________________
११६, वर्ष २४, कि० ३
अनेकान्त
हत कह कर वहाँ से चला गया, उसने नन्दिग्राम निवासियों की बड़ी भारी भीड़ उनके दर्शन करने क
कर प्रभयकमार को भक्तिपूर्वक प्रणाम कर महा. राजमार्ग पर एकत्रित थी। नगर की स्त्रियाँ तो मार्ग के जका सन्देश ज्यो का त्यो कह सुनाया। सम्राट् द्वारा प्रत्येक मकान की छत पर जमा हो गई थी। आगे-मागे कमार के बलाए जाने का सन्देश सारे नन्दिग्राम में फैल बाजा बजता जा रहा था, जिससे मार्ग में भीड बराबर गया। इस समाचार को सुन वहाँ के सब ब्राह्मण घबरा बढ़ती ही जाती थी। उत्सुकता वश स्त्रियों में तो उनको मौर सोचने लगे कि प्रब हमारी रक्षा किसी प्रकार देखने की होड़ मी लग गई थी। कोई स्त्री तो रसोई होमो सकती । अब तक तो कुमार ने हमारे जीवन को बनाने का कार्य बीच ही मे छोडकर छज्जे की पोर भागी
कर ली; किन्तु अब कुमार के चले जाने पर हम और कोई एक स्त्री अपने बालक की एक प्राँख मे काजल लोगो को सम्राट के कोपानल मे भस्म होना ही पड़ेगा। लगाकर दूसरी यौख यो ही छोड बाजो का शब्द सुन है ईश्वर ! सम्राट ने कुमार को बुला कर बडा अनर्थ बालक को उठाकर भागी। कोई नारी अपने पैरों में लाल किया हे परमात्मा, हम लोगों से ऐसा क्या पाप बन मेहदी लगा रही थी, वह मेहदी से अपने सारे फर्श को गया है जिसके परिणाम स्वरूप हम दुख ही भोग रहे है। खराब करती हुई अपने बाला खाने में जा पहुँची। इसे भगवन ! हमारी रक्षा करो। इस तरह रोते-चिल्लाते तरह नारियों के ठट्ठ के ठट्ठ' छज्जों, बालाखानों, अटांहा ब्राह्मणकूमार अभय की सेवा में उपस्थित हो, गेने गियों और चौखण्डों में जमा हो गए। और वे बडी लगे। उनकी दुखी अवस्था देख कुमार बोले
उत्सुकता से कुमार को देखने लगी। बालक, वृद्ध और ब्राह्मणो ! आप इतना खेद क्यो करते है ? सम्राट् युवा सभी कुमार को देखने के लिए अत्यन्त उत्साह से ने मुझे जिस प्रकार आपने को प्राज्ञा दी है मै उनके पास जमा हो गए। उसी प्रकार जाऊँगा। गिरिब्रज में भी आप लोगो का जनता की अपार भीड़ के साथ कुमार की सवारी
भी नगर में आगे-मागे बढ़ती जाती थी। बाजो के पीछेपूरा ध्यान रखूगा । पाप लोग किसी बात की चिन्ता न । कर।
पीछे बंदी जन कुमार की विरुदावली का बखान कर रहे ब्राह्मणों को धैर्य बघाकर और समझा बुझा कर थे। स्थान-स्थान पर नगरवासी जन राजकुमार की कुमार ने समस्त सेवकों को तैयार करने के लिए अपने प्रशसा कर रहे थे। इस तरह राजमार्ग से जाते हुए नाना सेठ इन्द्रदत्त से कहा । उनकी प्राज्ञा के साथ उनके कुमार अभय राजसभा के पाम जा पहुँचे। उन्होने रथ से सभी अनुचर जाने के लिए तैयार हो गए। सेठ इन्द्रदत्त उतर कर अपने नाना सेठ इन्द्रदत्त के साथ राजसभा में एक रथ पर पृथक् बैठे। कुमार ने अपने लिए जो रथ प्रवेश किया। प्राज कुमार के प्रागमन के कारण दिन मगवाया उसके बीच में एक छीका बघवा दिया। छिप जाने पर भी राजसभा पूरी भरी हुई थी।
दिन समाप्त होने पर जब संध्याकाल हुग्रा, तब राजकुमार ने सभा मे सम्राट को रलटित सिंहासन कमार ने गिरिव्रज की पोर अपने समस्त सेवको और पर विराजमान देखकर उन्हें नमस्कार कर उनके चरण
गरक्षको सहित रथ हकवा दिया। चलते समय रथ का छुए। सम्राट ने उनको खैचकर अपनी गोद में बैठा एक पहिया मार्ग मे चलाया गया और दूसरा पहिया सड़क लिया । स्वागत सत्कार के बाद कुमार ने सम्राट् से निवेके बगल मे उन्मार्ग में डाल दिया गया। कुमार ने चलते दन किया, "पिता जी! मेरी प्राप से एक प्रार्थना है. समय चने का प्राधा पेट भोजन किया और रथ के उस पाप प्राज्ञा दे तो निवेदन करूं।" छीके में बैठ गए। इस तरह अनेक ब्राह्मणो के साथ अभय सम्राट् बिम्बसार प्रसन्न होकर बोलेकुमार प्रानन्दपूर्वक गिरिव्रज पहुँच गए।
"अवश्य कहो बेटा ! क्या कहना चाहते हो।" - अभयकुमार के सायकाल तक गिरिव्रज पहुँचने का तब अभयकुमार ने कहासमाचार नगर मे पहुँच ही चुका था, इस कारण नगर "पिता जी! मेरा निवेदन यह है कि नन्दिग्राम के