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________________ जन मिल्म में बाहुबली होता है। होल प्रतिमा के समान है, किन्तु निर्मिती मे यह उससे बाहुबली को इस अवसर्पिणी का प्रथम कामदेव भी श्रेष्ठ है। प्रयहोल का चित्रण बादामी के कुछ पूर्व प्रतीत बताया गया है। प्रादिपुराण में बाहबली को हरे रंग व होता है । एलोरा की जैन गुफापो जिनकी तिथि ८ वीं से हरिवंशपुराण में श्याम रंग का बताया गया है। वाहबली १०वी शती के मध्य निर्धारित की गयी है, में बाहुबली को अन्य कई नामो-गोम्मटेश्वर, भुजबली. डोर बली, के कई प्रकन देखे जा सकते है। प्रतिम जैन गुफा मे कुक्कुटेश्वर प्रादि से भी सबोधित किया गया है। दक्षिण उत्कीर्ण एक विशाल चित्रण मे बाहबली के दोनों पाश्वों भारत में बाहुबली की प्रारम्भिक मूर्तियां प्रयहोल. बादामी मे ब्राह्मी व सुन्दरी की प्राकृतियां सनाल कमलों पर व एलोरा की जैन गुफाओं में देखी जा सकती है। पश्चिम अवस्थित है। बाह बली की प्राकृति के समक्ष, अर्थात् भारत में परिवर्ती गुफापो मांगीतंगी और अनकाइ कमलासन के नीचे, दो हरिणों को चित्रित किया गया है, तनन्काई, मे भी बाहुबली की प्रतिमाये उत्कीर्ण है । जो शान्तिपूर्ण वातावरण का बोध कराते है । बाहुबली के __अयहोल की जैन गुफा मे बाहबली की कायोत्सर्ग मुद्रा मस्तष्क पर एक छत्र उत्कीर्ण है । ऊपरी भाग मे पूजन में खडी एक नग्न प्रतिमा अवस्थित है, जिसमे लता के लिए आती हुई उड्डायमान गन्धर्व प्राकृतियो को मूर्तिवल्लरियों को बाहबली की भजायों व पैरों में लिपटा गत किया गया है। साथ ही राजसी वस्त्रों व मुकुट हुमा प्रदर्शित किया गया है। साथ ही पैरों के समीप से युक्त भरत की प्राकृति को समीप ही हाथ जोड़े प्रकित वल्मीक से सो को अपना फण उठाते चित्रित दाहिनी ओर अकित किया गया है। ब्राह्मी व सुन्दरी किया गया है । मुख्य प्राकृति के दोनों पावों में ब्राह्मी व की उपस्थिति के सम्बन्ध में श्वेताम्बर ग्रन्थों में ही उल्लेख सुन्दरी की प्राकृतियां चित्रित हैं, जो राजकुमारियों के मिलता है, जब कि प्रारम्भिक दिगम्बर ग्रन्थो में पूजन परिधानो, मुकुटों व प्राभूषणों से सुसज्जित है । इस चित्रण करते हुए भरत के चित्रित किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। के सम्पूर्ण ऊपरी भाग मे वृक्षों और उड्डायमान गन्धर्व तिन्नेवेल्ली जिले के काल मलाई गुफा में बाहुबली की प्राकृतियां प्रदर्शित है, जो वास्तव में बाहुबली की उपासना करते हए से प्रतीत होते है। बाहुबली की जटा के रूप ध्यान मुद्रा में खडी मूर्ति उत्कीर्ण है, जिनके दोनों पाश्र्वो में ब्राह्मी व सुन्दरी की प्राकृतियां अवस्थित है । इसे हवीं में उत्कीर्ण केश लटो के रूप मे स्कन्धों तक लटक सदी में निर्मित बताया गया है। इस प्रकार का चित्रण रहे है । देवता की मुखाकृति कुछ अण्डाकार है, और नेत्र किल कुड्डी, रम्मन्नमलाई पहाडी मदुरा जिला और मदुरा ध्यान की मुद्रा में प्राधे खुले व प्राधे बन्द है । पैरो के जिले के ही समन र कोयिल और अन्नमलाई से भी प्राप्त ऊपर के भाग का मण्डन उत्कृष्ट है। देवता के स्कन्ध होते है बाहुबली की एक कांस्य प्रतिमा (१०x"३x" कुछ घुमावदार है। सभी प्राकृतियो की निर्मिती कटोर ३") कन्नड रिचर्स इन्सटीट्यूट म्यूजिम, घारवाड (न. है इस उभड़े हुए चित्रण को छठी-सातवी शती के मध्य व्य एम ७८) मे सगृहीत है।' एक वृत्ताकार पीठिका पर तिथ्यांकित किया गया है। बादामी की जैन गुफा निर्वस्त्र बाहबली को सीघा खडा प्रदर्शित किया गया है । नं. ३ के बाद की प्रतीत होती है, जिसमे ५७३ ईसवी में तिथ्यांकित मगलेश का लेख उत्कीर्ण है। बाहबली का 3. Shah, U.P., op. Cit., p. 35; Goswami, A., चित्रण करने वाले फलक' मे देवता की केश रचना अय Indian Temple Sculpture, Calcutta, 1956, p. 37. 1, Shah, U.P., Bahubali : A Unique Bronze 4. Shah, U.P., op. cit., pp. 34-35. in the Museum, Bull. Prince of Wales 5. Annigeri, A M. A Guide to the Kannada Museum of Western India, No. 4, 1953-54, Researeh Institute, Museum, Dharwar, p 34. 2. Loc.Cit. 1958, p. 30.
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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