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हिन्दी के कुछ अज्ञात जैन कवि और अप्रकाशित रचनाएं
मासु मेरो तीन काल में प्रखंड विनस्यो न विनसंगो वर्तमान वए हैं। घटनुष्य भिन्न प्राय धानी हो सता लिये, प्रति ही धनादि के न काहू मोहि कहे है। जाग्यो निज भेद चद प्रातम प्रभेद सदा, भेव रूप अभेद जिन नं प्रवान कहे है ।। ५०॥ यह अज्ञानी जीव जीत ही प्राशा करता है थोर काम से डरता है, चारों गति डोलता फिरता है परन्तु मोक्ष मार्ग मे नही आता, अपने घर की रीति नहीं जानता किन्तु पर से (माया मे) प्रीति जोडता है, जिस तरह रास्तागीर बटोही से मिल जाते है पुद्गल को अपना मानता है । इस तरह यह जीव श्रात्म-परिचय के बिना ससार मे सदैव घूमता रहता है।
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जीतव को प्रास करे काल देखे हाल डर, डोले चारों गति में न श्रावे मोक्षमग में माया सौ मेरो क है मोहनी सो डार है ताते जीव लागे जमो डांक दियो नग में घर को न जाने रीति पर सेती तो मार्ड प्रीति, वाट के बटोही जैसे प्राय मिले मग में।
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दुग्गल सौ कहे मेरा जीजा कर्म यो कुलपुधि में फिरं जीव जगमें
गुरु दया कर भव्यों का हित जानकर उपदेश देते है, उन्होंने बतलाया है कि क्रोध, मान को शत्रु जानकर छोड और लोभ की हानिकर छोड, और मोहरूपी प्रचण्ड मही घर को गिरा कर सुमतारूपी शिवरानी को घट मे प्रगट कर, जिससे अविनाशी आत्मा का लाभ हो । गुरु ग्राप दयाल दया करके उपवेश कहै भविको हित जानी, कोष महा परिमान तजो जि लोभ महाछ की करिहानी मोह महीधरसों परिचंड गिराय दियो गुरु की सुनि वानी, कुमिला कुमता करती सुभई घट मै प्रगटी सुमता शिवरानी ।
शाह लोहट - इनका जन्म वधेरवाल वंश' मे हुमा
बघेरवाल जाति ४ उप-जातियों में से एक है। इसका विकास 'वघेरा' नामक स्थान से हुआ है । वरवानों के घर वहाँ अब एक भी नहीं है। किन्तु राजस्थान
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था। इनके पिता का नाम धर्मा था। इनके तीन पुत्र हुए, होरा, सुन्दर धौर लोहट' इनमें लोहट सबसे छोटे थे। पहले यह साभर में रहते थे, बाद मे बूंदी आकर रहने लगे थे। उस समय वहाँ रावत भावसिंह का राज्य था । जो विवेकी वीर और पराक्रमी शासक थे। और न्याय, नीति से प्रजा का पालन करते थे । कवि ने बूदी का अच्छा वर्णन किया है । उस समय बूंदी इन्द्रपुरी के समान सुन्दर थी, जन-धन-धान्य से सम्पन्न थी । वापी, कू, तडाग, बाग, बाजार तथा सुन्दर वीथियो से अलंकृत थी जैसा कि कवि के निम्न पद्य से प्रकट है :
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के अन्य गांवों, कस्बो श्रौर शहरो मे उनका निवास पाया जाता है। धारा मे तो उनके अनेक घर है । वघेरवाल अपनी जन्मभूमि के कारण मेरा के भगवान शान्तिनाथ के दर्शनो को अवश्य आते है । वघेरवालो के ५२ गोत्र बतलाये जाते है । यहाँ उनमे से कुछ गोत्रो के नाम अपने उपनाम के साथ दिये जाते है। बागडिया (मिश्रीकोट कर) खटवड पितलिया (नादगांवकर दर्यापुर), खटोल ( जोहागपुरकर), गोवाल ( सगई चवरिया), जनगांव (देऊन गावकर) कर चवरे, डोणगांवकर, जितूरकर, देवलसी, ( रायबागकर ), खडारिया प्राग्रेकर ( भीमीकर कलमकर), बोरखडया ( नगरनाईक), कारंजा, महाजन इस जाति में अनेक महापुरुष श्रेष्ठी, विद्वान आदि हुए है। पंडित प्रवर श्रगाधर जी जैसे विद्वान इस जाति के भूषण से शाह जीजा और पूनम इस जाति के गौरव थे। जिन्होने अनेक मन्दिरो और मूर्तियो का निर्माण कराया । और चित्तौड़ में कीर्ति स्तम्भ का निर्माण कराया और उसकी विधिवत प्रतिष्ठा की । प्रस्तुत कीर्ति स्तम्भ का निर्माण विक्रम की (१३वी शताब्दी मे हुप्रा है । और विशालकीति पट्टधर शुभकीति ने उसकी प्रतिष्ठा की थी ।
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२. वंस पेरवास मो बाल दुर्गेण बरयोत्र दिसाल
घरमधुरंघर घरमेधीर ता सुत तीन महावर वीर ॥ हीरो सुन्दर बड़े सुजान, लघु लोहट बुद्धिवंत निधान । श्री जिनदेव सुरु को दाम, कीनी भाषा ग्रंथ प्रकाश ॥