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________________ अभयकुमार ये विप्रगण आपकी सेवा मे प्राहै। यदि उन्होंने अनजाने मे कोई अपराव कर भी दिया है, तो आप अपने बडप्पन का ध्यान कर उन्हें क्षमा कर दे। मेरी श्राप से यह विनय है । मैं उनको अभयदान दे चुका हूँ ।" अभयकुमार के इतने कहा ही नदिया के शब्द नन्दिग्राम ब्राह्मण भी सम्राट् के चरणों में गिर पड़े, और उनसे विनय पूर्वक क्षमा मागने लगे। तब सम्राट् न कहा "अच्छा, कुमार ! जब तुम इनको अभयदान दे चुके हो तो हम भी इनको अभय करते है।" फिर सम्राट ने शह्मणों की ओर मुख करके कहा'विप्रगण | आप प्रसन्नता से नन्दिग्राम चले जावे | अब आपको किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नही । आपके अधिकार में किसी प्रकार की भी कमी नहीं की जावेगी । महाराज के सुनकर ब्राह्मणो ने कहा "सम्राट् की जय हो, कुमार अभय की जय हो । हमे आप ने जीवन दान दिया । ग्रापका कल्याण हो ।" नन्दिग्राम के ब्राह्मण वहाँ से अत्यन्त प्रसन्न होते हुए अपने गाँव चले गए । युवराज पद गिरि व्रज की राजसभा को ग्राज विशेषरूप से राजाया गया है । सुन्दर पताकाओ और तोरणो से खम्भो को अलकृत किया गया। अच्छे और नए फर्श बिछा कर उसे और भी सुन्दर बना दिया, घासनों की संख्या भी बढ़ा दी गई, जिससे जनता ग्रासानी से बैठ सके । प्रातःकाल से ही जनता ने राजसभा में थाना प्रारम्भ कर दिया। नगर निवासी उत्साह पूर्वक राजसभा मे आ रहे थे । १० बजते बजते राजसभा भवन ठसाठस भर गया किन्तु श्राने वालो का ताता लगा ही रहा । राज्याधिकारियो का भी प्राना प्रारम्भ हो गया । और ठीक दस बजे सभा भवन अन्दर और बाहर दोनो जगह भर गया। सभा भवन भरने पर प्रधान सेनापति भद्रसेन और महामात्य वर्षकार भाकर अपने आसन पर बैठ गए। राजमहल के द्वार से राजकुमार अभय को साथ लिए हुए सम्राट् विम्बसार पाते हुए दिखाई दिए। उनको देखते ही जनता ने जोर से सम्राट् विम्बसार (श्रेणिक) की जय और राजकुमार ११७ प्रभय की जय के नारों से सभा भवन गूज उठा। दोनों अपने-अपने सासन पर बैठ गए। तब महामात्य वर्षकार ने कहा राज्याधिकारी 'सम्राट् पौरजानपद तथा उपस्थित महानुभाव ! सब उपस्थित महानुभाव सुने। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि राजकुमार प्रभय का आज सब की ओर से स्वागत करने का अवसर प्राप्त हुआ है 1 कुमार मे विलक्षण चातुर्य, पराक्रम और अलौकिक साहस है सात वर्ष की आयु में लोकोत्तर गुणों की प्राप्ति बिना पूर्वपुण्य के नहीं हो सकती। ग्राम के ब्राह्मणो की रक्षा करने में उन्होंने अपने बुद्धिचातुर्य का जो परिचय दिया है इससे उन्होने हमारी श्रद्धा को भी जीत लिया है। नगर निवासी उनसे अत्यधिक प्रेम करत है। उनका जनप्रिय स्वभाव न्यायप्रियता दयालुता और चमत्काि बुद्धि यदि लोकोत्तर गुणों के कारण उन्हे मगध साम्राज्य का युवराज बना दिया जाय । ग्राप लोग मेरे इस प्रस्ताव पर विचार करे। नगर के प्रमुख लोगों ने वर्षकार के प्रस्ताव का समर्थन ही नहीं किया प्रत्युत समस्त पौरजानपद की ओर से घोषणा की गई, कि सब नागरिक इस प्रस्ताव के पक्ष में है । सम्राट् ने कहा ग्राप लोगो ने कुमार के गुणों का वर्णन कर उन्हें युवराज पद देने का विचार किया । इसे मैं कुमार के अतिरिक्त अपना भी सम्मान मानता हूँ, मुझे गौरव है कि मैं ऐसे सुयोग्य पुत्र का पिता हूँ। महामात्य वर्षकार का राजकुमार अभय को युवराज बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया जाता है । अभयकुमार का न्याय एक दिन विश्वसार की राजसभा में व्यावहारिक ने निवेदन किया कि है देव! एक अभियोग नीचेके न्यायालयों से होता हुआ मेरे पास श्राया था, पर वह इतना जटिल है कि मैं भी उसका न्याय करने में असमर्थ है। इसलिए उसे सम्राट की सेवा मे उपस्थित करने की अनुमति चाहता हूँ। सम्राट् की पाशानुसार प्रभियोग उपस्थित किया गया। राजसभा के एक कक्ष में बिठलाई हुई दो भद्र महिलाओंों को राजसभा मे उपस्थित किया गया। दोनों
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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