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________________ १७६, वर्ष २४, कि० ४ अनेकान्त -वह नातपुत्त तो नालन्दावासी था, वह पावा में अपितु चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी, वाराकैसे कालगत हुमा? सत्यलाभी उपालि गृहपति के दस णसी में से कहीं करें। किन्तु बुद्ध ने इसे स्वीकार नहीं गाथानों से भाषित बुद्ध के गुणों को सुनकर उसने उष्ण किया । रक्त उगल दिया। तब अस्वस्थ ही उसे पावा ले गये । पर्यालोचन-बौद्ध ग्रन्थों के उपयुक्त प्रसगो में पावा भौर वह वही कालगत हुआ। का स्पष्ट उल्लेख मिलता है । किन्तु जिस पावा के सम्ब. तथागत का विहार न्ध मे उल्लेख पाये है, वह जैन आगमों की मध्यमा पावा ___ 'दीय निकाय' २/३ मे महापरिनिवाण सुत्त है, नहीं है, अपितु वह मल्लो की पावा है। जैन आगमो के जिसमे भगवान बुद्ध के अन्तिम बिहार और मृत्यु का अनुसार भगवान महावीर का निर्वाण मल्लो की पावा में विस्तृत वर्णन मिलता है। उसके अनुसार भगवान बुद्ध नही, मध्यमा पावा मे हा था। राजगृह के अम्वलट्टिका (वर्तमान बडगाँव) गये । वहां से बौद्ध ग्रन्थो में महावीर का निर्वाण पावा मे लिया है, नालन्दा। वहाँ से पाटिलग्राम, कोटिग्राम, नादि का, किन्तु कही ये नहीं लिखा कि उनका निर्वाण मल्लो की वैशाली होते हए वेलुव गामक (वणुप्राम) पहुँचे । वहाँ पावा मे हुआ और न उस पाबा के गणराज का नाम बुद्ध को भयंकर बीमारी हो गई। प्राणान्तक वेदना हुई। हस्तिपाल ही कही दिया है । जैन प्रागमो मे स्पष्ट हो वहाँ से वैशाली में जाकर भोजन किया। फिर चापाल मध्यमा पावा के राजा का नाम हस्तिपाल दिया है । चैत्य मे ठहरे। यहाँ उन्होंने भविष्यवाणी की कि तीन यह भी उल्लेख योग्य है कि जैनागमो मे कही भी कुशीमाह बाद तथागत प-िनिर्वाण को प्राप्त होगे । वैशाली से नारा की निकटवर्ती पावा का उल्लेख नहीं किया गया। भण्डग्राम, प्रम्बगाम (ग्राम्रग्राम), जम्बुग्राम, भोगनगर मज्झिम निकाय अटकथा सामगाम मुत्तवण्णना में होते हुए पावा पहुँचे । वहा चुन्द कर्मार पुत्र के ग्राम्रवन में महावीर का निग्गंठ नातपूत के नाम से उनकी मृत्यु का ठहरे। चुन्द कर्मार पुत्र (सुनार का पुत्र) ने दूसरे दिन जो वर्णन किया गया है, उसी ओर विशेष ध्यान देने बुद्ध का मामन्त्रित किया। उसने मूकर मद्दव तथा अन्य की आवश्यकता है । वह वर्णन यद्यपि धार्मिक विद्वेष, प्रसभोज्य सामग्री तैयार कराई। बद्ध ने भिक्ष संघ के साथ त्य और धर्तता से भरा हुआ है। एवं शत प्रतिशत जाकर भोजन किया । सूकर मद्दव खाकर बुद्ध को खून अविश्वसनीय भी है। किन्तु उमम एक तथ्य की ओर गिरने लगा । मरणान्तक कष्ट हुअा। वहा से कुसीनारा की संकेत भी है। इसके अनुमार महाबीर रुग्णावस्था में भोर चले । थोडी दूर चलने पर थक गये तो एक पेड के नालन्दा से पावा ले जाये गये । विचारणाय यह है कि नीचे लेट गये। पास मे ककुत्या नदी थी। बद्ध ने पानी जो रोगी मरणासन्न हो, उसे कई सो मील दूर उस अवमांगा तो ग्रानन्द उस नदी से पात्र में पानी भरकर ले स्था में नहीं ले जाया जा सकता, विशेषकर उस रोगी को, पाया और बद्ध को दिया। ('उदान अढकथा ८/५ के जो मुनि हो और जिसका जीवन सयम के विविध अनुशामनुसार) पावा से कुशोनारा ६ गव्यूति था। किन्तु इतनी सनों से अनुशासित हो। कुशीनारा की निकटवर्ती पावा दूरी मे बुद्ध पच्चीम वार बैठे। मध्यान्ह मे चलकर सूर्या- नालन्दा से बहुत दूर है, जब कि वर्तमान पावापुरी नालस्त के समय कुगीनारा पहुँचे । पावा से चलकर ककुत्था- दा के निकट है। अत: यह बुद्धिगम्य और तर्क संगत नदी पार की । फिर हिरण्यवती नदी पड़ी । उसके परले लगता है कि नालन्दा से पावापुरी ले जाया जाय । तोर पर, जहाँ कुशीनारा के मल्लो का शाल वन है, वहाँ यदि ऐतिहासिक और असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण से गये। वहा जोडे घालवृक्षो के बीच में उत्तर को और बौद्ध साहित्य के महावीर से सम्बन्धित पावा के उल्लेखों सिरहाना करके लेट गये और निवाण होगया। निर्वाण से पर विचार किया जाय तो उसमे हमें इतिहास से विरोध, पूर्व यानन्द ने तथागत से प्रार्थना की कि आप इस क्षद्र साम्प्रदायिक व्यामोह और हीन मनोवृत्ति के ही दर्शन नगर मे, जगलो नगर मे, शाखा नगर में निर्वाण न करे, होते है । धर्म सेनापति सारिपुत्र बद्ध से पूर्व ही परिनिर्वाण
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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