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________________ १२४, वर्ष २४, कि०. अनेकान्त प्राप्त क्या करना चाहिए; शुभ गुण । सुख से प्राप्त करने हर विरसा सा नीवियपि कसिणागिरलक्ष्य ॥ योग्य क्या है ? सज्जन पुरुष। कठिनता से प्राप्त करने अर्थात् जब महिला मासक्त होती है तो उसमे गन्ने योग्य क्या है ? दुर्जन पुरुष । के पोरे अथवा शक्कर की भाति मिठास होता है और जयसिंह सूरि के 'धर्मोपदेशमाला' में दो कटु सत्य । जब वह विरक्त होती है तो काले नाग की भांति उसका देखिए विष जीवन के लिए घातक होता है। एक अन्य प्रसिद्ध अपात्रे रमते नारी, गिरोवर्षति माधवः । कथन लीजिएनीचमाधयते लक्ष्मीः प्राम: प्रायेण निधनः ।। पढम पि प्रावयाण चितेयव्यो नरेण पडियारो। प्रर्थात्-नारी प्रपात्र में रमण करती है, मेघ पर्वत पर न हि गेहम्मि पलिते अवडं खणिउ तरह कोई ।। बरसता है, लक्ष्मी नीच का प्राश्रय लेती है और विद्वान अर्थात् विपत्ति के पाने के पहले ही उसका उपाय प्रायः निर्धन रहता है। सोचना चाहिए। घर मे आग लगने पर क्या कोई कुमा रज्जावेंति न रज्जति लेंति हिययाई न उण अप्पेति । खोद सकता है। छप्पण्णय बुद्धीमो जुबईमो दो विसरिसानी॥ मलधारी हेमचन्द्र सूरि की 'उपदेशमाला' ५०५ मूल अर्थात्-स्त्रियां दूसरेका रंजन करती है, लेकिन स्वय गाथाओं की एक दूसरो उपयोगी रचना है। रंजित नही होती। वे दूसरो का हृदय हरण करती है, उसका यह कथन कितना विचित्र हैलेकिन अपना हृदय नही देतीं। दूसरों को छप्पन बुद्धियां जायमानो हरेद्धार्या वर्धमानो हरेद्धनं । उनकी दो बुद्धियों के बराबर है। प्रियमाणो हरेत् प्राणान् नास्ति पुत्र समो रिपुः ।। क्षण में दरिद्रता मिटाने वाले भद्र प्रभद्र धंधों की अर्थात् पुत्र पैदा होते ही भार्या का हरण कर लेता एक सूची देने वाली गाथा इस प्रकार है : हैं, बड़ा होकर धन का हरण करता है, मरते समय प्राणों खेतं उच्छृण समुद्दसेवणं, जोणिपोसणं चेव । का हरण करता है । इसलिए पुत्र के समान और कोई निवईणं च पसामो खणण निहणंति दारिह॥ शत्र नही है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह कथन प्रर्थात् ईख की खेती समुद्र यात्रा (विदेश में जाकर अटपटा होते हुए भी लौकिक अनुभव की दृष्टि से बावन घषा करने) योनि पोषण (वेश्या वृत्ति) और राज्य तोले पाव रत्ती है। इस प्रकार के सहस्रो नीति परक कपा-इन चार उपायों से क्षण भर में दरिद्रता नष्ट हो उपयोगी कथन प्राचीन जैन ग्रन्थ मजषामो मे सुरक्षित जाती है। प्रादर्श के कथनों के उस युग में भी यथार्थ की है। इन कथनो का प्रचार और प्रसार धर्म की अपेक्षा इतनी स्पष्टोक्ति, साहस ही कही जायगी। ऐसे और भी लौकिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय हित-साधन की दृष्टि से अनेक कथन सहज सुलभ है। कही अधिक आवश्यक है। काश, भ्रष्टाचार के इस अंधेरे स्त्री के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहा है- युग मे जैनागमो के नैतिक कथनो का पुनीत प्रकाश फैल महिला रत्तमेता उच्छृखंड व सक्करा चेव । पाता। कमल पराग का लोभी एक भौंरा उसके अन्दर बन्द हो यह सोच रहा था कि रात बीतेगी, सुन्दर प्रभात होगा, सूर्य उदय होगा, कमल कलिका खिलेगी और मैं पुनः रस ले उड़ जाऊँगा । दुःख है कि इतने में एक हाथी ने उस कमलिनी को मुख में दबा लिया । यही दशा विषयी जीवन की है।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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