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१७८, वर्ष २४, कि०४
अनेकान्त
भोजन करके बुद्ध को सांघातिक रोग हुआ, उस पावा राजगृह में स्तूप बनवाया था। की खोज की जाय । कपिलवस्तु से लेकर कुशीनाग, जब हम्साग भारत यात्रा के लिए पाया था, तब पडरौना, फाजिलनगर, सठियांव, सरेया, कुक्कुरपाटी, उसने कपिलवस्तु के बाहर सैकड़ों-हजारो स्तूप देखे थे। नन्दवा, दनाहा, प्रासमानपुर डीह, मीर विहार, फरमटिया
___ इन कारणो से इस विश्वास की पुष्टि होती है कि और गांगीटिकार तक प्राचीन भवनों, मन्दिरों और स्तूपों
प्रकृति के प्रकोप से अथवा प्राततायी आक्रमणकारियों के के ध्वंसावशेष बिखरे पड़े है।
प्रत्याचारों से इनका विनाश होगया । यह सब लिखने का ऐसा विश्वास किया जाता है कि श्रावस्ती की राज
हमारा प्राशय इतना ही है कि कपिलवस्तु, कुशीनारा गद्दी पर बैठकर विदूडम ने अपने पिता प्रसेनजित को
और पावा का विनाश बुद्ध की मृत्यु के प्रासपास हुआ मरवा कर शाक्यों और उनके नगरों का विध्वंस कर दिया।
और स्तूपो का विनाश इसके हजार-बारह सौ वर्ष वाद और इस प्रकार शाक्यों से बदला लेने की अपनी प्रतिज्ञा
हुप्रा । प्रतः नगरों के अवशेषों के ऊपर स्तूपो के अवशेष को पूरा किया। इसी प्रकार श्रेणिक बिम्बसार के पुत्र
होने चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो इस विशाल अजातशत्रु ने अपने पिता को बन्दी बना कर मगध की भभाग मे विखरे हए अवशेष पौर टीले स्तूपों के हो सकते राजगद्दी हथियाली और उसने भी विदूडभ की तरह है। ही अपनी ननिहाल, वैशालीगण सघ और उनके मित्र
इन अवशेषों की यात्रा भारत सरकार की प्रोर से देश मल्ल संघ और काशी-कोशल संघ को बर्बाद कर मिनिधम बैंगलर, कारलाइल प्रादि ने १८७५ या दिया। इस प्रदेश मे मीलों मे बिखरे हुए ये डीह (टीले) उसके प्रासपास की थी। इन विद्वानों के यात्रा विवरण
और अवशेष इन दो महत्वाकांक्षी राजामो के प्रतिशोध के सरकार की भोर से प्रकाशित हो चुके है। उल्लेखनीय परिणाम है । किन्तु यह निवर्ष भी सर्वांश मे सत्य नहीं
यह है कि इन्होंने इस सारे प्रदेश की यात्रा करकं छानबीन है । बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् उनकी अस्थियों का पाठ
की, किन्तु उन्होंने अपनी रिपोर्ट में किसी जैन मूर्ति, मन्दिभागों में विभाजन हुआ था। उनमें एक भाग शाक्यों ने
र मानस्तम्भ, शिलालेख के मिलने का कोई उल्लेख नही लिया था, दो भाग-पावा और कुशी नारा के मल्लों
किया। उन्हों ने अपनी रिपोर्ट में सर्वत्र बौद्ध स्तूपों की ने लिए थे। दोनों सघों ने उन अस्थि-भस्मों पर स्तूपों
ही चर्चा की है। इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं को कोई जैन का निर्माण कराया था। उपर्युक्त दोनों युवक राजारों में
चिन्ह मिले हों' ऐसी भी जानकारी हमे नहीं है । सठियाँव से विदूडम मे तो बुद्ध के जीवन काल में ही शाक्यों पर
में तालाब और स्तूपों के ध्वंसों को देखकर यहां पर महाआक्रमण करके उनका विनाश किया था। किन्तु प्रजात
वीर के निर्वाण की कल्पना कर लेना युक्तियुक्त नहीं शत्रु ने बुद्ध के निर्वाण के बाद मल्लसंघ का वैशाली के
लगता। के साथ विनाश किया। विदूडम के समय में तो कपिल- मिस कनिंघम ने अपनी इस रिपोर्ट में पावपुरी का वस्तु में कोई स्तूप ही नहीं थे, स्तूप तो शाक्यों के मृत्यु वर्णन करते हुए उसे ही जैनों का महान् तीर्थ और महा. के बाद और बद्ध के निर्वाण के पश्चात् बनाये गय थ । वीर की निर्वाण-भूमि बताया है। शाक्यो के नष्ट करने के बाद विदूडभ और उसकी सेना - एक नदी के किनारे ठहरी हई थी। तभी भयकर 1.a-Report of tours in the Gangetic Provinces मोला-वृष्टि होने लगी। उससे नदी में बाढमा गई और from Badaon to Bihar in 1875-76 and 1877-78 सब बह गए।
by Alexander Cunningham Vol. XI प्राजात शत्रु ने कुशीनारा और पावा का विनाश किया b- Report of a tour in the Gorakhpur Disहोगा, किन्तु वह स्तूपों का विनाश नही कर सकता था। trict in 1875-76 and 1876/77 by A.C.L. Carlउसने प्रस्थि-भस्म का एक भाग प्राप्त कर उसके ऊपर byle, Vol.XVIII