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हिन्दी के कुछ अज्ञात जैन कवि और अप्रकाशित रचनाएं
घनघोर वरसत हरित छिति तल बढ़त प्रति अनुराग । वन उरोज सरोज राजित तरुन वदत सार ॥ मास भादौ रमति जगतति कमल कोमल हाथ । कनक कुण्डल श्रवन शोभित सेहरो सिर सारु | पहिर अमर प्ररुन सुरभत रुचिर मनिमय हारु ॥ श्रमर भ्रमरी तरुन तरुनी चित हरत विचित्र । जगदभूषन मन हरं जगदीस परम पवित्र ॥ सभग हिंडोलना झूलत जगपति इनकी ग्रन्य रचनाए भी होगी, मे सभी अन्वेषण कार्य पूर्ण नही हुआ वष्टि है। जिनमे बहुत से ग्रन्थ उपलब्ध हो सकते है । आशा है विद्वद्जन इस सम्बन्ध में अनुसन्धा करने का प्रयत्न करेगे ।
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परन्तु ग्रंथ भडारो भी मार
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जैन श्रावक प्रधान मंत्री थे। दोनों ही प्रपने जीवन को खपाकर राज्य का संचालन करते थे। वे बुद्धिमान और धर्मात्मा थे, उनके छोटे भाई का नाम मीठा चन्द था । ने हमड वंश के भूषण ये । इनके पार द्रव्य था । कविबर सेवारामशाह की इन्होंने बडी सेवा सुश्रूषा की थी। उन्ही की प्रेरणा से कवि ने शान्तिनाथ पुराण सं० १८३४ मे श्रवणकृष्णा अष्टमी के दिन मल्लिनाथ के मन्दिर मे पूर्ण किया था, जैगा कि उसके निम्न पद्य से प्रकट है.
सवत प्रष्टादश शतक पुनि चौतीस महान । सावन कृष्ण पराष्टमी, पूरो कियो महान ।
वारदभावना नाम की एक कृति भी इन्होने सं. १८३४ मे बनाई थी। कवि ने कवि चतुविशति जिनपूजा स० १८५४ मे बनाकर समाप्त की थी । श्रनन्तव्रत पूजा और मन संग्राम नाम की दो रचनाएं भी बनाई हुई राजस्थान के शास्त्र भण्डारो में पाई जाती है । सभव है कवि ने अन्य ग्रन्थो की भी रचना की हो । कवि का समय विक्रम की १९वी शताब्दी है । कवि की एक कृती धर्मोपदेश 'छन्दोबद्ध का उल्लेख प० नाथूरास जी प्रेमी ने हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास पृष्ठ १ मे किया है ।
शाह
सेवारामशाह - यह जयपुर लश्करीवासी बखतराम के पुत्र थे। इनकी जाति खंडेलवाल थोर धर्म जैन था । इनके तीन भाई और थे जिनका नाम जीवनराम, खुशाल और गुमानीराम था। इन जीवन ने जिनेन्द्र के भक्तिपूर्ण पद और स्तुनियों की रचना की थी । इनके पिता बखतराम ने 'मिध्यात्व खडन और बुद्धि विलास' इन दो ग्रन्थों की रचना की थी ।
शाह सेवाराम पं० टोडरमल जी के शिष्य थे। उन्हीं की कृपा से उन्हें यह बोध प्राप्त हुआ था । तपस्वी ब्रह्मरायमल्ल का भी कवि ने उल्लेख किया है' । कवि ने २. 'शान्तिनाथ पुराण' मालव देश मे स्थित देवगढ मे जहाँ सामन्तसिह नरेश राज्य करते थे। सामंत सिंह के दो १. वासी जयपुरतनो टोडरमल कृपाल ।
तास प्रसंगको पायके लह्यो सुपथ विशाल || गोरादिकन मे सिद्धान्तन मे सार प्रवरबोध जिनके उदे महाकवि निरपार ॥५० पुन ताके तट दूसरी रायमल्ल बुधिराज । जुगलमल्ल ये जब जुरं और मल्ल किहि काज ।। ५१ देश बुढाहट आदि दे संबोधे बहु देश । रवि रचि प्रथ सरसकिये टोडरमल्ल महेश ॥
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सन् १८३४ में दो जैन श्रावकों के मंत्री होने का उल्लेख ऊपर किया है। उनमे एक तो कपूरचन्द प्रधान मंत्री थे और दूसरा मंत्री संभवतः सुन्दरसिंह था । सवत् १८३१ मे महारावल गावलसिंह का देहास होने पर उनका कवर सावंतसिंह सात वर्ष की अवस्था मे गद्दी पर बैठा था । उस समय का शासनकार्य राजमाता कुंदन कुवरी, अपने जाना सरदार सिंह, मंत्री कपूरचन्द, राघव वरूशी तथा शाह गुमान के परामर्श से चलाती थी। सेवाराम सम्भवतः उस समय वहाँ थे। इन दोनों मंत्रियों के कार्यकाल मे यह ग्रन्थ बनाया गया है।