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________________ पावापुर सम्बन्ध में जनता में एक विचित्र किम्बदन्ती प्रचचित है। करते थे तथा यहा जो धर्मशाला है, उसमें ठहरते थे। कहा जाता है कि भगवान के निर्वाण के समय यहाँ भारी जल-मन्दिर के बाहर एक 'समवसरण मन्दिर' है । जन-समूह एकत्रित हुपा था। प्रत्येक व्यक्ति ने इस पवित्र इसमे भगवान महावीर के प्राचीन चरण विराजमान है। भूमि की एक-एक चुटकी मिट्टी उठाकर अपने भाल मे इस प्रकार इस क्षेत्र पर पहले ये दो मन्दिर और श्रद्धापूर्वक लगाई थी। तभी से यह तालाब बन गया। धर्मशाला थी। इन सब पर दोनो सम्प्रदाय वालों का यह भी कहा जाता है कि यह सरोवर पहले चौरासी समान अधिकार था। किन्तु श्वेताम्बर समाज के व्यवहार बीघे में फैला हुआ था । किन्तु आजकल यह चौथाई मील के कारण दिगम्बर समाज को पृथक् धर्मशालाग्रो और लम्बा और इतना ही चौडा है। सरोवर अत्यन्त प्राचीन मन्दिरों का निर्माण करना पड़ा। अब जल मन्दिर और प्रतीत होता है। इसके मध्य मे श्वेत सगमरमर का जैन समवसरण मन्दिर पर तो दर्शन-पूजन की दृष्टि से दिगमन्दिर है जिसे जल मन्दिर कहते है। इसमें भगवान के म्बगे और श्वेताम्बरो के समान ही अधिकार है तथा पाषाण चरण विराजमान है। मन्दिर तक जाने के लिए बस्ती बाले मन्दिर में भी दिगम्बर जैन दर्शनो को जा तालाब में उत्तर की ओर एक पुल बना हुआ है। जिसके सकते है। दोनो ओर बिजली के बल्व लगे हुए है। रात्रि में जब जल-मन्दिर के निकट ही 'पावापुरी सिद्ध क्षेत्र दि. बिजली का प्रकाश होता है और उसका प्रतिबिम्ब जल जैन कार्यालय' है। वहाँ पर सात दिगम्बर जैन मन्दिगे मे पडता है तो दृश्य बड़ा सुन्दर प्रतीत होता है। जिस का समूह है। इसमे बड़ा मन्दिर सेठ मोतीचद पेमचदजी टापू पर मन्दिर बना हुप्रा है, वह १०४ वर्ग गज है। इम शोलापुर वानों को और में निर्मित हया और उसकी पुल का निर्माण एक दिगम्बर जैन बन्धु स्व० हीगलाल प्रतिष्ठा वि०म० १६५० में हुई थी। इसमें भगवान छज्जलाल जी प्रयाग वालो ने कराया था। इस पर से महावीर की मूलनायक प्रतिमा है जो दयनवर्ण की ३॥ मन्दिर में जाकर सभी दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन बन्धु फुट अवगाहना की है। भगवान के चरणो की वन्दना करते है। ____ इस मन्दिर के अतिरिक्त शेष ६ कार्यालय मन्दिरो इम गगेवर मे नाना वर्ण के कमल है। विविध वर्ण में से दो मन्दिरो का निर्माण सेठ मोतीचद खेमचद जी के खिले हुए कमल-पुप्पो के कारण सरोवर की शोभा शोलापुर ने तथा चार का निर्माण (१) श्रीमती जगपत अदभुत लगती है। पुष्पो पर सौरभ और रम के लोभी वीवी धर्मपत्नी स्व. लाला हरप्रसाद जी प्राग (२) भ्रमर गुजार करते रहते है। तालाब में मछलियाँ और वा. हरप्रसाद जी (३) लाला जम्बप्रसाद प्रद्युम्न कुमार सर्प किलोल करते रहते है। कौतुक प्रेमी लोग मछलियों जी सहारनपुर तथा (४) श्रीमती अनूपमाला देवी मातेको जब भोज्य पदार्थ जल मे डालते है, उस समय उन श्वरी वा० निर्मलकुमार चन्द्रशेखरकुमार जो प्राग मछलियो की परस्पर छीना-झपटी और क्रीडा देखने वालों ने कराया। इन सातों मन्दिरो में प्रतिमाओं की लायक होती है। संख्या लगभग १०० है। जिसमे धातु और पापाण की इस स्थान का प्राचीन नाम अपापापुरी (पुण्यभूमि) प्रातमाय और चरण सभी सम्मिलित है। था। यहाँ का प्राचीन मन्दिर पूरी बस्ती में बना हमा है। कार्यालय के साथ ही धर्मशाला है जिसमे दोनो मजिसभवतः पहले पावापुरी नामसे एक गाँव था। किन्तु न जाने लों मे ६१ कोठरियां व एक नौबतखाना है। इसके अतिकबसे पावापुरी पावा और पुरी इन दो गाँवोमे विभक्त हो रिक्त एक नई धर्मशाला उक्त धर्मशाला के पीछे बन गई गई है। इसमे लगभग एक मील का अन्तर है। जैन तीर्थ पुरी में है, पावा मे नही है। कुछ वर्ष पूर्व तक जल . दिगम्बर जैन कार्यालय के अधीन निम्नलिखित सम्पत्ति हैमन्दिर पर समान अधिकार था। दोनो जन सम्प्रदाय वाले (१) मौजा सिलौथा, मौजा केशर सुन्दरपुर वैताड़ी, भगवान के चरणों का दर्शन-पूजन अपनी मान्यतानुसार मौजा विसुनपुरा दियारा ये तीन मौजे मारा जिले मे
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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