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________________ पावापुर स्वाति नक्षत्र के रहते हुए रात्रि के समय शेष अघाति- सरण विजित हो गया है, ऐसे भगवान योगनिरोध कर कर्मरूपी रज को छेदकर निर्वाण प्राप्त किया। मुक्त हुए। प्राचार्य गुणभद्र कृत 'उत्तरपुराण मे महावीर निर्वाण श्वेताम्बर प्रागम और महावीर निर्धारण के मन्दर्भ को प्राय अन्य प्राचार्यों के समान हो निबद्ध श्वेताम्बर प्रागमों में भी महावीर निर्वाण के सम्बन्ध किया है, किन्तु इममे अन्यो से साधारण अन्तर है। अन्य में दिगम्बर परम्परा की मान्यता का ही प्राय: समर्थन प्राचार्यों के अनुसार भगवान महावीर एकाकी मुक्त हुए मिलता है। जो अन्तर है, वह अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। थे किन्नु उत्तरपुगणकार के अनुसार भगवान के साथ दिगम्बर परम्परानुसार भगवान का निर्वाण कार्तिक कृष्ण एक हजार मुनि मुक्त हुए थे। वह इस प्रकार है : चतुर्दशी को रात्रि के अन्तिम प्रहर मे हुप्रा और अमावस्या 'इहान्त्यतीथनाथोऽपि विहृत्य विषयान् बहुन् ॥७६।५०८॥ को उनके मुख्य गणघर को केवलज्ञान हमा। श्वेताम्बर क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहरवनान्तरे । परम्परा मे भगवान का निर्वाण और गौतम गणधर को वहूनां सरसां मध्ये महामणिशिलातले ॥७६५०६।। केवल ज्ञान दोनों घटनाये अमावस्या को हुई। स्थित्वा विनद्वयं वीत-विहारो वृद्धनिर्जरः । __'कल्पसूत्र" मे महावीर के निर्माण का विस्तृत वर्णन कृष्णकातिकपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये ॥७६१५१०।। मिलता है। उससे पावापुर के सम्बन्ध में भी विशेष स्वातियोगे तृतीयेश शुक्लध्यानपरायणः । जानकारी प्राप्त होती है। वह उद्धरण यही दिया जा कृतात्रियोग संरोषः समुच्छिन्नक्रिय श्रितः ॥७६।५११॥ हताधातिचतुष्क: सन्नशरोरो गुणत्मकः । 'तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्य गन्ता मनि सहस्रण निर्वाणं सर्ववांछितम् ॥७६।५१२॥ रन्नो रज्जुगसभाए अपच्छिम अंतरावासं उवागए (इन्द्रभूति गणधर राजा श्रेणिक को भविष्य के संबंध । तस्स णं अंतरावासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे मे बताते हुए कहते है कि-) भगवान महावीर भी बहुत सत्तमे पक्खे कत्तिय बहले सस्स णं कत्तियवहलस्स से देशो में विहार करेंगे। अन्त में वे पावापुर नगर में पन्नरसी पक्खेणं जा सा चरिमारयणि तं रयणि पहुँचेंगे। वहाँ के मनोहर नामक वन के भीतर अनेक चणं समणे भगवं महावीरे कालगये विइक्कते सरोवरों के बीच में मणिमयो शिला पर विराजमान होगे। विहार छोड़कर निर्जरा को बढाते हुए वे दो दिन समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधण सिद्धे बुद्धे मुत्ते तक वहाँ विराजमान रहेंगे और फिर कार्तिक कृष्ण चतु अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खपहीणे चदे नाम से दशी के दिन रात्रि के अन्तिम समय स्वाति नक्षत्र में । दिवसे उवसमि त्ति पवच्चइ देवाणंदा नाम सा अतिशय देदीप्यमान तीसरे शुक्ल ध्यान में तत्पर होंगे। रयणी निरइ त्ति पवुच्वइ अच्चेलवे मुहुत्ते पाणू तदनन्तर तीनो योगो का निरोध कर समुच्छिन्न क्रिया छन्न क्रिया थोवे सिद्धे नागे करण सव्वट्ठसिद्धे मुहुत्ते साइणा प्रतिपाती नामक चतुर्थ शुक्ल ध्यान को धारण कर चारों नक्खत्तण जोगमुवागएणं कालगए विइक्कते जाव प्रधातिया कर्मों का क्षय कर देगे और शरीर रहित केवल सव्वदुक्खप्पहाण ॥१२३॥ अर्थ-भगवान अन्तिम वर्षावास करने के लिए गुण रूप होकर एक हजार मुनियो के साथ सबके द्वारा मध्यम पावा नगरी के राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा वाछिनीय मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे। मे रहे हुए थे। चातुर्मास का चनुर्थ मास और वर्षा ऋतु प्रशग कवि द्वारा विरचित 'महावीर-चरित्र' मे का सातवां पक्ष चल रहा था अर्थात् कार्तिक कृष्ण प्रमाभगवान के निर्वाण समय का जो वर्णन दिया गया है, वस्या पाई। अन्तिम रात्रि का समय था। उस रात्रि को उसका प्राशय यह है : _ 'भगवान विहार करके पावापुर के फूले हुए वृक्षों १. श्री अमर जैन पागम शोध संस्थान सिवाना (राज.) की शोभा से सम्पन्न उपवन में पधारे। जिनका समव से प्रकाशित पृ० १९८ ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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