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________________ पाम् अहम् अनेकान्त परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसिताना विरोषमयनं नमाम्यनेकान्तम ।। वर्ष २४ किरण ४ वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४६८, वि० सं० २०२७ सितम्बर अक्टूबर १९७१ श्रेयान्स जिनस्तवन अपराग समाश्रेयन्ननाम वमितोभियम् । विदार्य सहितावार्य समुत्सन्नज वाजितः ॥४६ अपराग स मा श्रेयन्ननामयमितोभियम् । विदार्य सहितावार्य समुसन्नजवाजितः ॥४७ -स्वामी समन्तभद्र अर्थ--हे वीतराग ! हे सवज्ञ ! आप सुर, असुर किन्नर आदि सभी के लिए आश्रयणीय हैं-सेव्य हैं- सभ। ग्रापका ध्यान करते हैं, आप सब का हित करने वाले हैं अतः हिताभिलाषी जन सदा पापको घरे रहते हैं- आपकी भक्ति वन्दना आदि किया करते हैं। आपकी शरण को प्राप्त हए भक्त पुरुष भय को नष्ट कर-निर्भय हो, हर्ष से रोमाञ्चित हो जाते हैं । आप पराग से-कषाय रज से-- रहित हैं। ज्ञानवान श्रेष्ठ पुरुषों से सहित हैं, पूज्य हैं तथा राग-द्वेषरूप संग्राम से आपका वेग नष्ट हो गया है-आप राग-ष रहित हैं। मै आपके दर्शनमात्र से ही प्रारोग्यता और निर्भयता को प्राप्त हो गया हूँ। हे श्रेयान्स देव ! मेरी रक्षा कीजिये ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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