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१९८, वर्ष २४, कि०३
प्रनेकान्त
महिलामों की प्रायु २४-२५ वर्ष के लगभग होगी वे पाकर समाप्त की। दोनों महिलाएं सम्राट् के सम्मुख उपस्थित हुई। राजसभा व्यावहारिक ने कहा-ऐसा ही है देव ? के लोग उनके शारीरिक सौन्दर्य प्रौर रत्नजडित वस्त्रा- सम्राट् तब तो यह अभियोग बड़ा पेचीदा है । इसका भूषणों से विस्मित हुए। व्यावहारिक बोला--अभियोग निर्णय करना सुगम कार्य नहीं है। सम्राट ने अभयकुमार इन दोनों महिलामों का है। इनमे बाई पोर की महिला का की मोर देखकर पूछा, क्यो अभयकुमार ! क्या तुम इस नाम वसुमित्रा मोर दाहिनी ओर वाली महिला का नाम अभियोग का निर्णय कर सकोगे ? अवश्य कर सकूँगा वसुदता है। ये दोनों सुभद्रदत्त सेठ की पलिया है। पिता जी !
सम्राट ने कहा सेठ सुभद्रदत्त का तो अभी अभी सम्राट ने व्यावहारिक से कहादेहावसान हुआ है । वह मगध के ग्राम के निवासी थे। "अच्छा व्यावहारिक-इस अभियोग को युवराज के और विदेशो से अपार धन सम्पत्ति कमाकर अभी अभी सम्मुख उपस्थित कगे, वही इसका निर्णय करेंगे।" राजगृह मे पाकर बसे थे।
__व्यावहारिक ने दोनों संठानियो को अभयकुमार के ___ व्यावहारिक ने कहा-यह दोनों सुभद्रदत्त सेठ की सामने उपस्थित किया। अभयकुमार ने उनमे से एक से पलियां हैं । सम्राट ने कहा, इन दोनों में यह छह मासका पूछा। बालक किसका है ? व्यावहारिक बोला, राजन् ! सारा अभयकुमार-वसुमित्रा देवी, तुम उस परमपिता की झगड़ा तो इसी पर है। ये दोनो ही उसे अपना-अपना
साक्षी पूर्वक अपनी बात कहो। बालक बतलाती है । सम्राट ने कहा साक्षियो से किसका
वसुमित्रा-मै उस परमपिता परमात्मा को सपथपक्ष अधिक पुष्ट एव प्रमाणित होता है।
पूर्वक कहती हैं कि यह बालक सुमित्र मेरी कोख से उत्पन्न वहारिक बोला-सेठ सुभद्रदत्त राजगह में कल हुअा है। मैं ही इसकी माता हूँ, वसुदत्ता नही। दो माम से प्राया था। अतएव जो कुछ साक्षिया मिलती
अभयकुमार-वसुदत्ता देवी अब तुम्हे क्या कहना है ? है वे केवल दो माम के अन्दर को मिलती है। साक्षियो वसुदत्ता-मैं भी उस परमपिता परमात्मा की सपथसे यह मात होता है कि इस बालक पर दोनो का समान पूर्वक कहती है कि यह बालक सुमित्र मेरी कोख से उत्पन्न
है। लडके को जारी र पिलाया जाता रहा है और मै ही इगकी माता हूँ, मुमित्रा नहीं। इसलिए दूध की साक्षी का तो प्रभाव है। दोनो उसे अभयकुमार-मालूम होता है तुम लोग सच्ची बात अपने अपने पेट का उत्पन्न बालक कहती है। देखने वालों नही बतलानोगी? का कहना है कि बच्चे पर दोनों का समान प्यार है। यह तो अराभव है कि बालक दोनो की कोख से सम्राट ने कहा कि सुभद्र तो राजगृह के एक गाव का उत्पन्न हुआ हो । किन्तु इस पर दावा दोनो करती है। निवासी था उस गाव से कुछ साक्षिया नही मंगवाई गई। क्योंकि बच्चे की जो माता सिद्ध होगी वही उसकी प्रधिव्यावहारिक ने कहा-कि देवी गावसे भी साक्षिया मंगवाई कारिणी बनेगी और सेठ सुभद्रदत्त की अपार सपत्ति पर थी किन्तु वे तो पोर भी अधिक असन्तोषजनक है। उनसे उसी का अधिकार होगा। किन्तु इस तथ्य का कोई पता केवल इतना ही सिद्ध हुमा है कि मेठ सुभद्रदत्त उस गांव नही लगता । मै तो इस बच्चे को प्राधा प्राधा काट कर का निवासी था और दोनो सेठानिया उसको परिणीता दोनों को दिए देता है। यह कह कर अभयकुमार ने बच्चे वधुएं थी । वह इन दोनों को साथ लेका सार्यवाह के के पेट पर नगी तलवार रख दी। वमुमित्रा यह देखकर साथ अपना एक निजी पोत लेकर सुवर्णद्वीप व्यापार करने धाड़े मार-मार कर रोने लगी। उसने अभयकुमार की गया था और फिर वापिस गाँव नही गया। सम्राट ने तलवार पकडकर उससे कहाकहा कि इसका अर्थ ता यह हुमा कि उसके यह बच्वा "युवराज ! बच्चे के दो टुकड़े मत करो। इसे पाप कही यात्रा मे हुमा और उसने अपनी यात्रा राजगृह में वसुदत्ता को ही दे दे। मै इस पर अपने दावे क