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१७२, वर्ष २४, कि० ४
भनेकान्त
येतीनों रायबहादर सेठ टीकमचन्द भागचन्द जी अजमेर विविध तीर्थंकल्प का प्रपापा बृहत्कल्प मादि-पावा के वालों की ओर से मय खर्चा १०३६५।।1-) मे खरीदे स्थान पर मध्यमा पावा और पापा इन दो नामों का गये थे।
प्रयोग मिलता है। भगवान महावीर इस नगरी में दो (२) मौजा दशरथपुर मे टोपरा नग १७ साढ़े चार बार आये । संभव है, वे यहाँ अनेक बार पधारे हों। किन्तु बीघे धान के खेत खरीदे गये ।
दो महत्त्वपूर्ण घटनाये इस नगरी में घटित हुई थी, इस (३) रथ पिड वाली जमीन लगभग चार बीघा है। लिए इस नगर में भगवान के दो बार आगमन की चर्चा
(४) बिहार शरीफ में स्टेशन के पास लहरी मुहल्ला (श्वे० सूत्रों मे) विशेष उल्लेखनीय है। स्थित कोठी है। पास ही शिखरवन्द दिगम्बर जैन मदिर
प्रथम वार भगवान केवलज्ञान की प्राप्ति के अगले है, जिसमे धर्मशाला और कुपा है ।
ही दिन पधारे। ऋजुकूला नदी के तट पर अवस्थित (५) पावापुरी मे धर्मशाला के भीतर और बाहर दो जम्भिक ग्राम के बाहर साल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ला
१० को भगवान को केवलज्ञान उत्पन्न हुमा । इन्द्रो और वार्षिक मेला-यहाँ पर कार्तिक वदी १३ से १५ तक देवों ने भगवान के ज्ञान कल्याणक का उत्सव किया। वार्षिक मेला होता है । कई हजार व्यक्ति निर्वाणोत्सव किन्तु समवसरण मे केवल इन्द्र मोर देवता ही उपस्थित मनाने यहाँ पाते है । इस अवसर पर रथयात्रा होती है। थे। अतः विरति रूप संयम का लाभ किसी प्राणी को नही भगवान का रथ दिगम्बर धर्मशाला से चलकर जल मदिर हो सका। यह पाश्चर्यजनक घटना जैनागमो में 'प्रछेरा' होते हुए गाव के बाहर जाता है। वहां मण्डप में कलशा- (प्राश्चर्यजनक या अस्वाभाविक) नाम से प्रसिद्ध है। भिषेक होता है।
उन दिनों मध्यमा पावा मे-जो जम्भक गाव से लगक्षेत्र का प्रबन्ध भा० दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के भग बारह योजन (४८ कोस) दूर थी-सोमिलाचार्य ब्राह्मण अन्तर्गत बिहार प्रान्तीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी करती बड़ा भारी यज्ञ रचा रहा था। उसमें बड़े-बडे विद्वान् देश
देशान्तरों से पाकर सम्मिलित हुए थे। भगवान ने यह पावा को वास्तविक स्थिति
सोचा कि यज्ञ में आये हुए विद्वान ब्राह्मण प्रनिबोध पायेगे भगवान महावीर की निर्वाण भूमि अब तक विहार और धर्म के आधारस्तम्भ बनेगे, अत: वहा चलना ठीक शरीफ से सात मील दक्षिण-पूर्व में और गिरियक से दो रहेगा। यह विचार कर भगवान ने सन्ध्या समय बिहार मील उत्तर में मानी जाती थी किन्तु जब पुरातत्व वेत्ताओ कर दिया और गन भर चलकर मध्यमा के महासेन उद्यान
और इतिहासकारों ने यह सिद्ध किया कि पावा-जहाँ में पहुँचे। एकादशी का इसी उद्यान में भगवान का दूसरा महावीर का निर्वाण हुमा वह-नालन्दा की निकट बाली समवसरण लगा । भगवान का उपदेश एक पहर तक हमा। पावा नहीं, अपितु कुशोनारा की निकटवर्ती पावा है, तब भगवान का ज्ञान और लोकोत्तर उपदेश को चर्चा सारी विद्वानों का ध्यान पावा को सही स्थिति जानने के लिए नगरी मे होने लगी। सोमिल के यज्ञ में पाये हुए इन्द्रभूति गया । पावा कहाँ थी, वह कौन सी पावा थी, इसका नि- प्रादि ११ विद्वानो ने यह चर्चा सुनी । वे ज्ञान मद मे भरे र्णय करने के लिए हमे जैन और बौद्ध वाङ्मय के उन हुए अपने शिष्यों और छात्रो के साथ भगवान के पास साक्ष्यों का अन्तः परीक्षण करना आवश्यक है, जिनमे पावा पहुँचे । उनका उद्देश्य भगवान को विवाद में पराजित का उल्लेख मिलता है । इनके अतिरिक्त पुरातत्व सामग्री कर अपनी प्रतिष्ठा में चार चाद लगाना था । किन्तु वहाँ और शिलालेख से भी-यदि कोई हो तो इस सन्दर्भ में जाकर उनका मद विगलित हो गया। उन्होंने भगवान के सहायता मिल सकती है।
चरणों में विनयपूर्वक नमस्कार किया और दीक्षा ले ली। श्वेताम्बर साहित्य में पावा-श्वेताम्बर सूत्रों और इस प्रकार मध्यमा के समवमरण में एकही दिन मे ४४११ ग्रन्थों में-कल्पसूत्र, मावश्यक नियुक्ति, परिशिष्ट पर्व, ब्राह्मणों ने भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर श्रमण