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________________ पावापुरी भिन्ना निगण्ठा धिकजाता...पे०.. भिन्नथूपे अप्प- सामगाम सुत्तन्त के समान) । टिसरणे' ति। एवं वुत्ते प्रायस्मा मानन्दो चुन्दं सम -दीर्घनिकाय, पासादिक सुत्त, ३/६ णसं एतदवोच- 'अत्थि खो इदं, पावसो चन्द, भगवान बुद्ध शाक्य देश मे शाक्यो के वेधजा नामक कथा पामतं भगवन्तं दस्सनाय । प्रायाम, प्रावुसो पाम्रवनप्रासाद में विहार कर रहे थ ।... चुन्द, येन भगवा तेनुपसङ्कमिस्साम । उपसङ्कमित्वा निर्वाण संवाद-३ एतमत्थं भगवतो आरोचेस्साम'ति । 'एव भन्ते' ति एव में मृत । एक समय भगवा मल्लेसु चारिक खो चन्दो समण प्रायस्मतो प्रानन्दस्स पच्च- चरमान: महना भिक्खुमडधेन सद्धि पञ्चमत्तहि भिक्खुस्सोसि । सतेहि येन पावा नाम मल्लान नगर नद वसरि । तत्र सुदं - मजिभाम निकाय, सामगाम मुत्तन्त ३/६/४ भगवा पावायं विहरति चुन्दस्म कम्मार पुत्तस्स एक वार भगवान (बुद्ध) शाक्य देश में सामगाम में अम्बवने ।...... विहार करते थे। निगंठ नातपत्त की कुछ समय पूर्व ही नन खो पन समयेन निगठोनाटपुत्तो पावायं प्रधुना पावा मे मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु के अनन्तर ही निगठों कालङ्कतो होति । (शेष सामगाम मत्त के ममान) ।। मे फट हो गयी, दो पक्ष हो गये, वे कलह करते एक दूसरे -दोध निकाय, मगीतिपरयाय मुत्त ३/१०/२ को मुख रूपी शक्ति से छेदते विहार रहे थे-'तू इस एक समय पाचमौ भिक्ष प्रो के महाभिक्षु संघ के साथ धर्म विनय को नहीं जानता, मैं इस धर्म विनय को जानता भगवान मल्ल देश में चारिका करते, जहा पावा नामक हूँ, तू भला इस धर्म विनय को क्या जानेगा? तू मिथ्या- मल्लो का नगर है, वहाँ पहुँचे। वहाँ पावा में भगवान रूढ़ है, मै सत्यारूढ़ हूँ।' चुन्द करि पुत्र के पाम्रवन में विहार करते थे । (मल्लों निगण्ट नातपून के श्वेनवस्त्रधारी गृहस्थ शिप्य भी का उन्नत और नवीन सस्थागार उन्ही दिनो बना था। नातपुत्रीय निगंठो में वैसे ही विरक्त चित्त है, जैसे कि वे पावावामी भगवान बुद्ध से सस्थागार में पधारने की नानपुत्त के दुगख्यात (ठीक से न कहे गये), दुप्प्रवेदित प्रार्थना करने पाये। भगवान ने मौन रह कर अपनी (ठीक से साक्षात्कार न किये गये), अनर्याणिक (पार न स्वीकृति दे दी। तब भगवान अपने भिक्षुसंघ सहित लगाने वाले) अनुपशम सवर्तनिक (न शातिगामी), संस्थागार में पधारे और धर्म कथा कहकर पावावासियों असम्यक् सम्बुद्ध प्रवेदित (किसी बद्ध से न जाने गये), को सम्प्रहर्षित किया। जब पावावासी चले गये, तब प्रतिष्ठा (आधार) रहित, भिन्न स्तूप, आश्रय रहित धर्म भगवान ने शान्त भिक्षु-सघ को देख आयुष्मान् सारिपुत्त विनय में थे। को प्रामत्रित किया और उनसे भिक्षुत्रों को धर्मकथा चुन्द समणु स पावा मे वर्षावास समाप्त कर सामगाम सुनाने के लिए कहा ।) उस समय निगठ नाटपुत्त अभीमे प्रायुष्मान प्रानन्द के पास पाये और उन्हे निगण्ठ नात- अभी पावा मे काल को प्राप्त हुए थे। पुत्त की मृत्यु तथा निगठो मे हो रहे विग्रह को सूचना दी। निगंठ नातपुत्त को मृत्यु का कारणआयुष्मान् अानन्द बोले- ग्राघुस चुन्द ! भगवान के दर्शन 'नन अय नातपुत्तो नालन्दावासिको। सो के लिए यह बात भेट रूप है । प्रायो, पाबुस चुन्द ! जहाँ कस्मा पावाया कालकतो 'ति । सो किर उपाभगवान है, वहाँ चले । चलकर यह बात भगवान को कहे लिना गाहापतिना पटिबद्ध सच्चेन दसहि गाथाहि 'अच्छा भन्ते !' चुन्द समणुद्देस ने कह कर प्रायुष्मान भापिते बूद्ध गुणे सूत्वा उण्ह लोहितं छड्डेसि । अानन्द का ममर्थन किया। अथ नं प्रफासुकं गहेत्वा पावां अगमंसु । सा तत्थ निर्वाण सवाद -२ कालं अकासि ।' ___ एव मे सुत'। एक समय भगवा सक्के सु विहरतो -मज्झिम निकाय अट्ठकथा, सामगाम सुत्तवण्णना, वे घजा नाम सक्या तेस अम्बवने पासादे ।... (ई. खण्ड ४, पृ० ३४
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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