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________________ पावापुर १६६ इससे प्रागे के विस्तार मे कल्पपत्र का रचना काल होगा, भगवान ने गौतम से कहा-'गौतम ! दूसरे गांव दिया गया है । और यह काल वीर निर्वाण स० ६८० मे देवशर्मा ब्राह्मण है। उसको तू संबोष मा। तेरे भथवा ६६३ था। कारण उमे ज्ञान प्राप्त होगा।' प्रभु के प्रादेशानुसार प्राचार्य हेमचन्द्र कृत "त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र' गौतम वहाँ से चले गये। के महावीर स्वामी चरित भाग के सर्ग १२ मे भगवान भगवान का निर्वाण हो गया। इन्द्र ने नन्दन प्रादि महावीर के अन्तिम काल का वर्णन किया गया है। उसमें वनों से लाये हर गोशीर्ष, चन्दन प्रादि से चिता चुनी। लिखा है कि भगवान विहार करते हुए अपापा नगरी क्षीर सागर से लाये हुए जल से भगवान को स्नान कराया, पहुँचे (जगाम भगवान्नगरीमपापाम् ।। (सर्ग १२ श्लोक दिव्य अगराग सारे शरीर पर लगाया। विमान के आकार ४४०) । वहाँ भगवान की देशना के लिए इन्द्रो ने सम- की शिविका में भगवान की मत देह रक्खी। उस समय वसरण की रचना की। भगवान ने जान लिया कि अब तमाम इन्द्र और देवी-देवता शोक के कारण रो रहे थे । मेरी प्रायु क्षीण होने वाली है, अतः अन्तिम देशना देने देवता आकाश से पुष्प-वर्षा कर रहे थे । तमाम दिव्य बाजे के लिए वे समवसरण मे गये । अपापापुरी के अधिपति बज रहे थे। शिविका के आगे दवियाँ नृत्य करती चल हस्तिपाल को जब ज्ञात हुआ कि भगवान समवसरण मे रही थी। पधारे है, तो वह भी उपदेश सुनने वहा गया । वहा इन्द्र श्रावक और श्राविकाये भी शोक के कारण रो रहे ने प्रश्न किया। उसका उत्तर देते हुए भगवान का उपदेश थे । और रासक गीत गा रहे थे। साधु और साध्विया भी हुमा । जब उपदेश समाप्त हो गया, तब मण्डलेश पुण्य- शोकाकुल थे। पाल (हस्तिपाल?) ने अपने देखे हुए स्वप्न का फल पूछा। तब इन्द्र ने अत्यन्त शोकाकुल हृदय से भगवान का भगवान ने उसका फल बताया। फल सुनकर पुण्यपाल शरीर चिता पर रख दिया। अग्निकूमारो ने चिता में ने मुनि-दीक्षा लेली और तप द्वारा कर्मों का नाश करके प्राग लगाई । वायुकुमारों ने प्राग को हवा दी । देवतामों मुक्ति प्राप्त की। ने धूप और घी के सैकड़ों घड़े चिता मे डाले। शरीर के तदनन्तर मुख्य गणधर गौतम स्वामी ने भगवान से जल जाने पर मेघकूमार देवो ने क्षीर समुद्र के जल की उनके निर्वाण के अनन्तर होने वाली घटनाग्रो के बारे मे मनोनिता कोशात । Hai rur की पूछा। भगवान ने कल्कि, नन्दवंश आदि के बारे मे बताया दो दाढ़े सौधर्म और ऐशान इन्द्रों ने ली और नीचे की तथा अवसपिणी की समाप्ति तथा उत्सपिणी का प्रवर्तन, दोनों दाढ़े चमरेन्द्र और वलीन्द्र ने लीं । अन्य दांत मौर भावी प्रेसठ शलाका पुरुष मादि के बारे मे भी भगवान हड्डियां दूसरे इन्द्रों और देवों ने लीं। पौर मनुष्यों ने ने बताया। चिता-भस्म ली। जिस स्थान पर चिता जलाई, उस स्थान तत्पश्चात् सुधर्म गणघर ने पूछा-केवलज्ञान प्रादि पर देवों ने रत्नमय स्तूप बना दिया। इस प्रकार देवतामों का उच्छेद कब होगा? इस प्रश्न के बहाने भाचार्य ने वहां भगवान का निर्वाण-महोत्सव मनाया।" हेमचन्द्र ने भगवान के नाम पर जम्बू स्वामी से लेकर स्थूलभद्र भोर महागिरि, सहस्ती तक की श्वेताम्बर वीर भगवान को निरिण-भूमि और वर्तमान पावा भाचार्य परम्परा का वर्णन कर दिया है। दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रन्थों के उपयुक्त विवरण इसके बाद भगवान समवसरण से निकल कर हस्ति- के अनुसार भगवान महावीर का निर्वाण कार्तिक कृष्णा पाल राजा की शल्कशाला में पधार । भगवान ने यह चतुर्दशी के अन्तिम प्रहर में पावापुर मे हुआ था । निर्वाण जान कर कि आज रात्रि में भरा निर्वाण होगा, गौतम के समय इन्द्र पौर देवो के अतिरिक्त वहाँ पर वैशाली का मेरे प्रति अनेक भयो से स्नेह है और उसे अाज रात्रि गणसघ के नौ राजा, काशी-कोशल के अठारह राजा और के अन्त मे केवल ज्ञान होगा, मेरे वियोग से वह दुखी मल्ल गणसघ के नौ राजा तथा असंख्य जन-समूह उप
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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