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________________ अभयकुमार वापिस लेती हैं। और वसुदत्ता के पास ही इसका मुख पिछला वर्णन भी भेजा गया है। व्यावहारिक-भेजा देख लिया करूंगी।" गया है श्रीमान् । सम्राट् अच्छा उसे पढ़ कर सुनामी । यह कहकर वसुमित्रा अभयकुमार के पावों में पड़ गई, व्यावहारिक-जैसी श्रीमान् को माज्ञा! मैं इसे पढ किन्तु वसुदत्ता इस सारे दृश्य को खडी-खडी देखती रही। कर मुनाता है। इस पर अभयकमार उस बच्चे को छोड़कर बोले- इस स्त्री भटा का पति : इस स्त्री भद्रा का पति बलभद्र अयोध्या निवासी ___ "यह सिद्ध हो गया कि बच्चा वसुमित्रा का है, मैं सच्चरित्र किसान है, इसका प्रयोध्या के एक धनिक व्यक्ति बच्चा वसुमित्रा को देता हूँ।" बसंत के साथ गुप्त सम्बन्ध हो गया था। बाद में एक उन्होंने वसुदत्ता की ओर देखकर कहा त्यागी महात्मा के महत्वपूर्ण उपदेश से इसने शीलवत ले निर्दयी राक्षसी ! तू बच्चे की माता बनने का ढोग लिया और बसंत का साथ छोड दिया । बसंत ने उस पर करती है और उसकी गर्दन पर तलवार देख कर पत्थर बहुत होरे डाले, किन्तु यह उसके वश मे न पाई । बाद को मति के समान खडी रही। मैं तुझे असत्य बोलने के मे बसन्त को इस स्त्री के लिए पागल दशा मे गलियो मे अपराध में देश निर्वासन का दण्ड देता हूँ। सेठ सुभद्रदत्त घूमते हुए देखा गया। कुछ समय बाद बसत अयोध्या से जी समस्त सम्पत्ति का एकमात्र अधिकार वसुमित्रा प्ररि गायब हो गया। पोर बलभद्र का प्राकार बनाकर एक उसके पुत्र का होगा। अन्य व्यक्ति असली बलभद्र को घर से निकालने लगा। व्यावहारिक ने सम्राट से निवेदन किया है कि देव ! इसके उपरान्त यह पता लगाना सम्भव हो गया कि एक अभियोग और है वह भी मेरी समझ में नहीं असली बलभद्र कौन है? प्राया। सम्राट ने कहा, अच्छा उसे भी सामने उपस्थित सम्राट~यह अभियोग तो पहले से भी अधिक पंचीदा है। फिर उन्होंने अभयकुमार की ओर देख कर व्यावहारिक ने एक प्राकृति वाले दो व्यक्तियो के पूछा, क्यों कुमार ! तुम इस अभियोग का निर्णय कर माथ एक स्त्री को उपस्थित किया। स्त्री अत्यधिक सुन्दर सकोगे ? कुमार-संभवत: कर तो सर्केगा। थी, उनको उपस्थित करके व्यावहारिक बोला, अन्नदाता! सम्राट-अच्छा देवी । तुम्हारे अभियोग का निर्णय यह अभियोग कोशल जनपद के अयोध्या नगर से सम्राट युवराज करेंगे। प्रसेनजिन ने स्वय भेजा है, बहुत प्रयत्न करने पर भी वे दोनों बलभद्रों का एक सा रूपरग देख कर पहले तो उसका निर्णय नही कर सके, तो उन्होने आपके पास भेज अभयकुमार चकरा गये बाद में उन्होने भद्रा की सहायता से दिया। उन दोनों व्यक्तियों के शरीर की सूक्ष्म जांच-पड़ताल की। मम्राट, अच्छा कहो क्या अभियोग है ? किन्तु उनका उनको लेशमात्र भी अन्तर न मिला । अन्त इस अभियोग में वादिनी यह स्त्री है। इसका नाम मे सोचते हुए उनके हृदय में एक विचार उत्पन्न हमा। भद्रा है, यह अपना मामला स्वय उपस्थित करेगी। उन्होंने दोनो बलभद्रो को एक सीखचेदार काठरी मे बन्द इस पर सम्राट उस महिला से बोले- क्यों देवी ! कर दिया, फिर उन्होंने एक तबी अपने सामने रख कर तंग क्या अभियोग है ? भद्रा-देव ! इन दोनो मे से उन दोनो बल भद्रों से कहा-सुनो बलभद्रो! तुम दोनों एक व्यक्ति मेरा पति है, एक व्यक्ति नकली है जो मेरे में से कोठे के सीखचो मे से निकल कर जो कोई भी इस पति का रूप बनाये हुए है। कृपया मुझे नकली व्यक्ति से तूबी के छिद्र से निकल जावेगा, और उसी को भद्रा छा कर मुझे मेरा असली पति दिलवादे । मिलेगी।" सम्राट्-यह तो बडा पेचीदा मामला है। व्यावहारिक कुमार के इन वचनो को सुनकर प्रसली बलभद्र को -तभी ता महाराज प्रसेनजित ने आपके पास भेजा है। बड़ा दुख हुआ, और उसे विश्वास हो गया कि अब भद्रा सम्राट -क्या इन तीनो व्यक्तियों के विषय मे इनका मुझे कभी नही मिलेगी: क्योंकि मैं तबी के छेद से निकल
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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