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१७४ वर्ष २४, कि० ४
मुल्तान इस जनपद की राजधानी' थी। महाराज रामचन्द्र ने लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु' को यहां का राज्य दिया था ।
द्वितीय मल्ल जनपद वह कहलाता था, जिसमे पारसनाथ' की पहाडियां है : यह प्रदेश वर्तमान हजारीबाग और मानभूम जिलो के कुछ भाग से बनता था। पारसनाथ की पहाड़ियों को मल्ल पर्वत भी कहा जाता था ।
हिन्दू पुराणों और महाभारत ( भीष्म पर्व, श्रध्याय 8 ) में केवल दो ही मल्ल देशो का वर्णन मिलता है — एक पश्चिम मे और दूसरा पूर्व मे ।
कुशीनारा और पावा मे भी मल्ल लोग रहते थे । यह तीसरा मल्ल जनपद था । कसिया ( प्राचीन कुशीनगर ) मे जो ध्वसावशेष उपलब्ध होते है, उन्हें मल्ल सामन्तों, श्रेष्ठियों के महलों के अवशेष माना जाता है ।
प्राचीन भारत में मल्ल जनपदो की उपर्युक्त स्थिति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मुल्तान जिले वाले पश्चिमी मल्ल जनपद की राजधानी का नाम क्या था, यह तो स्पष्ट ज्ञात नही होता, किन्तु शेष दो मल्ल जनपदों की राजधानी पावा थी । तीसरी पावा इन दोनो के मध्य मेथी अतः वह मध्यमा अथवा मध्यम पावा कहलाती थी । जैन सूत्रागमो मे महावीर का निर्वाण मध्यमा पावा में माना है । इसी मध्यमा पावा का नाम आजकल पावापुरी है श्रीर उसे ही महावीर का निर्वाण क्षेत्र माना जाता है।
प्रनेकान्त
कुछ समय से पात्रा को लेकर एक विवाद उठ खड़ा हुया है। इस विवाद के कारण कई है - (१) पावा नामक कई नगरो के होने के कारण भ्रम उत्पन्न होना । ( २ ) वर्तमान पावापुरी मे प्राचीनता का कोई चिह्न न मिलना । (३) बौद्ध साहित्य के 'परिनिव्वाणसुत्त मे पावा मे बुद्ध को सुक्कर मद्दव खाने से प्रतिसार होना और इस तरह पावा की प्रसिद्धि होना । (४) पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा बौद्ध साहित्य के प्रकाश मे कुशीनारा के निकट पावा की खोज करना । ये और ऐसे ही अन्य छोटे बड़े कारण है, जिनके १. मि० कनिघम, आयलोजीकल सर्वे रिपोर्ट, पृ०
१२६ ।
२. बाल्मीकि रामायण, उत्तर खण्ड, पर्व ११५
३. McCrindle's Megasthenes and Arrian, p. P. 63, 139
कारण परम्परागत रूप से मान्य पाव रो क्षेत्र के स्थान पर उस पावा को मान्यता देने के लिए प्रयत्न हो रहा है, जिस पावा का सम्पूर्ण जैन साहित्य मे कहीं कोई वर्णन नहीं हैं । इसकी प्रेरणा कुण्डलपुर के स्थान पर भगवान महावीर की जन्म भूमि के रूप मे वैशाली को मान्यता मिलने से हुई है ऐसा लगता है। वैशाली के पक्ष मे प्रबल प्रमाण उपलब्ध थे, किन्तु कुशीनारा के निकट पावा को महावीर की निर्वाण भूमि मानने मे प्रमाण नही, नवीनता का व्यामोह और प्रत्यत्साह ही एक मात्र सम्बल है । बौद्ध साहित्य में पावा की स्थिति -
बौद्ध साहित्य में अनेक स्थलो पर विभिन्न प्रसंगों मे पावा का उल्लेख मिलता है । उन प्रसंगों का यहाँ उल्लेख करना सचमुच ही उपयोगी होगा और उनसे हमे उस पावा का निर्णय करने में सुविधा रहेगी, जो वस्तुत महावीर भगवान की निर्वाण भूमि है ।
निर्वाण सवाद - १
' एवं मे सुत । एकं समयं भगवा सक्केसु विहरति सामगामे । तेन खो पन समयेन निगण्ठो नातपुत्तो पावाय अधुना कालङ्घतो होति । तस्स कालङ्गिरियाय भिन्ना निगण्ठा द्वेधिकजाता भण्डनजाता कलह जाता विवादापन्ना प्रज्ञम मुखसत्तीहि वितुदन्ता विहरन्ति न त्वं इमं धम्मविनयं प्रजानासि । ग्रहं इमं धरमविनयं प्रजानामि । किं त्वं इमं धम्मविनयं आजानिस्ससि मिच्छापटिपन्नो त्वमसि ग्रहमस्मि सम्मापटिपन्नो । ... ये पि निगण्ठस्स नातपुत्तस्स सावका गिही प्रदातवसना ते पि निगण्ठेसु नातपुत्तिगेसु निब्बिन्नरूपा विरत्तरूपा पटिवानरूपा यथा तं दुरवखाते धम्मविनये दुप्पवेदिते निय्यान के अनुपसमसंवत्तनिके असम्मा सम्बुद्धत्पवेदिते भिन्नरूपे अपरिसरणे ।
अथ खो चुन्दो समणुद्देसो पावायं वस्सं वुत्थो येन सामगामो येनायस्मा श्रानन्दो तेनुपसङ्कमि; उपसङ्क्रमित्वा श्रायस्मन्तं श्रानन्दं श्रभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि । एकमन्तं निसिन्नो खो चुन्दो समणुद्देशो श्रायस्मन्तं श्रानन्दं एतदवोच- 'निगण्ठो भन्ते नातपुत्तो पावायं श्रघुनाकालङ्कृतो । तरस कालङ्किरियाय