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जैन या-क्षणियां और उनके लक्षण
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णा का
नहीं है। दूसरे, इन्हें देव माना जाए तो इनका अधिक से अधिक गुणस्थान चौधा होगा, जिन्हें कम से कम चौथे और अधिक से अधिक चौदहवें गुणस्थान वाला मनुष्य पूजा का पात्र नही बना सकता। तीसरे, प्राचार्य समन्त' भद्र ने 'वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः।' देवता बदुपासीत देवतामूढमुच्यते ।' कहकर इनकी पूजा का निषेष ही नहीं किया, उसे देवमूढता नाम भी दिया जो सम्यग्दर्शन का एक दोष है । इवर के पण्डितप्रवर दौलत. राम जी ने छहढाला में प्राचार्य समन्तभद्र की वाणी को हिन्दी में प्रस्तुत किया, 'जे राग-द्वेष मलकरि मलीन, बनिता-गदादि जुत चिह्न चीन । ते हैं कुदेव. तिनको जु सेव, सठ करत, न तिन भव-भ्रमण-छेव ।'
श्वेताम्बर प्रागमों और मथुरा की प्राचीन कला में जिन यक्षों (और उनके प्रायतनों) का उल्लेख है, वे इन यक्षों से भिन्न थे, यद्यपि उनकी भी पूजा के प्रमाण नही मिलते । साथ ही उन यक्षो के देवत्व की कम और मनुष्यत्व की सम्भावना अधिक है : पाश्चर्य नही, यदि मागामी शोघ-खोज के फलस्वरूप वे कोई ऐतिहासिक व्यक्ति सिद्ध किये जा सकें, जबकिप्र स्तुत यक्ष-यक्षियां शत-प्रतिशत पौराणिक व्यक्ति है।
यह भी उल्लेखनीय है कि इन यक्ष-यक्षियों के परस्पर दाम्पत्य का कोई उल्लेख नहीं। तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ के यक्ष घरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती अवश्य पति-पत्नी रहे दिखते हैं।
अन्त के चौबीस यक्षों और यक्षियो के लक्षण दिये जा रहे हैं। इनका आधार ग्रन्थ है बारहवीं शताब्दी के पण्डितप्रवर पाशाघर का प्रतिष्ठासारोद्धार, जिसका संपादन पोर अनुवाद प. मनोहरलाल जी शास्त्री ने प्रोर प्रकाशन १६७४ वि० मे जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई ने किया। कोष्ठकों में अपराजितपृच्छा के विधान दिये गये हैं। तीर्थंकरों के नामों के बाद के कोष्ठकों में उनके चिह्न दिये गये हैं।
संकेत ती-प्राराध्य तीर्थकर मौर उनका चिह्न (कोष्ठक में) वा-वाहन श-शरीर का वर्ण
मु-मुद्रा हा-हाथों की संख्या व-हाथों में धारण की गई वस्तुए दा-दाहिने हाथ/हाथों मे/की वा=बायें हाथ हाथों में की ऊ-ऊपर ऊपर का ऊपर के नी-नीचे नीचे का/नीचे के क-ऊपर से नीचे क्रमशः
वि-अन्य विशेषता/विशेषताएं १-गोमुख (वृषमुख)
ती ऋषभनाथ (बैल) वा-बैल श-सुनहला (सफेद) हाचार ब-ऊ दा परशु (वीर), नी दा अक्षमाला, कबा
फल (जाल) नी बा इष्टदान मु मातुलिंग (=
नीबू) वि१-बैल के समान मुख
२-मस्तक की पृष्ठभूमि में धर्मचक्र २-महायक्ष
ती-अजितनाथ (हाथी) वा हाथी श-सुनहला (श्याम) हा-आठ व=द क वरद मु, तलवार (अभयमु), दएड (मुद्गर),
परशु अक्षमाला। बा क्र चक्र (जाल), त्रिशूल
(अकुश), कमल (शक्ति), प्रकुंश (मातुलिंग) विचार मुख ३-त्रिमुख (त्रिवक्त्र)
ती संभवनाथ (घोड़ा) वामोर श-प्रजन के समान काला हा छह वदा क चक्र, (परशु), तलवार, (प्रक्षयमाला,
अकुंश (गदा), बा क दण्ड (चक्र), त्रिशूल (शंख), कतरनी (वरद मु)