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१०, वर्ष २४ कि.१
अनेकान्त
माधवी वल्लरी उनके पैरों और हाथों में स्कन्धों तक पूर्णतः नग्न है। उत्तर दिशा की पोर खडी प्रतिमा के लिपटी हैं। देवता का ध्यान निमग्न अंकन चित्ताकर्षक स्कन्ध चौड़े व भुजाएं सीधी नीचे लटक रही हैं । कटि है। काफी कुछ मग्न मस्तक पर सभवतः धुमावदार केश प्रदेश संक्षिप्त है। घुटनो के नीचे का भाग तुलनात्मक रचना प्रदर्शित थी।
दृष्टि से कुछ छोटा व मोटा है। बांबी (anthills) से प्रिन्स प्राफ वेल्स म्यूजियम, बबई में स्थित २०" घिरी प्राकृति से सर्पो व माधवी वल्लरियों को प्रसारित ऊंची एक कांस्य मूति मे' बाहुबली को मण्डल पर खड़ा होते हुए दिखाया गया है। पीठिका एक खुले कमल के चित्रित किया गया है। उसके पैरो, भुजामों व जघो में रूप मे उत्कीर्ण है। मूखमण्डल सौम्य और शांत दीख डंठलों व पत्तियों से युक्त लतावल्लरियां लिपटी है। रहा है। इस प्राकृति का मुख्य भाग इसकी मुखाकृति है। नियमित पंक्तियों मे चित्रित केश रचना वृत्ताकार जिसपर व्यक्त मंदस्मित व चिन्तन का भाव इस रूप में छल्लों के रूप में देवता के स्कन्धों व पृष्ठ भाग मे प्रदर्शित व्यक्त है मानों बाहुबली सघर्षरत ससार की ओर देख रहे है। अण्डाकार मुखाकृति, भरे व संवेदनशील निचले होंठ हों। संसार से विरक्ति की भावना का पूर्ण निर्बाह इस भारी ठढी, तीखी नासिका, नितम्बो, सीधे परों व घुटनों चित्रण में किया गया है। देवता की केश-रचना चक्राकार की निर्मिती स्वाभाविक है। लम्बी भुजामो की हथेलियां घुमावों के रूप में निर्मित है। प्राकृति की नग्नता जहाँ शरीर से सटी हुई हैं। पृष्ठ भाग में देवता का मण्डन देवता के प्रात्म-त्याग की भावना का उद्बोधक है. वही काफी श्रेष्ठ है । प्राकृति की मुखाकृति से ही उसके प्रतर उसकी कायोत्सर्ग मुद्रा प्रात्म-नियन्त्रण की भोर सकेत में होने वाले ऊर्जा के प्रवाह का भाव स्पष्ट है जो बाह- करती है। कारकल से प्राप्त होने वाली दूसरी विशाल बली के गहन चिन्तन का परिणाम है । मूर्ति की निर्मिती प्रतिमा में भी सौम्यता व आत्म-त्याग की भावना व्यक्त इसके प्रारंभिक तिथि की पुष्टि करती है । डा०यू० पी० है। ४१ फीट ऊंची मूर्ति १४३२ ईसवी में प्रतिष्ठित शाह की धारणा है कि इस मूर्ति को ७ वीं शती के बाद की गई थी। अन्तिम प्रतिमा मद्रास के दक्षिणी कन्नड़ निर्मित नही बताया जा सकता है, जबकि अन्य विद्वान जिले के वेलूर नामक स्थल से प्राप्त होती है। ३५ फीट एलोरा-बादामी की बाहुबली प्रतिमानों से इसकी साम्यता ऊंची इस प्रतिमा को तिम्म या तिम्मराज मोडिया ने के प्राधार पर इसे पाठवी शती के पूर्व निर्मित मानना १६०४ ईसवी में स्थापित किया था। श्रवण बेलगोला की उचित नहीं समझते हैं।
प्रतिमा के विपरीत इसमें बांबी नहीं चित्रित है। इस दक्षिण भारत से प्राप्त होने वाली तीन विशाल चित्रण के बायीं ओर काफी संख्या मे सो को उत्कीर्ण प्राकृतियों में विशालतम ५६ फीट ६ इंच ऊंची प्रतिमा किया गया है, उनमें से दो काफी लम्बे व तीन फणो मंसूर राज्य के श्रवणबेलगोला नामक स्थल पर उत्कीर्ण वाले सर्प, जो मूर्ति के काफी समीप उत्कीर्ण है, देवता के है।' १८१-८३ ईसवी में गंग शासक के प्रमुख चामुण्डराय चरणों से घुटनों तक प्रसारित है। दोनों पाश्वों में अंकित द्वारा प्रतिष्ठित मूर्ति में कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी प्राकृति छोटे-छोटे सौ का उद्देश्य कुक्कुट सर्प का अंकन रहा 6. Shah, U.P., op.Cit. pp. 35-36
Eight All India Oriental Conference 7. Editorial Notes. A Unique Metal Image
Mysore, Dec. 1935, Banglore, 1937, pp. of Bahubali, Lalit-Kala, Nos. 1-2, April
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bhisheka of Gommateswara of Sravana
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