________________
पं० रतनलाल कटारिया
दश बाह्य-परिग्रह
जैन शास्त्रो मे परिग्रह दो प्रकार का बताया है एक यानं शय्यासनं कुप्य, भांडं चेति बहिर्वश ॥६॥ बाह्य और दूसरा ग्राभ्यतर । बाह्य-परिग्रह के १० भेद ६. सागार धर्मामृत (प. प्राशाधर कृत अध्याय ४ श्लोक बताए है और प्राम्यतर के १४ । नीचे-दश प्रकार के ६२ की टीका)बाह्य-परिग्रह पर समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत किया वास्तु क्षेत्र धनधान्य द्विपद चतुष्पद शयनासन यान जाता है।
कुप्य भांडं लक्षणं दशविध बाह्यग्रथं ॥ शास्त्रो में बाह्य-परिग्रह के दश भेद इस प्रकार १०. रत्नकरण्डश्रावकाचार की प्रभाचन्द्र कृत टीका बताये है :
(श्लोक १४५)१. मूलाचार (पंचाचाराधिकार, प्रथम भाग पृ० ३२०)- क्षेत्र वास्तु धनं धान्यं, द्विपदं च चतुष्पदं ।
खेत्तं वत्थुधणं धण्णगद दुप्पद चतुप्पद गद च । शयनासनं च यानं, कुप्प भांडममीदश ॥
जाण सयणासणाणि य, कुप्पे भडेसु वस होति ॥२११ ११. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार (सकलकीर्ति कृत) सर्ग १६२. भगवती आराधना (शिवार्यकृत)
क्षेत्रं गृहं धनं धान्यं, द्विपदं च चतुष्पदं ।
प्रासनं शयन वस्त्र, भांड स्याद् गहमेधिनां ॥५॥ बाहिर संगा खेत्त वत्थं घणधण्ण कुप्पभंडानि । दुपय चउप्पय जाणाणि चेव सयणासणे य तहा ॥११॥ १२. त्रिवर्णाचार (सोमसेनकृत) अध्याय १०
क्षेत्रं वास्तु धनं धान्य दासी दासश्चतुष्पद । ३. हरिवशपुराण (जिनसेन कृत) सग ३४
यानं शय्यासनं कुप्य भांडं चेति बहिर्वश ॥१४०।। चतुष्कषाया नव नोकषाया, मिथ्यात्वमेते द्विचतुष्पदे च । क्षेत्र च धान्यं गहकुप्पभांड, धनं च यान शयनासन च।
१३. श्रावकाचार (उमास्वामी, पूज्यपाद के नाम से)
क्षेत्रं वास्तु धन धान्य, द्विपदं च चतुष्पदं । ४. ज्ञानार्णव - (शुभचन्द्राचार्य कृत) सर्ग १६
प्रासन शयनं कुप्यं, भांडं चेति बहिवंश ॥१६, ७॥ वस्तु क्षेत्र धन धान्यं, द्विपदं च चतुष्पद ।
१४. देवसेन कृत माराधनासार की लिनदि कृत टीका शाय्यासनं च यान च, कुप्यं भांड ममीदश ॥४॥
(गाथा ३० मे उक्त च)५. यस्तिलक चम्पू (उपासकाध्ययन)
सयणासण घर खित्त, सुवण्ण-धणधण्ण कुप्य भडाई। क्षेत्रं धान्यं धनं वास्तु, कुप्यं शयनमासनं ।
दुपय च उप्पय जाणसु, एदे बस बाहिरा गंथा । द्विपदाः पशवो भांडं, बाह्या वश परिग्रहाः ॥४३३॥
१५. चर्चासमाधान (प. भूधर जी मिश्र) पृ० ५६६. चारित्रसार (चामुडगय कृत) पत्र पृष्ठ ६३
भूमि यान धन धान्य गृह, भाजन कुप्य अपार । "क्षेत्र वास्तु धनधान्य द्विपद चतुष्पद यान शयनासन
शयनासन चौपब दुपद, परिग्रह वश परकार ।। कुप्य भांडानि वविधश्चेतनाचेतन भेद लक्षणो बाह्यपरिग्रहः।"
क्षेत्र वास्तु चौपद द्विपद, धान्य द्रव्य कुप्यादि । ७. सस्कृत आराधना (अमितगति कृत रूपान्तर)
भाजन पासन सेज ये, दश पर कार अनादि ॥७००। क्षेत्र वास्तु धन धान्य, द्विपदं च चतुष्पवं।
१७. बनारसी विलास पृ० २०६यानं शय्यासन कुप्यं, भांडं संगा बहिवंश॥११४६।। भूमि यान धन धान्य गृह, भाजन कुप्य अपार । ८. प्राचार सार (वीरनदिकृत) अधिकार ५
शयनासम चौपद द्विपद, परिग्रह वश परकार ॥२६॥ क्षेत्र वास्तु धन धान्यं, विपदं च चतुष्पदं ।
१८. ज्ञानानद श्रावकाचार पृष्ठ ३६ मे भी इसी प्रकार