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पावापुर
को प्राप्त हो गये थे । मयुक्त निकाय ४५/२/३ मे ऐसा ये उद्धरण जैन संघ के भेद होने के पश्चात् लिखे गये वर्णन मिलता है
यह भी सम्भव लगता है कि महावीर के निर्वाण एक बार भगवान बुद्ध श्रावस्ती के जेतवन मे विहार सम्बन्धी उल्लेख केवल धर्मद्वेष वश ही लिखे गये हों। करते थे तब स्थविर सारिपुत्त ने भगवान से प्राज्ञा तभी तो चुन्द द्वारा महावीर-निर्वाण का समाचार सुनकर -मांगी-भन्ते ! भगवान अनुज्ञा दे, सुगत अनुज्ञा दे, प्रानन्द इस वार्ता को तथागत के लिए भेंट स्वरूप बतलाते मेरा परिनिर्वाण काल है। प्राय: संस्कार खत्म हो चुका हैं उपालि द्वारा बुद्ध की प्रशंसा सुनकर महावीर का भगवान ने पूछा '-कहां परिनिर्वाण करोगे ?' 'भन्ते । उष्ण रक्त वमन करना इतिहास विरुद्ध और टेष द्वारा मगध में नालकग्राम में जन्म गृह है, वहाँ परिनिर्वाण प्रचारित मिथ्या कल्पना मात्र है। अतः ये सभी उल्लेख करूंगा?' भगवान ने उन्हें प्राज्ञा देदी और वे अपने ५०० अप्रमाणिक एवं प्रविश्वसनीय है। भिक्षमों के साथ एक सप्ताह मे नालकग्राम मे पहुंचे। बौद्ध ग्रन्थों के इन उल्लेखों को एक ही शर्त पर और अपने जन्म स्थान वाले घर में ठहरे । वहां खून गिरने स्वीकार किया जा सकता है। वह यह है कि जैन शास्त्रों की भयंकर वीमारी हुई, मरणान्तक पीड़ा होने लगी और
का महावीर सम्बन्धी सम्पूर्ण कथन अप्रामाणिक मान उसी वीमारी में उनकी मृत्यु होगई।
लिया जाय। उस स्थिति मे 'महावीर के मुख से उष्ण महापंडित राहुल साकृत्यायन द्वारा रचित 'बुद्धचर्या'
रक्त का वमन, रुग्णावस्था मे पावा मे उनकी मृत्यु, मृत्यु पृ.५२५ के अनुसार सारिपुत्र की मृत्यु के प्रायः एक वर्ष के पश्चात् जैन संघ में कलह और संघ-भेद जैसी प्रसंगत बाद भगवान नालन्दा में विहार करते थे, तब सारिपुत्र और परम्परा विरुद्ध बातें भी स्वीकार करनी पड़ेंगी। ने भगवान से प्रश्नोत्तर किये। इस पर राहुलजी को फिर भी पावा-जहां महावीर की मृत्यु बताई गई हैटिप्पणी देनी पड़ी-सारिपुत्र का निर्वाण पहले ही हो वर्तमान पावापुरी ही माननी होगी, क्योंकि नालन्दा से वे चुकने से, यह भाणको के प्रमाद से यहाँ माया मालूम इसी पावा में ले जाए गए। होता है।
जो लोग बोद शास्त्रों के स्पष्ट कथन को प्रामाणिक बौद्ध शास्त्रों में कई वार निग्गंठनातपुत्त की मृत्यु की मानकर शताब्दियों से परम्परागत रूप से मान्य वर्तमान सूचना कही चन्द्र के मुख से, कहीं सारिपुत्त के मुख से पावापुरी को उखाड़-उजाड़ कर नई पावा बसाने की दिखलाई गई है। प्रत्येक सूचना में यह भी कहा गया है तैयारी में जुट पड़े हैं, उन्हें अपने प्रयत्नों के समर्थन में कि निगंठ नातपुत्त की मृत्यु होते ही निगठों में फूट हो कुछ ठोस प्रमाण सग्रह करने होंगे। केवल कुछ ग्रन्थों के गई। वे परस्पर में कलह करने लगे, परस्पर दुर्वचन कल्पित, विवादग्रस्त और धार्मिक द्वेषपूर्ण उवरणों के बल बोलने लगे। निगठ नातपुत्त के श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ पर प्रौर नवीनता के व्यामोह में अपनी परम्परा और शिष्य निगंठों (दिगम्बर साधुनों) में विरक्त है। किन्तु शास्त्रों को अमान्य नहीं ठहराना चाहिए। वौद्ध शास्त्रों का कथन मिथ्या है। भगवान महावीर के इतिहासकार और पावा-कई पाश्चात्य और भार. अखण्ड जैन संघ मे दो भेद दिगम्बर और श्वेताम्बर के तीय पुरातत्ववेत्तानों और इतिहासकारों ने म० बुद्ध के रूप में मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त के काल में उस समय हुए, परिनिर्वाण के लिए जाते हुए पावा में ठहरने और वहां जब वे अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाह के साथ राजपाट छोड़- की नदी ककुत्था में स्नान और पान करने की घटना के कर मुनि बनकर दक्षिण की पोर चले गये। दिगम्बर सिलसिले मे पावा की खोज की है। इस खोज के परिऔर श्वेताम्बर दोनों ही परम्परायें इसे स्वीकार करती हैं। णाम सभी के एक से नहीं हैं। बल्कि भिन्न-भिन्न रहे हैं। तब बौद्ध शास्त्रों की इस निराधार कल्पना को कैसे अपने निष्कर्षों के समर्थन में कोई भी प्रमाण तो नहीं स्वीकार किया जा सकता है। यह तो इतिहास के मान्य दे पाया, किन्तु सम्भावनामों को माधार मानकर उनकी तथ्यों के विपरीत है । ऐसा लगता है कि चौखशास्त्रों के पुष्टि की। किन्तु सभी का एक ही उद्देश्य रहा कि जहा