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________________ 'एक ऐतिहासिक माल्यान आत्म-विजय की राह श्री ठाकुर' प्राज से पच्चीस शताब्दी पूर्व की घटना है। उन होने लगी। समन्तभद्र ने सुना तो मर्माहत होकर बैठे रह दिनों श्रावस्ती एक प्रसिद्ध महाजनपद थी । वह कोशल गये । यज्ञ-विधान का प्रमुख नेता प्राचार्य माण्डव्य उनके की राजधानी थी। महाराज प्रसेनजित कोशल के अघि- पास बैठा हुआ सम्पूर्ण ब्राह्मण जाति के समवेत रोष का पति थे। उन दिनों श्रावस्ती में बड़े-बड़े धन कुबेर रहते प्रदर्शन कर रहा था। वह रक्त नेत्रों से देखता हुमा कह थे, जिनके सौषों पर स्वर्णकलश और ध्वजाएं लहराती रहा था-'सेठ ! यह मायाचार है। ब्राह्मण इसे सहन थीं। जितनी ध्वजाए लहराती थीं; उतनी कोटि स्वर्ण- नही कर सकते। उनमे अभी तक ब्रह्म तेज विद्यमान है। मद्रामों का वह स्वामी समझा जाता था। ऐसे भी धन- वे अपने इस तेज से तुम्हें और तुम्हारे वंश को भस्म करने कुबेर वहाँ थे, जिनका स्वर्ण चहबच्चों में भरा रहता था की शक्ति रखते है। तुमने ही मणिभद्र को निग्गंठ नाथऔर उनके स्वर्ण की गिनती शकटों में भार से की जाती पुत्त के पास भेज कर वैदिक पक्ष को प्राघात पचाया थी। है । आज समाज तुम्हे वहिष्कृत करता है। ऐसे ही धनकुबेरों में एक थे समन्तभद्र, जिनके सार्थ नों में एक समन्तभद. जिनके साथ सेठ अपराधी की भांति इस प्रताड़ना को सुन रहा सुदूर देशों में जाते थे और वहाँ की सम्पदा लाकर उनके था। उस वृद्ध के नेत्रों में दुख, ग्लानि और पश्चाताप महबच्चों में जमा करते रहते थे। श्रेष्ठी समन्तभद्र, देव, आंसू बनकर बह रहे थे। वह करुण मूर्ति बना हमा पितरों और ब्राह्मणों का बड़ा भक्त था। वैदिक क्रिया- प्राचार्य माण्डव्य के चरणों को अपने अविरत प्रांसूमों से काण्डों मे उसकी अगाध प्रास्था थी। वह वैदिक धर्म का प्रक्षालन करता हुमा कह रहा था-'प्राचार्य! मुझे क्षमा नेता था। करें। मैं जानता हूं मेरे पुत्र मणिभद्र का गुरुतर अपराध तीर्थदर महावीर अपने शिष्य परिकर सहित अक्षम्य है। किन्तु पाप विश्वास करें, उसके इस अपराध श्रावस्ती पधार रहे हैं, यह समाचार जब से प्रचारित मे मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं उसे भयानक दण्ड दंगा। असा तब से श्रावस्ती के ब्राह्मणों की उत्तेजना का आप अपने निर्णय को वापिस ले लें भविष्य मे मेरे परिवार कोई पार नही था। नगर के चतुष्पथों, हाटों और वीथियों का कोई सदस्य ऐसा अपराध नही करेगा। प्राचार्य क्षमा में अपनी अनर्गल बातों से अपने अदम्य क्षोभ का प्रदर्शन कर दे।' यों कहते-कहते उसका कण्ठ पश्चाताप और कर रहे थे। श्रेष्ठी समतभद्र के प्रावास मे न जाने वेदना के प्राधिक्य से रुद्ध हो गया। वह आगे कुछ न कितनी परिषद प्रायोजित की गई और उनमे तीर्थङ्कर बोल सका । वातारण मे उसकी वाष्परुद्ध हिचकियां ही महावीर के अलौकिक प्रभाव से वैदिक जनों की न सुनाई पड़ती रहीं। जाने कितनी योजनाए बनी और बिगडी। किन्तु प्राचार्य माण्डव्य पर सेठ की इस करुण विनय तभी समाचार मिना कि श्रेष्ठो समन्तभद्र का कनिष्ठ का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वैदिक धर्म, महर्षियो की पुत्र मणिभद्र श्रावस्ती से दो गव्यूति दूर जाकर भगवान पवित्र वाणी और यज्ञ परम्परा के रक्षक के रूप मे उनका महावीर के दर्शन करके लौटा है। यह दुःसवाद पवन के दायित्व महान था। बह्मा के मुख से निर्गत वेदत्रयो की रथ पर पारूढ़ होकर नाना रूपो मे श्रावस्ती के हर कोने अपौरुषेय वाणी में ससार के सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान अन्तमे फैल गया। सारी योजना विच्छिन्न सी होती हुई प्रतीत निहित है। वेद बाह्य कोई ज्ञान-विज्ञान नहीं है। उसी
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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