में एक बड़ी नदी बहती है जो घागी कहलाती है। पौर सठियांव प्रादि में कोई इमारत मौर्यकाल के बाद
पड़रौना से १० मील उत्तर-पश्चिम में सिंघा गांव के की नही है, सब इसके पहले की है।
पास एक झील है। उसी मे से घागी, अन्हेया और सोनवा मि. कनिंघम ने अपनी १८६१.६२ की रिपोर्ट में पोर नदी निकलती है। वस्तुतः घागी बड़ी नदी है। इसकी बाद मे Ancient' Geogrophy of India में पडरौना . पश्चिम की साखा अन्हेया है और पूर्व की शाखा सोनवा को पावा माना है।
है। घागी का अर्थ है कुक्कुट और ककुत्था पर्यायवाची मि० काइल का मत है कि पावा वैशाली-कुशीनारा शब्द है। मार्ग पर अवस्थित थी। अत: वह कुशीनारा से दक्षिण पावा के खण्डहर ही प्रब सठियांव डीह कहलाते है। पर्व में होनी चाहिये । जब कि पडरौना उत्तर मोर उत्तर इन्ही टीलों पर सठियाव गांव बसा है। फाजिलनगर और पूर्व मे १२ मील दूर है। वह तो प्राचीन वंशाली-कुशो- सठियांव दोनो एक प्राचीन गाव के दो भाग है। सठियांव नारा मार्ग पर भी नही है। उनके मत से फाजिल नगर- डीह के पश्चिम में एक बड़ा तालाब है जो ११०० फुट सठियांव पुरानी पावा होना चाहिये ।
लम्बा और ५५० फुट चौडा है । इसके प्रासपास छोटे बड़े लका की बौद्ध अनुभूतियों के अनुसार पावा कुशीनारा कई तालाब है। सठियांव का बड़ा डीह उत्तर मे १७०० से १२ मील दूर गण्डक नदी की ओर होनी चाहिए। फुट लम्बी एक सड़क से जुड़ता है, जो कसिया फाजिलअर्थात कशोनारा से पूर्व या दक्षिण-पूर्व में । सिंहली अनुश्रुति नगर सड़क से मिलती है। इसके पास सेबी पावा और कुशीनारा के बीच में एक छोटी नदी भी पटकावली सड़क जाती है। बताती है, । जो ककुत्था कहलाती थी। यहीं बुद्ध ने स्नान सारा सठियांव डोह प्राचीन नगर के ही अवशेष है। और जल-पान किया था। सभवत: इसी नदी का नाम डीह पर सघन वृक्ष खड़े हुए है। इसके दक्षिण भाग वर्तमान में घागी नदी है। यह कसिया से पूर्व, दक्षिण-पूर्व लगभग तीन चौथाई भाग में ईटें बिखरी पडीसी की ओर ६ मील दूर है।'
ऊँचे-ऊँचे ढेर भी जहां तहां मिलते है। सभवतः ये स्तूपों बद्ध और महाकाश्यप क्रमश: मगध और वैशाली से के अवशेष है एक टीले पर लोगों ने देवी का थाना कुशीनारा जाते हुए पावा मे ठहरे थे।
लिया है एक पेड़ के सहारे देवी की मूर्ति खड़ी है। यहां फाजिलनगर मे एक भग्न स्तूप है। फाजिलनगर जो ईटें मिलती है , उनमें कुछ ११ इंच लम्बी, कछ १३ पौर सठियांव पावा के अवशेषों पर बने है, ऐसा लगता और १४ इंच लम्बी है। खुदाई में १५ इंच को भी हो है। भग्न स्तूप में लगभग डेढ़ फाग उत्तर-पूर्व में नदी है मिली है। जोमोना. सोनावा या सोनारा नदी कहलाती है। कुछ फाजिलनगर में थाना, पोस्ट प्रापिस है। ये भोईटो
की ओर बढ़ने पर इसी का नाम कुकू पड़ गया है। की टीले पर बने है इसके अासपास भी बहत से टीले है। रियांव के दक्षिण मे १० मील परे एक घाट अथवा कुकू मुख्य सड़क से उत्तर की ओर ३५० फुट की दूरी पर एक
। इस नदी के किनारे इससे मिलते जुलते नाम बड़ा टीला है विश्वास किया जाता है, यह टीला किसी पाये जाते है-जैसे कुर्कटा, खुरहुरिया, कुटेया । लंका स्तूप का अवशेष है । टीले के ऊपर स्तूप की ऊचाई ३५ और बर्मा की अनुश्रतियों में इस नदी का नाम ककुत्था फुट है। स्तूप का ऊपरी भाग ४० से ४४ फुट के घेरे मे सा को बताया है। यह पावा प्ररि कुशीनारा के बीच है । सभव है. बुद्ध के अस्थि, भस्म के ऊपर बना पात
वर्तमान मे सठियांव से डेढ़ मील पश्चिम की यही हो । यहाँ मन्दिर या विहार के भी कछ चिन्ह मिले मोर प्राचीन नदी के चिन्ह मिलते हैं जो मन्हेया, सोनिया है। एक ध्वस्त भवन भी है। इन दोनों के बीच मे मसल. और मोनाका कही जाती है। संभवतः इसी नदी में बुद्ध मानों ने करवला बना लिया है। यह स्तप सठियांव डी