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१४८, वर्ष २४,कि. ४
अनेकान्त
मर्थात् जहाँ स्वामी चरित्रहीन होगा वहाँ सामान्य अर्थात् जो ग्वाला गौ ही नहीं पालता । उसे दूध के जनता या प्रजा करेगी अर्यात् और भी अधिक चरित्रहीन दर्शन जीवन भर नहीं होते । जो माली लता गुल्मादि का होगी। प्राज की राष्ट्रीयता परिस्थिति में उस प्राचीन पालन ही नहीं करता वह भला सुन्दर पुष्प कैसे ले सकेगा। जैन कवि का कथन और भी विचारणीय है।
इस कथन की जितनी भी व्यजनाएं की जाए थोड़ी है। महापुराण-पुष्पदंत का यह महाकाव्य अत्यन्त भविसयत्त कहा- धनपाल धक्कड़ की इस कृति का मप्रसिद्ध कृति है। अन्य के प्रारम्भ में ही दुर्जनो के चरित्र नायक लोकिक पुरुष है, अतः कवि को गृहस्थ जीवन के पर प्रकाश डाला गया है। उनका स्वभाव तो बाधा विविध प्रसंगों के वर्णन का अच्छा अवसर प्राप्त हो गया उपस्थित करने या भोंकने का है, किन्तु इससे होता क्या है। अन्ततोगत्वा पुट धार्मिकता ही है, अतः नीति कथन है? वे पूर्ण चन्द्र पर कितने भी भोके उनसे चन्द्रमा पर भी धार्मिक भावना से ही प्रभावित है। यथाक्या कोई प्रभाव पड़ता है ? और यही विचार कर कवि जोवण वियार रस बस पसरि, सज्जनों की प्रशंसा करता हुमा ६३ जैन महापुरुषों के
सो सूरउ सो पडियउ । चरित्र लिखने में प्रवृत्त हो जाता है। इन विशाल ग्रन्थों में चल मम्मण वयणुल्लावएहि, नीति कथन विभिन्न शैलियो मे कहे गये है। प्रश्नोत्तर
जो परतिहिं ण खंडियउ ॥ (३-१८-६) शैली का एक उदाहरण देखिए :
अर्थात् युवक, शूर भी वही है और पडित भी वही है खगें मेहें कि णिज्जलेण, तर सरेण कि णिफ्फलेण। जो परनारी के कामोद्दीपक प्रपचो (वचनो) प्रादि द्वाग मेहें कामें कि णिहवेण, मुणिणा कुलण कि णित्तवेण । खडित नही होता (प्रभावित नही होता)। कन्वे णडेण कि नीरसेण, रज्जं भोज्जे कि पर बसेण । जहा जेण दत्तं तहा तेण यत,
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इमं सुच्चए सिठ्ठलोएण वुत्तं । प्रर्थात् पानी रहित जलद तथा तलवार से क्या ?
सु पायन्नवा कोद्दवा जत्त माली, फल रहित वृक्ष और बाण से क्या ? प्रद्रवणशील मेघ
कह सो नरो पावए तत्थ साली । और काम (यौवन) से क्या ? तप हीन मुनि तथा कुल
अर्थात् यह कथन सत्य है कि जो जैसा देता है, वैसा से क्या ? नीरस काव्य और नट से क्या ? पराधीन ही प्राप्त करता है। जो माली कोदो बोता है वह शालि राज्य और भोजन से क्या ? कहने की अावश्यकता नही कहां से प्राप्त करेगा। इसी प्रकार अन्य सुन्दर कथन अनेक कि यहाँ पानी, फल नीरस इत्यादि शब्दो मे सुन्दर श्लेष स्थलों पर है। यथाविद्यमान होने से काव्यात्मक चमत्कार प्रा गया है। इसी (क) जो दूसरो के प्रति पापाचरण की सोचता है, प्रकार अनेक कथन उद्धृत किये जा सकते हैं
उसका पाप उल्टा उसे ही दुखी करता हैउठ्ठाविउ सुत्तउ सीह केण (१२-१७-६) सोते हुए परहो सरीरि पाउ जो भाव। सिंह को किसने जगाया ।
तं तांसइ बलेवि संतावइ॥-६-१०-३ परियउ पुण रिप्रउ होइ राय (३६-८-५) जो मरा (ख) लाभ के विचार करते-करते हुए भी कभीहै वह खाली प्रवश्य होगा।
कभी मूल भी नष्ट हो जाता हैमाण भंगु वर मरण न जीविउ (१६-२१-८) अप- जंतहो मूलु वि जाह लाह चितंत हो। (३-११-५) मानित होकर जीने से तो मृत्यु प्रच्छी।
बम खंड काव्यों में नीतिएक अन्योक्ति मोर देखिए
___ऊपर वर्णित कृतियाँ अपभ्रंश के महाकाव्य थे । सर जो गोवाल गाइ णउ पालइ,
काव्यों में नीति कथनों का अध्ययन किया जा सकता हैसो जीवंतु दुषु ण णिहालह। सुवंसण चरिउ (सुदर्शन चरित्र)जो मालार वेरिल [उ पोसइ,
नयनंदी की यह कृति अपभ्रंश की एक सुन्दर काव्य सो सफुल्ल, फलु केंग लहेसह । (५१-२-१) कृति की दोष मुक्तता का उल्लेख किया है। इस संर