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जैन शिल्प में बाहुबली
होगा। लतावल्लरियो की कतार देवता के चरणों से देखा जा सकता है । " लेख के प्रारम्भ में वणित कथानकों जाघों तक लिपटी है। साथ ही कलाइयो व भुजाओं में के ही कुछ वणित दृश्यों को इसमे उत्कीर्ण किया गया
वाल्लर देखी जा सकती है। देवता की केशसज्जा है। एक अन्य मूर्ति शत्रुजय गिरि स्थित मादिनाथ मन्दिर जमशाली । कर्ण लम्बे व नासिका कुछ झुकी हुई सी के गर्भगृह मे प्रतिष्ठित है, जिसमें बाहवली को चिन्तन है । देवता की मुखाकृति पर प्रदर्शित मदस्मित के भाव से की मुद्रा मे खड़ा प्रदर्शित किया गया है। उनके पैरों ऐसा प्रतीत होता है मानो वे ससार से विदा ले रहे हों। मे लतावल्लरियां लिपटी है । साथही ब्राह्मी मौर सुन्दरी
मैसूर के १४ मील दक्षिण-पश्चिम मे स्थित गोम्मट. की प्राकृतियां भी उत्कीर्ण हैं । यह मति पादपीठ पर गिरी से गोम्मटेश्वर की एक १८ फीट ऊँची मनोज्ञ प्रतिमा उत्कीर्ण लेख के अाधार पर १२३४ ईसवी में निर्मित प्राप्त होती है, जिसमे देवता को प्रभावपूर्ण मुद्रा मे प्रतीत होती है । प्राबू और शत्रुजय दोनों ही स्थलों पर खडा किया गया है। नग्न आकृति की मुखाकृति श्रवण बाहुबली को धोती पहने हुए चित्रित किया गया है । यहाँ वेलगोला मति के काफी कुछ समान है, मात्र कुछ यह ध्यातव्य है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित यही विभिन्नतापो को छोड़कर । इस प्रतिमा की मुखाकृति से दो मूर्तियाँ प्राप्त हो सकी है। एक नवयुवक साधु का प्राभास होता है। बाबियों का बाहुबली व भरत का अंकन करने वाले चित्रों की इसमे पूर्णरूपेण प्रभाव है व हाथो की मुद्रा भी भिन्न संख्या अधिक नही है । बड़ोदा के हस विजय जी के संग्रह है। लतावल्लरियो को परो-हाथो में लिपटा हुमा प्रदर्शित में स्थित १५२२ सवत् के कल्पसूत्र के चित्र मे, और जन किया गया है। मुखमण्डल पर प्रदर्शित विशिष्ट प्रकार चित्र कल्पद्रुम के चित्र संख्या १८१ मे भी पाहबलीका की शान्ति व सौम्यता का भाव बाहुबली के आन्तरिक चित्र प्राप्त होता, किन्तु कल्पसूत्र में बाइबली की कथा आनन्द की अनुभूति और कठोर चिन्तन का परिणाम वणित नही है।" इस संक्षिप्त चित्र में सम्पूर्ण दृश्य को है। यह बिंब १४२३ ईसवी मे प्रतिष्ठित किया गया था।
चार भागो में व्यक्त किया गया है। कारी भाग में भरत दक्षिण भारत की तेरिन बस्ती से भी मच्चीकण्वे द्वारा
व बाहुबली को दृष्टि व वाक युद्ध करते हुए प्रदर्शित १११५ ईसवी में प्रतिष्ठित एक बाहबली चित्रण (५ फीट
किया गया है । दूसरे में मुष्टि डण्ड युद्ध प्रदर्शित है । ऊंचा) प्राप्त होता है।
तीसरे भाग के प्रथम खण्ड में भरत को बाहबली का खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर के प्रदक्षिणा पथ की सामना करते हुए चक्र धारण किए प्रकित किया गया भित्ति पर कठोर तपश्चरण के प्रतीक बाह बली की एक है और द्वितीय खण्ड में बाहुबली को अपना मुकुट उतार सुन्दर प्रतिमा प्रकित है। पेरों से लेकर हाथों तक कर फेकते हुए चित्रित किया गया है। अन्तिम भाग में लिपटे हुए नागो तथा शरीर पर रेगते हुए वृश्चिकों का बाहुबली को धोती पहने हुए चिन्तन की मुद्रा में खड़ा चित्रण इस बिंब की ध्यातव्य विशेषता है। दिलवाड़ा व्यक्त किया गया है। बाहुबली के दोनो पाश्वों में एक स्थित विमल वसही मन्दिर के सभा-मण्डप को इस छत पर वृक्ष व सर्पो को पैरों के नीचे से हाथों तक लिपटा प्रदर्शित भरत और बाहुबली के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत चित्रण
किया गया है । बाहुबली के स्कन्धों पर पक्षियों के घोंसले
देखे जा सकते है । दो जैन भिक्षुणियो, ब्राह्मी व सुन्दरी, 10. Jain, Surendranath Sripalji Colossus of
को वाम पार्श्व मे हाथ जोड़े अकित किया गया है। भरत Shrabanbelgola and other Jain Shrines of Decean, Nutan Jain Sahitya Series-I, व बाहुबला दाना हा का
व बाहुबली दोनों ही की प्राकृतियाँ इस चित्र में स्वणिम है। Bombav, 1953, pp. 41-42. 11. Ibid., p. 32.
13. Jayantavijayaji Muni Shri, Holy Abu 12. Jaina, Niraj, Khajuraho Ka Parsvanatha
(trans in to Eng. by U.P. Shah), BhavJinalaya. In Hindi. Anekanta, yr.16, No. nagar, 1954, pp. 56-60. 4,Oct. 1963, p. 153.
14. Shah, U.P.op.Cit, p.36. 15. Ibid., p.37.