________________
१२० व २४, ०३
नहीं सकता । किन्तु कुमार के वचनों से नकली बलभद्र को बड़ा हर्ष हुपा। उसने अपने शरीर को अत्यन्त पतला करके सीखचो से बाहर निकल कर ज्योही तूबी के अन्दर प्रवेश किया, त्यो हो अभयकुमार ने तलवार का एक भरपूर हाथ मार कर नकली बलभद्र को मार डाला । पश्चात् उसने असली बलभद्र को कोठरी से निकाल कर उसे भद्रा के साथ अयोध्या जाने की अनुमति दे दी। कुमार की विलक्षण न्याय बुद्धि देखकर सारी सभा में हर्ष छा गया। महामात्य वर्धकार ने कुमार की इस विलक्षण बुद्धि के लिए बधाई प्रदान की। कुमार के इन निष्पक्ष कार्यों से उनकी कीति बहुत बढ़ गई। लोग उसको न्याय परायणता को देखकर सभी उसकी प्रशंसा करने लगे। कोशल के पश्चात् अन्य देशों से भी अभियोग उनके पास पाते थे, जिनका यह अपनी प्रतिभा से शीघ्र निर्णय कर दिया करता था।
श्रभयकुमार राज्य कार्यों के अतिरिक्त, कौटुम्बिक कार्यों में, गुह्य कार्यो मे श्रौर रहस्यमय कार्यो के निश्चय करने मे पूछने योग्य था। वह स्वयं राज्य शासन, राष्ट्रदेश, कोय, कोठार (अन्त भडार) सेना, नगर
और अन्तःपुर की देख-रेख करता था ।
प्रनेकान्त
था । किन्तु अभयकुमार ने जहाँ शत्रु शिविर लगना था वहाँ उसने पहले ही सुवर्णमुद्रा मड़वा दी थी जब चण्डप्रद्योत ने राजगृह को घेर लिया, तब अभयकुमार ने उसे एक पत्र लिखा था कि आपका हितैषी होकर बता रहा हूँ कि आपके सहबर राजा श्रेणिक से मिल गये है, वे बाध कर श्रेणिक को सम्हालने वाले है, उन्होने श्रेणिक से बहुत धन राशि प्राप्त की है। यदि आपको विश्वास न हो तो अपने शिविर के स्थान को खुदवा कर देखिये उससे आपको स्वयं विश्वास हो जायगा । चण्डप्रद्योत ने जब उस स्थान को खुदवाया तब उन्हें सुवर्ण मुद्राओ का ढेर प्राप्त हुआ । इससे चण्डप्रद्योत ने अपना घेरा उठा लिया और उनी चला गया।
जैन मान्यतानुसार प्रभयकुमार श्रेणिक भभगार ( बिम्बसार ) का मनोनीति मत्री था ।
श्रेणिक का बेलना के साथ विवाह भी अभयकुमार की बुद्धिमत्ता से हुआ था ।
अभयकुमार अपनी बुद्धिमत्ता के कारण राज्य के सरक्षण मे भी उचित मार्ग का अवलम्बन करता था । उसके इन कार्यों से प्रजा बढी सन्तुष्ट रहती थी और उसके प्रति हार्दिक प्रेम प्रदर्शित करती थी।
अभयकुमार ने श्रेणिक के राजनैतिक संकट भी अनेक बार टाले थे। एक बार उज्जैनी के शासक चण्डप्रद्योन ने अन्य चौदह राजाओ के साथ राजगृह पर प्राक्रमण किया
१.
ज्ञाता धर्मकथाग प्रथम श्रुतस्कध १ अध्याय | २. भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति पत्र ३८
३. त्रिषष्ठि टाला का पुरुष चरित्र
अभयकमार ने राज्य रक्षा के लिए अनेक कार्य किये है। इसी से लोक में उनकी महता थी।
जैन मान्यतानुसार प्रभवकुमार ने भगवान महावीर से जैन दीक्षा ली और कठोर तपश्चरण किया और मुक्तिपद प्राप्त किया। यह मान्यता सन्देहास्पद है। इसकी जाँच करने की आवश्यकता है। जैन ग्रन्थों मे अभयकुमार को जैन धर्मी और महावीर के पास जाने और दीक्षा लेने का स्पष्ट उल्लेख है । ★
४.
प्रद्योत नृपते संन्यस्ततो राजगृह परम् । पर्यवेष्टयत भूगोल. गोधिमनिलेखि ॥। १२२ अथेत्थ प्रेषयामास लेख प्रद्योतभूपते । अभय गुप्त पुरुषः परुषेतरमा पिभिः ।। १२३
X
X
X
X तेनावरतीय मिस्वामेकान्तहितवांख्या । सर्वे श्रेणिकराजेन भेदितास्तव भू भुजः ॥ १२५ दीनारा. प्रेषिताः सन्ति तेभ्यम्तान् कर्तुं मात्मसात् । ते तानादाय बद्ध्वा त्वामर्थयिष्यन्तिमत्पितुः ।। १२६ तदावासेषु दीनारा निवाताः सन्तितत्कृते । मानयित्वा पश्यत्रो वा दीपे मध्यग्निमीक्षते ।।१२७ विदित्वैव स भूपस्य कस्या वा समचीखनत | लब्धास्तत्र च दीनारास्तान् दृष्ट्वा स पलायितः ॥ योगशास्त्र ११
५. थेरीगाथा-कथा १०८३-८४ ।