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________________ हिन्दी के कुछ अज्ञात जैन कवि और अप्रकाशित रचनाएं परमानन्द जैन शास्त्रो कवि सांगु या सांगा-कवि ने अपना कोई परिचय पुत्र कलत्र केहि न परीवार, कहिनी लक्ष्मी कहिनी नार। नही दिया, और न अन्यत्र से ही प्राप्त हो सका है। अभ्रपटल जिमि दीसे मेह, तिसु कहीय संसार-सनेह । ८ कवि ने अपना नाम 'साँगु' प्रकट किया है। अपनी गुरु विषय तरुण सुख रूपड़ा, साभलि राय सुजान । परम्परा और समयादि भी नहीं दिया। जिसस रचना काल सुख होई सरसो सम, दुग्ख ते मेरू समान । का निश्चित करना सभव नहीं है। इनकी एक मात्रकृति विषया के री वेलड़ी जेणि न छेदा जाणि । 'सुकोशलरास' है, जिसमे १७० के लगभग पद्य है । भाषा यवारि फलो फल लागिसी, दुख देमि निरवाणि ॥ १० में हिंदी के साथ गुजराती का मिश्रण है । परन्तु कविता जे नर नारी मोहिया सुणि सुकोशल भप। सरस है । प्रस्तुत रास मे दूहा, चौपई के अतिरिक्त वस्तु ते नर कहीइ बापड़ा, पडघा ससारह कूप ।। ११ बध, राग विराड़ी, ढाल वणजारानी आदि छन्दों का प्रयोग विषयतणा सुख परिहरि, छडे वा भवपार । किया है । यह ग्रंथ पंचायती मन्दिर दिल्ली के शास्त्रभडार चलणे लागो गरनि मागि संयम भार ।। १२ मे एक विशाल गुच्छक में सगृहीत है । गुच्छक सक्त सकौशल ने मुन का उपदेश मुनकर, ससार स १६१६-१७ वीं शताब्दी का लिखा हुआ है। इसकी दूसरी विरक्त हो, गजभोगी का परित्याग कर और गर्भस्थ पुत्र प्रति 'नणवा' के शास्त्र भडार में एक गुच्छक मे उपलब्ध को राज्य देकर दीक्षा ले ली। स्कासन की मुनि दीक्षा है जो सं० १५८५ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशो रविवार को से माता बहुत दुखी हुई। वह मूरित होकर पृथ्वी पर लिपिबद्ध हुअा है। इससे इस रास की उत्तराधि स. गिर पडी' । उपचार करने से मूर्छा दूर हो गई, किन्तु १५८५ सुनिश्चित है। प्रत. यह रास विक्रम की १५वीं उसे सारा राज परिवार और मन्दिर सूना दिखाई दिया। शताब्दी या १६वीं शताब्दी के पूर्वाध की रचना हो वह पुत्र वियोग जन्य प्रार्तध्यान से मरी और वाघिणी हुई । सकती है। इसमे सुकौशल का जीवन-परिचय प्रकित है। , । जैसा कि कवि के निम्न पद्य से प्रकट है :एक समय सूकोशल के पिता मुनि कीर्तिघवल राज जे जननी मनिवर तणी महदेवी री साल। महल के पास बैठे हुए उपदेश दे रहे थे। पर उन्हे रानी ते भखी वन माहि भमि. वाघेड़ी थई विकराल । सहदेवी ने पाहार नही दिया। इससे राजा की दासी को मनि सकोशल वन में ध्यानस्थ थे। एक वाघिनी बड़ा दुख हुमा । मुनि वस्तु स्वरूप का कथन कर रहे थे। उधर से भूखी प्यामा होने के कारण मुनिवर पर झपट जिसे सुकोशल ने भी सुना । अतः वह जाकर मुनिराज के पड़ी। उसने मुकोशल मुनि के शरीर का विदारण किया। चरणों में पड़ा । मुनिराज ने उसे प्राशीर्वाद दिया और मुनि आत्म-ध्यान मे निष्ठ हो केवली हुए। उन्होने उस सांसारिक सुख की प्रसारता बतलाई। जैसा कि रास के स्थान को प्राप्त किया जहाँ जन्म, मरण, दुःख, सताप, निम्न पद्यों से प्रकट है: कर्मबन्धन और रूपादि वर्ण नहीं हैं किंतु प्रात्मा अपने १. करजोड़ी सांगु कहि सब गुरु सेव कर चोस । कुंवर सुकोशल चुप ही हूँ सांख्येय भष्योस । -सुकोशल रास मन्तभाग १. पुत्र तणी जब टूटी प्रास, पडी पृथ्वी गति न लेही साँस । घडी व चार अचेतन हवी, नारवी वायु तब छरी थई ।। -सुकोशलरास
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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