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पावापुर
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धर्म अंगीकार कर लिया। भगवान ने उन ग्यारह विद्वानों प्रसिद्धि को प्राप्त हो गई । श्वेताम्बर वाङ्मय के उपर्यक्त को अपना मुख्य शिष्य बना कर उन्हे गणघर पद से विभू- उल्लेखो से पावा की वास्तविक स्थिति पर भी प्रकाश षित किया । अन्य भी अनेक नर-नारियो ने भगवान का पडता है । चतुर्विध संघ-स्थापना के प्रकरण मे मध्यमा उपदेश सुनकर मुनि-व्रत या श्रावक के व्रत लिये । भगवान (पाबा) को जम्भक गाव मे १२ योजन दूर माना है। ने वैशाख शुक्ला ११ को मध्यमा पावा के महामेन उद्यान तथा निर्वाण की घटना के प्रकाश मे यह बताया है कि मे साधु-साध्वी-श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ की भगवान चपा से अपापा पुरी पहुँचे । इस प्रकरण मे भगग्यापना की।
वान के बिहार का क्रम इस प्रकार दिया है-चपा नगरी इस नगरी मे दुमरी महत्वपूर्ण घटना भगवान के मे चातुर्मास पूर्ण कर के भगवान विचरते हुए जभिय गाव निर्वाण की है । भगवान चपा से बिहार करते हुए अपापा पहुँचे । वहाँ मे मिढिय होते हुए छम्माणि गये । यहीं पर पधारे । इस वर्ष का वर्षावास अपापा मे व्यतीत करने का ग्वाले ने भगवान के कान में कार के कीले ठोंके थे । निश्चय करके भगवान राजा हस्तिपाल को रज्जुग सभा में छम्माणि से भगवान मध्यमा पधारे । मध्यमा से विचरते पहुँचे और वही वर्षा-चातुर्मास की स्थापना की । इस हुए जम्भियगाव माये, जहा उन्हे केवल ज्ञान हुआ। केवलचातुर्मास मे दर्शनो के लिए पाये हए राजा पूण्यपाल ने ज्ञान के बाद वे पुनः मध्यमा प्राये, जहां गौतमादि को भगवान से दीक्षा ली। कातिक अमावस्या के प्रात: काल
अपन। गणधर बनाया। वहाँ से भगवान राजगृह गये। राजा हस्तिपाल के रज्जुग सभा-भवन में (कही इसे राजा
वहाँ पर चातुर्माम करके भगवान न गजगह से विदेह की हस्तिपाल की शुल्क शाला भी लिखा है) भगवान की
ओर विहार किया और ब्राह्मण कुण्ड पहुँचे। अन्तिम उपदेश-सभा हुई । उस सभा में अनेको गण्यमान्य
प्राचीन भारत के नक्शे को देखने से और भगवान के व्यक्ति उपस्थित थे। उनमें काशी-कोशल के १८ लिच्छ
उपयुक्त विहार-क्रम को दृष्टि में रखने पर यह पता चल वियो के नौ और मल्लो के नौ गणराजा उल्लेखनीय थे ।
सकता है कि भगवान चपा से मध्यमा पावा होते हए राजभगवान ने अपने जीवन की समाप्ति निकट जानकर
गृह गये और वहाँ से वैशाली गये, तब असली पावा कहाँ अन्तिम उपदेश की अखण्ड घाग चाल रक्खी, जो अमाव- हाना स्या की पिछली गत तक चलती रही । अन्त में प्रधान
यहाँ हम यह स्पष्ट कर देना आवश्यक समझते है कि नामक अध्ययन का निरूपण करते हए अमावस्या की पावा क सम्बन्ध में विवाद का कारण क्या है। पावा नाम पिछली रात को भगवान सब कर्मों से मुक्त हो गये। के नगर कई थ (१) उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में भगवान के निर्वाण पर उक्त गणराजाओं ने कहा-संसार कुशीनारा के पास कोई पपउर को पावा मानते है. कोई से भावप्रकाश उठ गया, अब द्रव्य प्रकाश करेंगे। यह पडरौना का और कोई फाजिल नगर के निकट सठियांव निश्चय करके उन्होने रत्नदीप जलाये । कालक्रम से उनके को। (२) दूसरी पावा राजगह के निकट विहार शरीफ स्थान पर अग्नि दीप जलाये जाने लगे । इस प्रकार इस से आग्नेय कोण मे सात मील दूर, जिसे जैन लोग अपना लोक मे दीपावली प्रचलित हई । गौतम स्वामी-जो उस तीर्थ मानते है । (३) तीसरी पावा हजारीबाग और ममय भगवान की प्राज्ञा से निकटवर्ती गांव में देवशर्मा मानभूम प्रदेश मे थी और उसकी राजधानी थी। ब्राह्मण को उपदेश करने के लिए गये हुए थे, वे लौटकर पहली पावा मल्ल गणगज्य की राजधानी थी। महा. भगवान की वन्दना के लिए वापिस पाये। तब उन्होने वीर के काल मे मल्ल जनपद भी तीन थे । प्रथम मल्ल देश देवतामो को यह कहते हुए सुना-'भगवान कालगत हो वह कहलाता था, जिसे प्राजकल मुल्तान जिला (पश्चिमी गये।' उन्हे तत्क्षण केवलज्ञान होगया ।
पाकिस्तान) कहा जाता है। एलेक्जेण्डर के मतानुसार पावापुरी (जिसे मध्यमा, मध्यमा पावा और अपापा यहां के निवासी मल्ल कहलाते थे और महाभारत (सभापरी भी कहा जाता है। इन दो घटनामों के कारण अत्यन्त पर्व, अध्याय ३२) के अनुसार मालव कहे जाते थे।